मच्छरों की पीढ़ियां – बेबी बूमर्स से जेन जी का इतिहास


अरुणा (हमारी नौकरानी) शाम की पारी में बगीचे में सूखी पत्तियां बटोरने के लिये झाड़ू लगाया करती है। वह मच्छरों से बचाव के लिये मेरी एक पूरी बांह की पुरानी कमीज अपनी साड़ी के ऊपर पहन लेती है। उसके लिये एक ओडोमॉस की ट्यूब भी खरीदी है, वह भी खुले हाथ पैर पर लगाती है।Continue reading “मच्छरों की पीढ़ियां – बेबी बूमर्स से जेन जी का इतिहास”

पुलियाबाज़ी की पुलिया गांव की नहीं है


कभी-कभी जीवन में ऐसा होता है कि कोई नई आवाज़ कानों में पड़ती है और लगता है—हाँ, यही तो सुनना चाह रहा था मैं! मेरे साथ यह अनुभव तब हुआ जब मैंने पहली बार, दो तीन साल पहले पुलियाबाज़ी पॉडकास्ट सुना। इसमें तीन लोग – प्रणय कोटस्थाने, सौरभ चंद्र और ख्याति पाठक – बतकही कीContinue reading “पुलियाबाज़ी की पुलिया गांव की नहीं है”

रात ढलते ही झींगुर गायन


रात आते ही – शाम सात सवा सात बजे झींगुर गायन शुरू कर देते हैं। और यह आवाज रात भर चलती है। गांव के सन्नाटे का संगीत है यह। पितृपक्ष लग गया है जो कोई अन्य आवाज – कोई डीजे या जै मातादी जागरण या अखंड मानस पाठ आदि नहीं हो रहा। आजकल झींगुरचरितमानस काContinue reading “रात ढलते ही झींगुर गायन”

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