जसदाण से मोटा दड़वा

3 दिसम्बर 21, रात्रि –

राजकोट के अंचल से गुजर रहे हैं प्रेमसागर। सवेरे मुझे बताया कि एक नदी मिली। जिसपर जगह जगह बांध बने हुये थे। पानी रोका गया था सिंचाई के लिये। बहुत से ऐसे बांध – चेक डैम – थे। मैंने नक्शे में चेक किया तो गोण्डल के लिये सीधे रास्ते में कोई नदी पड़नी नहीं चाहिये थे। शायद किसी के कहने पर एक अन्य मार्ग चुना था जिसपर भादर नदी दो बार पार करनी होती है। वह डी-टूर आगे जा कर सीधे रास्ते में मिल जाता है।

सीधे रास्ते से मोटा दड़वा – स्थान जहां रात्रि विश्राम के लिये प्रेमसागर के रुकने का प्रबंध था; सत्रह किलोमीटर पड़ता है। पर प्रेम सागर डी-टूर वाले रास्ते से 21-प्लस किलोमीटर चले होंगे। चार किलोमीटर ज्यादा। खैर, चलना प्रेमसागर को है, मुझे क्या?

भादर के चेक डैम उसके सिंचाई के लिये दोहन की कथा बताते हैं। वर्षा द्वारा सिंचित इस इलाके में इन चेक डैमों की खासी भूमिका होगी किसान की खुशहाली में।

भादर नदी प्रेमसागर के रास्ते के समांतर चलती रही है धंधुका से राजकोट जिले की ओर उनकी यात्रा में। उन्हें कभी नजर नहीं आयी। आज उस नदी के साथ 2-3 किलोमीटर के क्षेत्र में चले। भादर के चेक डैम उसके सिंचाई के लिये दोहन की कथा बताते हैं। वर्षा द्वारा सिंचित इस इलाके में इन चेक डैमों की खासी भूमिका होगी किसान की खुशहाली में। वैसे पर्यावरण विद, जो कॉण्ट्रेरियन चलते-सोचते हैं; उनके पास चेक डैमों के माध्यम से नदी को बांधने के खिलाफ तर्क होंगे ही। उन्हें यह खराब लगता होगा कि नदी को सैकड़ों तालाबों में तब्दील कर दिया गया है। पर पानी अरब सागर में जाये, उससे अच्छा वह खेती के काम आये; यह प्राइमा-फेसाई (prima facie प्रथम दृष्ट्या) मुझे खराब नहीं लगता। भादर उस इलाके से गुजरती है जिसमें जल की एक एक बूंद कीमती है।

भादर नदी

एक झऊआ भर चित्र ठेल रहे हैं प्रेमसागर। चित्र भेजते समय वे चुन कर नहीं भेजते। जो भी उनके मोबाइल कैमरे में आता है, वह टेलीग्राम एप्प के माध्यम से मेरे कम्प्यूटर और मोबाइल में सरक जाता है। मेरा लैपटॉप जो छ साल पुराना है, चित्रों की मेगा बाइट्स से कराह रहा है। उसका की-बोर्ड काम नहीं करता तो एक यूएसबी से जोड़ कर एक्सटर्नल की बोर्ड से काम चला रहा हूं। नया लैपटॉप खरीदना है पर उसमें दो अड़चन हैं – पहला पैसे की भरमार नहीं है, वित्त मंत्रालय (पत्नीजी) की अनुमति कठिन है; दूसरे अभी वाले में इतना मसाला है, उसे नये लैपटॉप पर स्थानांतरित करना कठिन काम है। लगता नहीं कि उस समय तक जब यह पूरी तरह बैठ न जाये, कोई विकल्प बनेगा।

प्रेमसागर के कई चित्र’ जूम कर लेने के कारण’ धुंधले होते हैं। उनको इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। पर उनका भी एक ध्येय होता है। कम से कम मुझे तो उनके यात्रा मार्ग में मिलने वाले जगहों, चीजों की जानकारी हो जाती है। उनको सीधे इस्तेमाल नहीं किया जा सकता पर उनके द्वारा सोचा जा सकता है और शब्द गढ़े जा सकते हैं। उनके कई चित्र कैमरे पर कोई उंगली या हथेली आने के कारण काम लायक नहीं होते। पर वे सब भी, बिना चयन के, एन-ब्लॉक प्रेमसागार मेरे पास ठेल देते हैं। उनकी यात्रा में सबसे निरीह, सबसे त्रस्त व्यक्ति मैं ही हूं! :lol:

आज प्रेमसागर को एक जगह लोग भोजन बना कर औरों को खिलाते नजर आये। वे लोग यह धर्म कार्य महीने में एक दो बार करते हैं। रामदेव बाबा पीर के भक्त लोग हैं ये। स्त्रियां भोजन बना रही थीं। चित्र लेते समय प्रेमसागर ने उनको बाध्य कर दिया घूंघट काढ़ने के लिये। गुजराती महिलाओं को मैं अपेक्षाकृत फारवर्ड मानता हूं; पर लगता है अंचलों में अभी भी पर्दा प्रथा (आंशिक रूप में ही सही) विद्यमान है। प्रेमसागर को भी यहां भोजन कराया उन लोगों ने।

एक जगह एक मिनी ट्रेक्टर-टिलर पर बैठ कर फोटो खिंचाया प्रेमसागर ने।

एक जगह एक मिनी ट्रेक्टर-टिलर पर बैठ कर फोटो खिंचाया प्रेमसागर ने। उस टिलर से चने या अन्य फसल की कतारों के बीच दो फिट का फासला होना समझ आ गया। लोग फसल बोने के बाद जब पौधे बड़े हो जाते हैं तो बीच की जगह पर इस टिलर से खेत की गुड़ाई कर देते हैं। उससे पौधों को ज्यादा उर्वरा मिलती होगी और बीच की खरपतवार भी खत्म हो जाती होगी। इस मशीन से निराई का काम सरल हो जाता होगा। यह तो मेरी अटकल है, सही सही उपयोग तो किसान ही बता सकते हैं।

रास्ते में एक पुराना दरवाजा नजर आता है सड़क पर। यह किसी रियासत वाले राजा ने बनवाया होगा।

एक पुराना दरवाजा नजर आता है सड़क पर, प्रेमसागर को चलते हुये। यह किसी रियासत वाले राजा ने बनवाया होगा। सौराष्ट्र में ढेरों राजे थे। अश्विन पण्ड्या जी मुझे खांची भर राजे-रियासतों का होना समझाते हैंं। भारत के अन्य भागों में किसी भी राज्य में राजा के मरने के बाद बड़ा लड़का राजा बनता था। बाकी सभी अंगूठा चूसते थे। या वे बगावत कर मार-काट करते थे। सोरठ/काठियावाड़ में ऐसा नहीं था। राज्य के हिस्से कर सभी बेटे अपना अपना राज्य बना लेते थे। इस तरह जैसे अन्य भागों में पुश्तैनी किसानी की जोत कम होती गयी है, उसी तरह सौराष्ट्र में रियासतें छोटी छोटी हो गयी थीं और ढेरों थीं।

पता नहीं इन राजा लोगों का आज क्या हाल होगा? आज कोई कोई राजा तो मध्य वर्गीय या निम्न मध्यवर्गीय जीवन यापन भी कर रहा होगा! शायद!

रास्ते में कोई हनुमान मंदिर मिला। वहां, बकौल प्रेमसागर हनुमान जी जमीन से प्रकट हुये। शुरू में थोड़ी सी प्रतिमा थी, एक फुट की; पर बाद में वह पांच छ फुट के हो गये। वहां के नागा बाबा को प्रेमसागर की रुद्राक्ष की बड़ी माला पसंद आ गयी। उन्होने मांग ली तो प्रेमसागर ने वह मंदिर के दत्तात्रेय भगवान की मूर्ति को पहना दी। अब प्रेमसागर को नयी खरीदनी होगी। एक द्वादश ज्योतिर्लिंग के कांवरिया की कुछ तो झांकी होनी चाहिये। रुद्राक्ष उसमें सही गेट-अप देता है। यह थोड़े ही कि आप फलालेन या नाईलोन की होजियरी वाली बोल बम लिखी टी-शर्ट और घुटन्ना पहन कर छिछोरे लफाड़ियों की तरह कांवर ले कर चलेंं- जो यहां सावन के महीने में सैंकड़ों, हजारों दिखते हैं। वह सब मुझे भदेस हिंदुत्व लगता है। और प्रेमसागार तो उनके विपरीत छोर के तप करते जीव लगते हैं। एक बढ़िया रुद्राक्ष की माला तो उनके पास होनी ही चाहिये; भले ही कुरता-धोती मुड़ा-तुड़ा हो।

[सुदेश भाई के घर के चित्र]

मोटा दड़वा में प्रेमसागर सुदेश भाई के घर रुके हैं। मोटा दड़वा नाम के अनुरूप बड़ा गांव है; शायद कोई दड़वा या नाना (छोटा) दड़वा गांव भी हो। सुदेश भाई सम्पन्न गांव वाले हैं। उनका ड्राइंग रूम मुझे अपने यहां के तथाकथित सम्पन्न लोगों के यहां से कहीं बेहतर नजर आता है। सुदेश भाई की मां, पत्नी और बच्चे भी सलीकेदार दिखते हैं। उत्तरप्रदेश के गांव के लोगों और घरों से तुलना करना ही बेमानी है। और मोता दड़वा राजकोट का आंचलिक गांव है। कोई सबर्बिया या रूरर्बिया नहीं। वहां सुदेश भाई और अन्य पुरुष पैण्ट कमीज में हैं। काठियावाड़ गांव के पग्गड़ धारी, सदरी पहने किसान की मन में छवि उनकी ईमेज से उलट है। वह छवि जो मंथन फिल्म में दिखती है। शायद आगे कहीं वैसा किसान प्रेमसागार को दिखे।

बहरहाल सुदेश भाई का घर और परिवेश मुझे प्रभावित करता है। उनके बच्चे प्यारे से हैं! सुदेश भाई किसानी करते हैं और उनका डेयरी भी है। दो दर्जन गाय-भैंस हैं उनके पास। वे ठाकुर हैं। उनका व्यक्तिव प्रभावी है पर किसान के हिसाब से सुदेश भाई का वजन ज्यादा दिखता है। उनके पेट पर समृद्धि ज्यादा है। वह सेहत के लिये वे कम कर लें तो बहुत हैण्डसम लगें। :-)

प्रेमसागर ने बताया कि सवेरे जब वे निकले तो बादल थे, दिन में गर्मी हो गयी। सामान्य रहा दिन। इक्कीस-बाईस किलोमीटर चलने में दिक्कत नहीं हुई। यद्यपि रात में वे चित्र में इनर पहने नजर आते हैं। दिन गर्म और रात ठण्डी होती होगी उस इलाके में।

आज लिखना कुछ ज्यादा ही हो गया। मेरी सामान्य पोस्टों से दुगना। बस आज इसी पर विराम दिया जाये।

जय सोमनाथ। हर हर महादेव!

*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची ***
पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची
प्रेमसागर पाण्डेय द्वारा द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा में तय की गयी दूरी
(गूगल मैप से निकली दूरी में अनुमानत: 7% जोडा गया है, जो उन्होने यात्रा मार्ग से इतर चला होगा) –
प्रयाग-वाराणसी-औराई-रीवा-शहडोल-अमरकण्टक-जबलपुर-गाडरवारा-उदयपुरा-बरेली-भोजपुर-भोपाल-आष्टा-देवास-उज्जैन-इंदौर-चोरल-ॐकारेश्वर-बड़वाह-माहेश्वर-अलीराजपुर-छोटा उदयपुर-वडोदरा-बोरसद-धंधुका-वागड़-राणपुर-जसदाण-गोण्डल-जूनागढ़-सोमनाथ-लोयेज-माधवपुर-पोरबंदर-नागेश्वर
2654 किलोमीटर
और यहीं यह ब्लॉग-काउण्टर विराम लेता है।
प्रेमसागर की कांवरयात्रा का यह भाग – प्रारम्भ से नागेश्वर तक इस ब्लॉग पर है। आगे की यात्रा वे अपने तरीके से कर रहे होंगे।
प्रेमसागर यात्रा किलोमीटर काउण्टर

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

12 thoughts on “जसदाण से मोटा दड़वा

  1. आलोक जोशी ट्विटर पर –
    आपका ये लिखना कि “उनकी यात्रा में सबसे निरीह, सबसे त्रस्त व्यक्ति मैं ही हूं! …..सचमुच हँसा गया..🤣🤣🤣
    मैं यहाँ एक अति पढ़े लिखे का अल्प पढ़े लिखे के बीच बातचीत , विवहार विमर्श को अपने नजरिये से तौल रहा हूँ….सचमुच आप कभी त्रस्त हो जाते होंगे..😂😂

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  2. सर, आपके द्वारा दिया गया यात्रा विवरण कितना मनोहर है यह मेरे जैसा पाठक ही समझ सकता है।
    आपके द्वारा किया गया परिश्रम हमको भी प्रेमसगरजी के साथ मानसिक यात्रा करा रहा है।
    कहीं कहीं यह भासित होता है कि प्रेमसागर जी को होने वाली असुविधा से आप स्वयं से जोड़कर देखने लगते हैं । यह आपका उनके प्रति प्रेम व वात्सल्य को दर्शाता है।
    आपके ही कारण सभी पाठकों को पदयात्रा की वास्तविकता का अनुमान हो पा रहा है।

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    1. जय हो चतुर्भुज जी. धन्यवाद आपके मेरे बारे में अच्छा कहने के लिए. आप इसी तरह साथ बने रहें, यही कामना करता हूँ.

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  3. चेक डेमो से जलस्तर को मेंटेन करने में काफी हेल्प मिली है, केशुभाई ने शुरू करवाया व मोदीजी ने अपने कार्यकाल में आगे बढ़ाया। नर्मदा के पानी आने से पहले राजस्थान के रेगिस्तान जैसे ही सारे गांव में पानी की किल्लत रहती थी, 10 किमी रेंज में एक या दो कुँए मिलते थे गरमी में की जहाँ पशु व दैनिक उपयोग का पानी मिल सके। चेक डेम व नर्मदा के पम्पिंग से गांव गांव तक पानी पहुँचना बहुत बड़ी उपलब्धि रही ।

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  4. छोटे ट्रेक्टर व मॉडीफाइड मोटर साइकल से खेती आम बात हो गई है, साधन को अपने हिसाब से मॉडीफाइड करके कम मेहनत लगाना यही वो प्रयोगात्मकता के बारे में मैं आपको पहले टिप्पणी किया था, व सुदेश भाई जैसे 90 प्रतिशत किसान सिर्फ देखरेख रखते है, मजदूरों से या आढ़त या मजदूरी में भागीदारी से खेती करवा लेते है सो अपने जीवन को भी नया आयाम देते है व दूसरे बिज़नेस व रूचि में अपने आपको इन्वेस्ट करते है।

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    1. सुदेश भाई जैसे कुछ प्रयोग धर्मी किसान अगर यहां उत्तर प्रदेश में हों तो वे कल्चरल परिवर्तन ला सकेंगे। यहां सोच का संकुचन ज्यादा है।

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  5. जय महादेव

    घुँघट प्रथा लगभग समाप्त ही है, पर महिलाएं अनजाने पुरुषों के सामने व कभी भी चित्र लो तो सिर पल्लू से ढंक ही लेती है, खास कर 50 से 70 के दशक में जन्मी पीढ़ी।

    राज्य प्रथा सौराष्ट्र में अलग हुआ करती थी, छोटे दो चार गांवों को बड़े राजा किसी के काम के उपहार में देते थे और फिर वो अपनी रियासत, ठकुराई जमा लेते थे और ये सहज था। अभी जो इलाके से वो चल रहे है वो गोंडल राज में आता था, उनके आखिरी वंशज बहूत ही प्रोग्रेसिव थे , उन्होंने गुजराती भाषा का कोष बनवाया, 1920 से 1950 के दशक में स्त्री शिक्षा मेंडेटरी करवाई(आज भी अगर 80 साल की दादी न्यूज़पेपर पढ़ते दिखाई दे तो हम उनका मायका गोंडल राजमे है ये बिना पूछे बोल सकते है 20 आना दण्ड हुआ करता था अगर लड़की स्कूल न जाये तो), नाइट लाइट्स पूरे गोंडलमे लगवाई, बड़े कस्बो को सुरक्षा के लिहाज से दरवाजे और दिवालों से सुरक्षित किया, सिर पे चारा उठाके आने वालों के लिए पूरे राज में आपको दो खंभे पे एक आड़ा खम्भे स्ट्रकचर बनवाये ताकि उसपे गठरी या वजन रखके विश्राम किया जाए और बिना जूके उसे वापिस सिर पे रख सकें।
    बड़े राज्यो में भावनगर, नवानगर या जामनगर, धंधुका और जूनागढ़ बाकी सारे छोटे छोटे थे।

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    1. वाह! राजे रजवाड़े जनता की इतनी फिक्र करते थे, यह जानना बहुत सुखद लगा। कोई पुस्तक सुझा सकते हैं इस विषय पर?

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    2. मेरी पढी किताबों में सिर्फ “सौराष्ट्र नी रसधार -झवेरचंद मेघाणी” है, जो कि लोककथा संग्रह है। पांच भाग में है व गुजराती में है ।अनुवाद जरूर होगा मगर मेरी जानकारी सीमित है पुस्तकों के बारे में। वीरता, दान, वचनबद्धता, प्रेम कथा आदि दर्शाती है। समयरेखा कोई नही है कथाओ की।

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