4 दिसम्बर 21, रात्रि –
घोघावदर गोण्डल के पहले बड़ा गांव है। प्रेमसागार को अपने बीस किलोमीटर चलने के अनुशासन के अनुसार वह स्थान सही पड़ता है। किसी के घर पर रुकना नियत था, पर प्रेमसागर ने रामदेवबाबा पीर के मंदिर में रुकना बेहतर समझा। रास्ते में सदा की तरह कुछ मंदिर, कुछ नदियां, कुछ खेत और कुछ चाय की दुकानें मिलीं जिनके बारे में लिये चित्र मेरे पास उन्होने भेजे।

सवेरे निकलते ही उनका ध्यान कहीं सोलर गीजर पर गया। एक सामान्य डिजाइन है जिसमें सोलर समांतर ट्यूब के एक कोने पर एक बेलनाकार पीपा है जिसमें गर्म पानी पाइप के माध्यम से घर या संस्थान के बाकी हिस्सों में ले जाया जाता है। प्रेमसागर के हिसाब से बीस-तीस हजार की लागत आती है। मोटा दड़वा के घरों में भी लगे हैं – यह बड़ी बात है। गुजरात के गांवों में भी सौर ऊर्जा का प्रयोग व्यापक हो गया है। मैंने तो यहां अपने घर में जब 2 केवीए का सोलर सिस्टम लगाया तो उसे आसपास के गांवों में पिछले छ साल में किसी ने रिप्लीकेट नहीं किया है। अधिक से अधिक यहां कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्स के तहद कुछ सोलर लाइटें लगीं, जिनकी घटिया बैटरी दो साल में बैठ गयी। आज चार साल बाद उनमें सो शायद ही कोई जलती हो। CSR के माध्यम से खैरात बांट कर लोगों को ऊर्जा की हरित क्रांति नहीं सिखाई जा सकती। उसके लिये गुजराती व्यवसायिक मानसिकता विकसित करनी जरूरी है।
यह सोलर गीजर देख कर मन ललच रहा है कि एक ठो गीजर भी घर में लगवा लिया जाये।
प्रेमसागर कांवर देशाटन कर जब लौटें तो शायद अपने गांव देवरिया-गोरखपुर में वह कल्चर लोगों को दे सकें। पर उससे पहले उन्हें अपना खुद का मानस खोलना होगा। और वह वे कर ही रहे होंगे।

प्रेम सागर ने निकलते ही एक मंदिर के दर्शन किये। वहां मंदिर की खासियत यह है कि चारों धाम की यात्रा कर लौटे लोग उस मंदिर में जरूर जाते हैं, अन्यथा “चारों धाम का पुण्य” फलित नहीं होता; ऐसा वहां लोग कहते/मानते हैं। मंदिर के कर्ता-धर्ता डा. अभि जी ने उन्हें मंदिर की महिमा बताई, चाय पिलाई और दर्शन भी कराये। उन्होने उन्हें उनकी जांघों की मांसपेशियों के खिंचाव के लिये – जो लम्बा चलने के कारण उन्हे बहुधा हो जाता है – एक दवाई और एक तेल भी दिया। तेल सरसों, तिल और गुड़ की डली को पका कर बनाया जाता है। उससे उनको जांघ और पैर में मालिश करने को कहा है।

उनके पिताजी ने पांच पुस्तकें लिखी हैं गुजराती में। उनमें से तीन उन्होने प्रेमसागर को दीं। प्रेमसागर ने बताया कि धीरे धीरे वे गुजराती बोलना-समझना और लिपि पढ़ना सीख रहे हैं। गुजरात यात्रा में अभी महीना भर लगेगा। ताब तक कामचलाऊ गुजराती उन्हे आ जानी चाहिये। तब तक इन पुस्तकों को वे सरसरी निगाह से (कम से कम) पढ़ ही लेंगे; ऐसी आशा की जानी चाहिये। सौराष्ट्र के अन्चल में पांच पुस्तकों के लेखक हैं – यह बड़ी बात है। उनके मंदिर में कुछ औषधीय पौधे और वृक्ष भी हैं, जिनके चित्र प्रेमसागर ने लिये।
[मंदिर परिसर में उगाये औषधीय पौधे]
प्रेमसागर को एक पौधा – बेल या लता दिखी शिवलिंगी। उसका फल शिवलिंग के आकार का होता है।
कल प्रेमसागर को राजघराने के लोग मिले थे। ये लोग किसानी- डेयरी आदि का काम करते हैं। कुछ और व्यवसाय भी हैं। गांव के लिहाज से सम्पन्न कहे जा सकते हैं। उनके घरों में तलवार-ढाल के चिन्ह उनकी दीवारों पर टंगे हैं। प्रेम सागर ने कहा कि इन सबके चित्र उन्होने भेजे हैं। पर मंदिर, औषधीय पौधों, डा. अभि या अन्य लोगों और शिवलिंगी के चित्र मुझे नजर नहीं आये उनके चित्रों के हुजूम में।
कुल मिला कर मोटा दड़वा के आसपास के ही अनेक अनुभव प्रेमसागर ने सवेरे पौने नौ बजे चलते चलते मुझे गिना दिये। आजकल वे मोबाइल जेब में रख कर, ब्लू-टूथ स्पीकर से कॉल अटेण्ड करते बोलते बतियाते चलते हैं। उनके हाथ फ्री रहते हैं। दो तीन महीने में तकनीकी रूप से एडवांस हो गये हैं, प्रेमसागर पहले की अपेक्षा। कहीं ज्यादा प्रगतिशील कांवरिया!
रास्ते में प्रेमसागर को कई नदियां मिलीं। चित्रों में वे बड़ी लगती हैं। उनमें पानी भी पर्याप्त है। पर उनके रास्ते में कोई नदी नक्शे में नजर नहीं आयी। आंचलिक क्षेत्र का गूगल मैप इस मामले में कमजोर प्रतीत होता है। उन नदियों में पक्षी भी बहुत हैं। कुछ प्रवासी पक्षी दिखते हैं।
दोपहर में प्रेमसागर कहीं सो गये। तीन बजे उठ कर फिर चलना शुरू किये और शाम छ बजे घोघावदर में रामदेव बाबा पीर के एक मंदिर में अपने लिये तलाश चुके थे। रात यहीं गुजार कर कल वे वीरपुर के लिये रवाना होंगे।
हर हर महादेव।
*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची *** प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है। नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ। और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है। पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है। |
प्रेमसागर पाण्डेय द्वारा द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा में तय की गयी दूरी (गूगल मैप से निकली दूरी में अनुमानत: 7% जोडा गया है, जो उन्होने यात्रा मार्ग से इतर चला होगा) – |
प्रयाग-वाराणसी-औराई-रीवा-शहडोल-अमरकण्टक-जबलपुर-गाडरवारा-उदयपुरा-बरेली-भोजपुर-भोपाल-आष्टा-देवास-उज्जैन-इंदौर-चोरल-ॐकारेश्वर-बड़वाह-माहेश्वर-अलीराजपुर-छोटा उदयपुर-वडोदरा-बोरसद-धंधुका-वागड़-राणपुर-जसदाण-गोण्डल-जूनागढ़-सोमनाथ-लोयेज-माधवपुर-पोरबंदर-नागेश्वर |
2654 किलोमीटर और यहीं यह ब्लॉग-काउण्टर विराम लेता है। |
प्रेमसागर की कांवरयात्रा का यह भाग – प्रारम्भ से नागेश्वर तक इस ब्लॉग पर है। आगे की यात्रा वे अपने तरीके से कर रहे होंगे। |
Shekhar Vyas फेसबुक पेज पर –
🙏🏻 शिवलिंगी महत्वपूर्ण आयुर्वेदिक पौधा है । पहले बहुत बार आसपास अंचल में दिख जाता था ,अभी तो बहुत बरस हुए देखे ।
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सर, गूगल मैप जो तसवीर दिखा रहा है शायद वो गर्मियों में कैप्चर की हो सैटेलाइट के जरिए। इसीलिए शायद जो तालाब या नदियां लबालब भरे दिख रहे हैं अभी वो नक्शे में नजर न आ रहे हो। अन्यथा गूगल मैप बहुत ही उम्दा तकनीकी सहायता हैं। गूगल की कई एप्पलीकेशन बहुत ही उपयोगी हैं अनजानी जगहों के लिए।
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बहुत सम्भव है कि आप जैसा कह रहे हैं, वही हो. स्थानों और सड़कों की जानकारी विस्तृत है मैप में.
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जैसे शैलेंद्र भैया बता रहे वैसे इस साल लगभग 7 महीने बारिश के रहे है। और ये भादर नदी की शुरुआत की धाराए है, भादर मुख्यतः दो बड़ी और काफी सारी छोटी धारा मिलके जेतपुर से एक धारा में बहती है। जेतपुर में बांध है जो चन्द्राकार है व दोनो कोने एक एक धारा से बनते है। पूरे सौराष्ट्र में बहने वाली एक मात्र नदी है।
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गंगामैया के चरणों मे रहने वालों के लिए ये बरसाती नाले जैसे है। माघ, फागुन आते आते ये सब सुख जायेंगे।
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मजे की बात यह पाई कि माइक्रोसॉफ्ट के मैप में, जिसमें स्थानों की डिटेल्स कम हैं, वहां ये नदी की धाराएं ठीक से दिखाई गई हैं. मध्य प्रदेश की नदियों के बारे में भी ऐसी ही बात मैंने पाई थी जहां नर्मदा की कई छोटी ट्रिब्यूटरी नदियां गूगल मैप पर नहीं थीं पर माइक्रोसॉफ्ट वाले पर थीं.
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