किल्लत का अर्थशास्त्र चल रहा है क्या?


कोटा-परमिट राज का जमाना था। तब हर चीज का उत्पादन सरकार तय करती थी। सरकार इफरात में नहीं सोचती। लिहाजा किल्लत बनी रहती थी। हर चीज की कमी और कालाबाजारी। उद्यमिता का अर्थ भी था कि किसी तरह मोनोपोली बनाये रखा जाय और मार्केट को मेनीप्युलेट किया जाय। खूब पैसा पीटा ऐसे मेनीप्युलेटर्स ने। परContinue reading “किल्लत का अर्थशास्त्र चल रहा है क्या?”

होली का घोड़ा


कपड़े का घोड़ा। लाल चूनर की कलगी। काला रंग। भूसा, लुगदी या कपड़े का भरा हुआ। मेला से ले कर आया होगा कोई बच्चा। काफी समय तक उसका मनोरंजन किया होगा घोड़े ने। अन्तत: बदरंग होता हुआ जगह जगह से फटा होगा। बच्चे का उसके प्रति आकर्षण समाप्त हो गया होगा। घर में कोने परContinue reading “होली का घोड़ा”

तनाव और किडनी के रोगों में उपयोगी चटनियां


पंकज अवधिया जी ने बिल्कुल समय पर अपना आलेख भेज दिया। और मुझे लगा कि यह मुझे ध्यान में रख कर लिखा है उन्होंने। तनाव से मुक्ति कौन नहीं चाहता? और मैं तो इस समय कार्य-परिवर्तन के तनाव से गुजर ही रहा हूं। मैं अपने दफ्तर से १४ किलोमीटर दूर रहता हूं। अगर दफ्तर केContinue reading “तनाव और किडनी के रोगों में उपयोगी चटनियां”

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