भाद्रपद बीत गया। कुआर के शुरू में बारिश झमाझम हो रही है। अषाढ़-सावन-भादौं की कमी को पूरा कर रहे हैं बादल। पर गंगामाई कभी उतरती हैं, कभी चढ़ती हैं। कभी टापू दीखने लगते हैं, कभी जलमग्न हो जाते हैं। दिवाली के बाद कछार में सब्जी की खेती करने वाले तैयारी करने लगे हैं। पहले कदमContinue reading “कछार पर कब्जा”
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बन्दर पांडे
बन्दर पांडे भटक कर आ गये हैं। इकल्ले। भोजन छीन कर खाते हैं – सो बच्चों को बनाते हैं सॉफ्ट टार्गेट। पड़ोस के शुक्ला जी के किरायेदार के लड़के और लड़की को छीना-झपटी में काट चुके हैं। बिचारे किरायेदार जी इस चक्कर में ड्यूटी पर न जा सके। हनुमानजी के आईकॉन हैं बन्दर पांडे –Continue reading “बन्दर पांडे”
गरिमामय वृद्धावस्था
झुकी कमर सजदे में नहीं, उम्र से। और उम्र भी ऐसी परिपक्व कि समय के नियमों को चुनौती देती है। यहीं पास में किसी गली में रहती है वृद्धा। बिला नागा सवेरे जाती है गंगा तट पर। धोती में एक डोलू (स्टील का बेलनाकार पानी/दूध लाने का डिब्बा) बंधा होता है। एक हाथ में स्नान-पूजाContinue reading “गरिमामय वृद्धावस्था”
