पानी की सुराही बनाम पानी का माफिया


पानी के पुराने प्रबन्धन के तरीके विलुप्त होते जा रहे हैं। नये तरीकों में जल और जीवों के प्रति प्रेम कम; पैसा कमाने की प्रवृत्ति ज्यादा है। प्रकृति के यह स्रोत जैसे जैसे विरल होते जायेंगे, वैसे वैसे उनका व्यवसायीकरण बढ़ता जायेगा। आज पानी के साथ है; कल हवा के साथ होगा। और जल परContinue reading “पानी की सुराही बनाम पानी का माफिया”

मिट्टी का चूल्हा


मेरे पड़ोस में यादव जी रहते हैं। सरल और मेहनतकश परिवार। घर का हर जीव जानता है कि काम मेहनत से चलता है। सवेरे सवेरे सब भोजन कर काम पर निकल जाते हैं। कोई नौकरी पर, कोई टेम्पो पर, कोई दुकान पर। यादव जी का चूल्हा और उपले की टोकरी अपनी छत पर जब हमContinue reading “मिट्टी का चूल्हा”

तिब्बत : कुछ खास नहीं दिखता हिन्दी ब्लॉगजगत में


मेरी गली में छोटा पिल्ला है। इसी सर्दियों की पैदाइश। जाने कैसे खुजली का रोग हो गया है। बाल झड़ते जा रहे हैं। अपने पिछले पंजों से खुजली करता रहता है। मरगिल्ला है। भरतलाल ने उसे एक दया कर एक डबल रोटी का टुकड़ा दे दिया। मैने देखा कि खुजली से वह इतना परेशान थाContinue reading “तिब्बत : कुछ खास नहीं दिखता हिन्दी ब्लॉगजगत में”

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