आज के चरित्र थे बऊ यादव। पास के गांव इंटवाँ के हैं। साथ में पांच छ डिब्बे, प्लास्टिक के बर्तन आदि ले कर आये थे।
गांव का आदमी बऊ! एक छोटी सी वार्ता में मुझे कई शब्द सिखा दिये – मरता, निछौंछे, अरररर!
Category Archives: गांवदेहात
कालीन की फिनिशिंग
उल्टी कालीन को सीधा कर एक व्यक्ति – अजय – ने मुझे दिखाया। उसने कहा कि उन्हें तो अपने काम की मजूरी मिलती है। मजूरी यानी रोजी रोटी का जरीया। बाकी, असल में कमाई तो मालिक या एक्स्पोर्टक की होती है।
डेयरी से परिवर्तन, अजय दुबे, मटकीपुर
आज के चरित्र थे अजय दुबे। वे पांच सात अलग अलग पशुओं का दूध अलग अलग डिब्बों में ले कर आये थे। सब की पर्चियां एक साथ निकलीं। एक मीटर लम्बा था प्रिण्ट आउट। सब पर अंकित मूल्य को मैंने जोड़ा तो नौ सौ- हजार के आसपास निकला।
