आज सवेरे फंस गये रेत की आन्धी के बीच। घर से जब निकले तो हवा शांत थी। घाट की सीढ़ियां उतर गंगा की रेती में हिलते ही तेज हो गयी और सौ कदम चलते ही तेज आंधी में बदल गयी। दृष्यता पांच दस मीटर भर की रह गयी। रेत में आंख खोलना भारी पड़ गया।Continue reading “आंधी के बीच – भय और सौन्दर्य”
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श्वान मित्र संजय
कछार में सवेरे की सैर के दौरान वह बहुधा दिख जाता है। चलता है तो आस पास छ-आठ कुत्ते चलते हैं। ठहर जाये तो आस पास मंडराते रहते हैं। कोई कुत्ता दूर भी चला जाये तो पुन: उसके पास ही आ जाता है। कुत्ते कोई विलायती नहीं हैं – गली में रहने वाले सब आकारContinue reading “श्वान मित्र संजय”
पिलवा का नामकरण
जवाहिरलाल मुखारी करता जाता है और आस पास घूमती बकरियों, सुअरियों, कुत्तों से बात करता जाता है। आते जाते लोगों, पण्डा की जजमानी, मंत्रपाठ, घाट पर बैठे बुजुर्गों की शिलिर शिलिर बातचीत से उसको कुछ खास लेना देना नहीं है। एक सूअरी पास आ रही है। जवाहिर बोलने लगता है – आउ, पण्डा के चौकीContinue reading “पिलवा का नामकरण”
