श्वान मित्र संजय


कछार में सवेरे की सैर के दौरान वह बहुधा दिख जाता है। चलता है तो आस पास छ-आठ कुत्ते चलते हैं। ठहर जाये तो आस पास मंडराते रहते हैं। कोई कुत्ता दूर भी चला जाये तो पुन: उसके पास ही आ जाता है। कुत्ते कोई विलायती नहीं हैं – गली में रहने वाले सब आकारContinue reading “श्वान मित्र संजय”

पिलवा का नामकरण


जवाहिरलाल मुखारी करता जाता है और आस पास घूमती बकरियों, सुअरियों, कुत्तों से बात करता जाता है। आते जाते लोगों, पण्डा की जजमानी, मंत्रपाठ, घाट पर बैठे बुजुर्गों की शिलिर शिलिर बातचीत से उसको कुछ खास लेना देना नहीं है। एक सूअरी पास आ रही है। जवाहिर बोलने लगता है – आउ, पण्डा के चौकीContinue reading “पिलवा का नामकरण”

हरीलाल का नाव समेटना


विनोद प्वॉइण्ट पर भूसा के बोरे और डण्ठल के गठ्ठर दिख रहे थे। एक नाव किनारे लग चुकी थी और दो लोग उसकी रस्सी पकड़ कर उसे पार्क कर रहे थे। हमने तेजी से कदम बढ़ाये कि यह गतिविधि मोबाइल के कैमरे में दर्ज कर सकें। पतला सा नब्बे-सौ ग्राम का मोबाइल बड़े काम कीContinue reading “हरीलाल का नाव समेटना”

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