बड़े जिद्दी किस्म के लोग हैं। इन्हें अपने प्रॉविडेण्ट फण्ड और रिटायरमेण्ट का पैसा गिनना चाहिये। फेड आउट होने का उपक्रम करना चाहिये। पर ये रोज पोस्ट ठेल दे रहे हैं। ये ओल्डीज क्या लिखना चाह रहे हैं? क्या वह समाज के हित में है? क्या उसके टेकर्स हैं? मूकज्जी की वाणी एक बार खुलतीContinue reading “ओल्डीज के लिये ब्लॉगिंग स्पेस”
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लंगोटान्दोलन!
तीन चार दिन के लिये ब्लॉगजगताविमुख क्या हुआ; अधोवस्त्र क्रान्ति हो गयी! ऐसे ही, जब हम भकुआ थे तब हिप्पियों नें यौनक्रान्ति कर दी थी और हम अछूते निकल गये। तब छात्र जीवन में पिताजी के कहे अनुसार परीक्षा में अंकों के लिये जद्दोजहद करते रह गये। उनकी न मानते, तो सरकारी नौकरी की बजायContinue reading “लंगोटान्दोलन!”
शब्दों का टोटा
संकल्प: हम भी पटखनी खाने को तैयार हैं! संकल्पीय शर्त: बशर्ते हजार पांच सौ नये नकोर, ब्लॉग पर प्रयोग योग्य, देशज/संस्कृताइज्ड शब्दों का भण्डार मिल सके। असल में शब्दों का पड़ रहा है टोटा।1 दफ्तर में पढ़ते हैं फाइलों की सड़ल्ली नोटिंग या घसीटे हुये माई-डियरीय डेमी ऑफीशियल पत्र/सर्कुलर। हिन्दी में कुछ पढ़ने में नहींContinue reading “शब्दों का टोटा”
