@@ सर्चना = सर्च करना @@ मुझे एक दशक पहले की याद है। उस जमाने में इण्टरनेट एक्प्लोरर खड़खड़िया था। पॉप-अप विण्डो पटापट खोलता था। एक बन्द करो तो दूसरी खुल जाती थी। इस ब्राउजर की कमजोरी का नफा विशेषत: पॉर्नो साइट्स उठाती थीं। और कोई ब्राउजर टक्कर में थे नहीं। बम्बई गया था मैं।Continue reading “सर्चने का नजरिया बदला!”
Category Archives: हिन्दी
आलू कहां गया?
भाई लोग गुटबाजी को ले कर परेशान हैं और मैं आलू को ले कर। इस साल कानपुर-फर्रुखाबाद-आगरा पट्टी में बम्पर फसल हुई थी आलू की। सामान्यत: १०० लाख टन से बढ़ कर १४० लाख टन की। सारे उत्तर प्रदेश के कोल्ड-स्टोरेज फुल थे। आस पास के राज्यों से भी कोल्ड-स्टोरेज क्षमता की दरकार थी इसContinue reading “आलू कहां गया?”
हिन्दी का मेरा डेढ़ साल का बहीखाता
मेरा डेढ़ साल के ब्लॉग पर हिन्दी लेखन और हिन्दी में सोचने-पढ़ने-समझने का बहीखाता यह है: धनात्मक ॠणात्मक हिन्दी में लिखना चुनौतीपूर्ण और अच्छा लगता है। हिन्दी में लोग बहुत जूतमपैजार करते हैं। हिन्दी और देशज/हिंगलिश के शब्द बनाना भले ही ब्लॉगीय हिन्दी हो, मजेदार प्रयोग है। उपयुक्त शब्द नहीं मिलते। समय खोटा होता हैContinue reading “हिन्दी का मेरा डेढ़ साल का बहीखाता”
