करछना की गंगा


मैने देखा नहीं करछना की गंगा को। छ महीने से मनसूबे बांध रहा हूं। एक दिन यूं ही निकलूंगा। सबेरे की पसीजर से। करछना उतरूंगा। करछना स्टेशन के स्टेशन मास्टर साहब शायद किसी पोर्टर को साथ कर दें। पर शायद वह भी ठीक नहीं कि अपनी साहबी आइडेण्टिटी जाहिर करूं! करछना अकेले ही चल दूंगाContinue reading “करछना की गंगा”

“रुद्र” काशिकेय पर प्रथम टीप


अपनी मूर्खता पर हंसी आती है। कुछ वैसा हुआ – छोरा बगल में ढुंढाई शहर में!  राहुल सिंह जी की टिप्पणी थी टल्लू वाली पोस्ट पर – अपरिग्रही टल्‍लू ने जीवन के सत्‍य का संधान कर लिया है और आपने टल्‍लू का, बधाई। जगदेव पुरी जी से आपकी मुलाकात होती रहे। अब आपसे क्‍या कहेंContinue reading ““रुद्र” काशिकेय पर प्रथम टीप”

हिन्दी में पुस्तक अनुवाद की सीमायें


दो पुस्तकें मैं पढ़ रहा हूं। लगभग पढ़ ली हैं। वे कुछ पोस्ट करने की खुरक पैदा कर रही हैं। खुरक शायद पंजाबी शब्द है। जिसका समानार्थी itching या तलब होगा। पहली पुस्तक है शिव प्रसाद मिश्र “रुद्र” काशिकेय जी की – बहती गंगा। जिसे पढ़ने की प्रेरणा राहुल सिंह जी से मिली। ठिकाना बतायाContinue reading “हिन्दी में पुस्तक अनुवाद की सीमायें”

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