यह चलती ट्रेन में लिखी गयी पोस्ट है!


मुझे २३९७, महाबोधि एक्स्प्रेस से एक दिन के लिये दिल्ली जाना पड़ रहा है1. चलती ट्रेन में कागज पर कलम या पेन्सिल से लिखना कठिन काम है. पर जब आपके पास कम्प्यूटर की सुविधा और सैलून का एकान्त हो – तब लेखन सम्भव है. साथ में आपके पास ऑफलाइन लिखने के लिये विण्डोज लाइवराइटर होContinue reading “यह चलती ट्रेन में लिखी गयी पोस्ट है!”

किस्सा-ए-टिप्पणी बटोर : देबाशीष उवाच


पिछले दिनो ९ सितम्बर को शास्त्री जे सी फिलिप के सारथी नामक चिठ्ठे पर पोस्ट थी – चिठ्ठों पर टिप्पणी न करें. इस में देबाशीष ने यह कहते हुये कि टिप्पणियां अपने आप में चिठ्ठे की पठनीयता का पैमाना नहीं है; टिप्पणी की थी – … सचाई यह है कि मैं चिट्ठे समय मिलने परContinue reading “किस्सा-ए-टिप्पणी बटोर : देबाशीष उवाच”

कबि न होहुं नहिं चतुर कहाऊं


कबि न होहुं नहिं चतुर कहाऊं; मति अनुरूप राम गुण गाऊं. बाबा तुलसीदास की भलमनसाहत. महानतम कवि और ऐसी विनय पूर्ण उक्ति. बाबा ने कितनी सहजता से मानस और अन्य रचनायें लिखी होंगी. ठोस और प्रचुर मात्रा में. मुझे तो हनुमानचालिसा की पैरोडी भी लिखनी हो तो मुंह से फेचकुर निकल आये. इसलिये मैं यत्र-तत्रContinue reading “कबि न होहुं नहिं चतुर कहाऊं”

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