मेरी पत्नी जी की सरकारी नौकरी विषयक पोस्ट पर डा. मनोज मिश्र जी ने महाकवि चच्चा जी की अस्सी साल पुरानी पंक्तियां प्रस्तुत कीं टिप्पणी में – देश बरे की बुताय पिया – हरषाय हिया तुम होहु दरोगा। (नायिका कहती है; देश जल कर राख हो जाये या बुझे; मेरा हृदय तो प्रियतम तब हर्षितContinue reading “अगले जनम मोहे कीजौ दरोगा”
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पारस पत्थर
पारस पत्थर साइकॉलॉजिकल कन्सेप्ट है; फिजिकल कन्सेप्ट नही। आप किसी भी क्षेत्र में लें – ब्लॉगरी में ही ले लें। कई पारस पत्थर मिलेंगे। माटी में दबे या पटखनी खाये! मै तिलस्म और विज्ञान के मध्य झूलता हूं। एटॉमिक संरचना की मानी जाये तो कोई ऐसा पारस पत्थर नहीं होता है जो लोहे को सोनाContinue reading “पारस पत्थर”
बेगारी पर हिन्दी
साहित्यकार हिन्दी का बेटा-बेटी है। शायद वसीयत भी उसी के नाम लिख रखी है हिन्दी ने। न भी लिख रखी है तो भी साहित्यकार मानता है कि उत्तराधिकार कानूनानुसार न्यायव्यवस्था उसी के पक्ष में निर्णय देगी। हिन्दी का जो भी है, उसका है, यह शाश्वत विचार है साहित्यकार का।* बेगारी पर पोस्ट ठेलक हम जैसेContinue reading “बेगारी पर हिन्दी”
