कुछ ब्लॉगर, जिनसे ओरीजिनल* नया अपेक्षित है, थोक कट-पेस्टीय ठेलते पाये गये हैं। ऐसा नहीं कि वह पढ़ना खराब लगा है। बहुधा वे जो प्रस्तुत करते हैं वह पहले नहीं पढ़ा होता और वह स्तरीय भी होता है। पर वह उनके ब्लॉग पर पढ़ना खराब लगता है। सतत लिख पाना कठिन कार्य है। और अपनेContinue reading “थोक कट-पेस्टीय लेखन”
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कुहासा
मौसम कुहासे का है। शाम होते कुहरा पसर जाता है। गलन बढ़ जाती है। ट्रेनों के चालक एक एक सिगनल देखने को धीमे होने लगते हैं। उनकी गति आधी या चौथाई रह जाती है। हम लोग जो आकलन लगाये रहते हैं कि इतनी ट्रेनें पार होंगी या इतने एसेट्स (इंजन, डिब्बे, चालक आदि) से हमContinue reading “कुहासा”
भय और अज्ञान की उत्पादकता
पिछली पोस्ट पर कई टिप्पणियां भय के पक्ष में थीं। बालक को भय दिखा कर साधा जाता है। यह भी विचार व्यक्त किया गया कि विफलता का भय सफलता की ओर अग्रसर करता है – अर्थात वह पॉजिटिव मोटीवेटर है। पता नहीं। लगता तो है कि टिप्पणियों में दम है। भय से जड़ता दूर होतीContinue reading “भय और अज्ञान की उत्पादकता”
