ज हां मैं रहता हूं , वह निम्न मध्यमवर्गीय मुहल्ला है। सम्बन्ध , सम्बन्धों का दिखावा , पैसा , पैसे की चाह , आदर्श , चिर्कुटई , पतन और अधपतन की जबरदस्त राग दरबारी है। कुछ दिनों से एक परिवार की आंतरिक कलह के प्रत्यक्षदर्शी हो रहे हैं हम। बात लाग – डांट से बढ़Continue reading “पारिवारिक कलह से कैसे बचें”
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अभी कहां आराम बदा…
पश्चिम रेलवे के रतलाम मण्डल के स्टेशनों पर रॉबर्ट फ्रॉस्ट की कविता का हिन्दी अनुवाद टंगा रहता था। यह पंक्तियां नेहरू जी को अत्यन्त प्रिय थीं: गहन सघन मनमोहक वन, तरु मुझको याद दिलाते हैं किन्तु किये जो वादे मैने याद मुझे आ जाते हैं अभी कहाँ आराम बदा यह मूक निमंत्रण छलना हैContinue reading “अभी कहां आराम बदा…”
एक सामान्य सा दिन
एक सामान्य सा दिन कितना सामान्य होता है? क्या वैसा जिसमें कुछ भी अनापेक्षित (surprise) न हो? क्या वैसा जिसमें अनापेक्षित तो हो पर उसका प्रभाव दूरगामी न हो? मेरा कोई दिन सामान्य होने पर भी इस कसौटी पर खरा नहीं उतरता। मेरा दिन होता है अमूमन, फीका और बेमजा। प्लेन वनीला आइसक्रीम सा लगताContinue reading “एक सामान्य सा दिन”
