एक बेवजहखुक-खुक हंसती लड़की…एक समय से पहले ब्याहीनवयौवना कम, लड़की ज्यादाऔर जले मांस की सड़ान्ध केबीच में होता हैकेवल एक कनस्तर घासलेटऔर “दो घोड़े” ब्राण्ड दियासलाई कीएक तीली भर का अंतर—–अलसाये निरीह लगते समाज मेंउग आते हैंतेज दांतउसकी आंखें हो जाती हैं सुर्ख लालभयानक और वीभत्स!मैं सोते में भी डरता हूंनींद में भी टटोल लेताContinue reading “खुक-खुक हंसती लड़की…..”
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वृद्धावस्था के कष्ट और वृन्दावन-वाराणसी की वृद्धायें
मेरे मित्र श्री रमेश कुमार (जिनके पिताजी पर मैने पोस्ट लिखी थी) परसों शाम मुझे एसएमएस करते हैं – एनडीटीवी इण्डिया पर वृद्धों के लिये कार्यक्रम देखने को कहते हैं. कार्यक्रम देखना कठिन काम है.पहले तो कई महीनों बाद टीवी देख रहा हूं तो “रिमोट” के ऑपरेशन में उलझता हूं. फिर वृद्धावस्था विषय ऐसा हैContinue reading “वृद्धावस्था के कष्ट और वृन्दावन-वाराणसी की वृद्धायें”
सिन्दबाद जहाजी और बूढ़ा
बोधिस्त्व को सपने आ रहे हैं. मुझे भी सिन्दबाद जहाजी का सपना आ रहा है. सिन्दबाद जहाजी की पांचवी यात्रा का सपना. वह चमकदार शैतानी आंखों वाला बूढ़ा मेरी पीठ पार सवार हो गया है. मुझे समझ नहीं आ रहा कि उससे कैसे पीछा छुड़ाया जाये. मेरे अन्दर का जीव हर बार यात्रा पर निकलContinue reading “सिन्दबाद जहाजी और बूढ़ा”
