सवेरे समय से निकलना। रास्ते को देखते चलना। पगला बाबा से मुलाकात और सांझ ढलने के पहले मुकाम पर पंहुच जाना – बहुत बढ़िया चले प्रेमसागर! ऐसे ही चला करो, दिनो दिन। तब तुम पर खीझ भी नहीं होगी। प्रेम पर प्रेम बना रहेगा।
भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
सवेरे समय से निकलना। रास्ते को देखते चलना। पगला बाबा से मुलाकात और सांझ ढलने के पहले मुकाम पर पंहुच जाना – बहुत बढ़िया चले प्रेमसागर! ऐसे ही चला करो, दिनो दिन। तब तुम पर खीझ भी नहीं होगी। प्रेम पर प्रेम बना रहेगा।