इतना जरूर समझ आया कि पेट पालने को बहुतेरे उद्यम हैं। और उसके लिये सरकार को निहोरते निठल्लों की तरह बैठा रहना कोई सम्मानजनक समाधान नहीं है। आपके पास ऊंट हो तो ऊंट से, गदहे से, वाहन या सग्गड़ (ठेला) से सामान ढो कर अर्जन किया जा सकता है।
मैं, ज्ञानदत्त पाण्डेय, गाँव विक्रमपुर, जिला भदोही, उत्तरप्रदेश (भारत) में रह कर ग्रामीण जीवन जानने का प्रयास कर रहा हूँ। मुख्य परिचालन प्रबंधक पद से रिटायर रेलवे अफसर; पर ट्रेन के सैलून को छोड़ गांव की पगडंडी पर साइकिल से चलने में कठिनाई नहीं हुई। 😊
इतना जरूर समझ आया कि पेट पालने को बहुतेरे उद्यम हैं। और उसके लिये सरकार को निहोरते निठल्लों की तरह बैठा रहना कोई सम्मानजनक समाधान नहीं है। आपके पास ऊंट हो तो ऊंट से, गदहे से, वाहन या सग्गड़ (ठेला) से सामान ढो कर अर्जन किया जा सकता है।