इस पूरे समुद्र तटीय क्षेत्र में लोग सरल हैं, धर्म में श्रद्धा रखते हैं और उनमें धोखा देने की वृत्ति नहीं है। लोग शाकाहारी हैं और शराब का सेवन नहीं करते। बकौल दिलीप जी, लोगों में धूर्तता नहीं, भोलापन है और परनिंदा में समय व्यतीत नहीं करते।
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गड़ू से लोयेज
भला हो दिलीप थानकी जी का जो पोरबंदर से प्रेमसागर की अगवानी करने के लिये आये और उनको स्थान दिखाये, भोजन आदि कराया; वर्ना सोमनाथ वालों ने तो घोर उपेक्षा ही की।… बाबा महादेव; मैं तो सोमनाथ जाने के पहले खूब सोचूंगा…
प्रभास तीर्थ (सोमनाथ) में एक दिन
देवी अहिल्याबाई तो दिव्य महिला थीं। उनके नाम से वाराणसी, उज्जैन और सोमनाथ के ज्योतिर्लिंगों के पुनरुद्धार का वर्णन मिलता है। उन्हें तो हिंदू जागरण का मुकुट मानना चाहिये।
