घर परिसर में वनस्पति और जीव, रंग और गंध, समय के साथ उनकी वृद्धि और बदलाव – कितना कुछ है जिसे देखा-महसूसा जा सकता है। उसके लिये इन पूर्वाग्रहों से ग्रस्त होने की आवश्यकता नहीं कि यह हिंदू जीवन धारा है या बौद्ध-जेन।
भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
घर परिसर में वनस्पति और जीव, रंग और गंध, समय के साथ उनकी वृद्धि और बदलाव – कितना कुछ है जिसे देखा-महसूसा जा सकता है। उसके लिये इन पूर्वाग्रहों से ग्रस्त होने की आवश्यकता नहीं कि यह हिंदू जीवन धारा है या बौद्ध-जेन।