यह दहशत शहर वालों का ही रचा हुआ है! वहां है प्रदूषण, भागमभाग, अकेलापन और असुरक्षा। गंदगी शहर से गांवों की ओर बहती है। वह गंदगी चाहे वस्तुओं की हो या विचारों की। गांव में अभी भी किसी भी चीज का इस्तेमाल जर्जर होने तक किया जाता है। कचरा बनता ही कम है।
मैं, ज्ञानदत्त पाण्डेय, गाँव विक्रमपुर, जिला भदोही, उत्तरप्रदेश (भारत) में ग्रामीण जीवन जी रहा हूँ। मुख्य परिचालन प्रबंधक पद से रिटायर रेलवे अफसर। वैसे; ट्रेन के सैलून को छोड़ने के बाद गांव की पगडंडी पर साइकिल से चलने में कठिनाई नहीं हुई। 😊
यह दहशत शहर वालों का ही रचा हुआ है! वहां है प्रदूषण, भागमभाग, अकेलापन और असुरक्षा। गंदगी शहर से गांवों की ओर बहती है। वह गंदगी चाहे वस्तुओं की हो या विचारों की। गांव में अभी भी किसी भी चीज का इस्तेमाल जर्जर होने तक किया जाता है। कचरा बनता ही कम है।