पूर्णिया के गुड्डू पांड़े


दियारा शब्द के आते ही मन में बाढ़ और डूब में आने वाले इलाके का दृश्य आ जाता है। इस जगह से कोसी ज्यादा दूर नहीं हैं। उस पाट बदलने वाली नदी से दियारा बिसहानपुर तीस-पैंतीस किमी की ही दूरी पर है।

बंग से अंग की ओर लौटना


अपने ही देश में, शाक्त श्रद्धा के बंग प्रांत में लाल रंग के वस्त्र पहने पदयात्री जोखिम महसूस करे; दुखद है! पर राजनीति धर्म पर भारी है! प्रेमसागर ने नलहाटी जा पदयात्रा करने की बजाय सुल्तानगंज आ कर वहां से यात्रा पर निकलने का निर्णय लिया।

रूपनारायण नदी का पाट


आज पैंतालीस किलोमीटर पैदल चले प्रेमसागर। रास्ते में एक जनरल स्टोर वाले लोगों ने उन्हें रोक कर पानी – मीठा खिलाया-पिलाया। हालचाल पूछा।
दुकान वाले सज्जन रांची के हैं। प्रेमसागर जमशेदपुर से। अच्छी सिनर्जी बन जाती है!

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