दिन में जो भी नदियां दिखीं, सब बड़े पाट वाली और चौड़ी। सब में एक बूंद पानी नहीं। फालगू नदी को तो सीता जी ने शाप दिया था, पर लगता है आसपास की सभी नदियों को वह शाप कस कर लगा है। नदियों में कुशा, कास, सरपत जैसी वनस्पति दीखती है।
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गया – मंगला गौरी दर्शन
गया में सही मायने में दया नहीं नजर आई। विंध्याचल में शक्तिपीठ पदयात्री होने के कारण आदर मिला था। माई की चुनरी उढ़ाई गयी थी। उसके उलट गया में यहां उन्हें टके सेर जवाब मिला – रुकने की जगह चाहिये तो पांच हजार का डोनेशन लाओ!
सेमरी के आगे से बिक्रमगंज
प्रेमसागर आगे की यात्रा की बात कर रहे हैं। तबियत ठीक नहीं है। होली का मौसम है। लोग रास्ते भर हुड़दंग करने वाले होंगे ही। पर उनको तो चलना है। चरैवेति, चरैवेति!
