आस्था और वास्तविकता के जबरदस्त विरोधाभासों की नदी हैं गंगा. आस्था ही है कि इस रास्ते दस दिनों से पीपल के पेड़ पर घण्ट में जल भर रहा हूँ मैं!
भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
आस्था और वास्तविकता के जबरदस्त विरोधाभासों की नदी हैं गंगा. आस्था ही है कि इस रास्ते दस दिनों से पीपल के पेड़ पर घण्ट में जल भर रहा हूँ मैं!