आज पैंतालीस किलोमीटर पैदल चले प्रेमसागर। रास्ते में एक जनरल स्टोर वाले लोगों ने उन्हें रोक कर पानी – मीठा खिलाया-पिलाया। हालचाल पूछा।
दुकान वाले सज्जन रांची के हैं। प्रेमसागर जमशेदपुर से। अच्छी सिनर्जी बन जाती है!
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रत्नावली शक्तिपीठ
यहां एक नहीं, दो रत्नावली शक्तिपीठ मंदिर मिले प्रेमसागर को। एक पुराना और एक नया। एक ही देवी के दो मंदिर और दो विग्रह। बंगाल में बहुत खींचतान है माता के ऊपर अपना कब्जा करने की।
दक्षिणेश्वर से भ्रामरी मेलाई चण्डी शक्तिपीठ
बंगाल के मंदिर आगंतुक पदयात्री को रात बिताने को जगह नहीं देते; यह जानना अच्छा नहीं लगा। बंगला संस्कृति की उदात्तता की खूब बात होती है। पर वह शायद मात्र बांगला भाषियों के लिये ही है। बंगाल को भारत के सभी हिस्सों के लिये खुलना चाहिये।
