अस्वीकृति को अधिकाधिक आमंत्रण दें

एक चीज जो आधी जिन्दगी के बाद मुझे बढ़िया (?) मिली है वह है ब्लॉगिंग में अस्वीकृति का अभाव. आप अण्ट-शण्ट जो लिखें छाप सकते हैं.पब्लिश बटन आपके अपने हाथ में है. और भला हो नारद का, कुछ शिकार तो होते ही हैं जो आप की पोस्ट पर क्लिक कर बैठेंगे.

पर क्या वास्तव में अस्वीकृति बुरी चीज है?

मैने लेख लिख कर सम्पादक को भेजने और स्वीकृति/अस्वीकृति का इंतजार नहीं झेला है. पर अन्य क्षेत्रों में अस्वीकृति तो झेली ही है.

ऐसा बहुत पढ़ा है कि फलाने की रचना कुछ जगह रिजेक्ट हुयी; बेचारा टूट गया. उसके मरने के बाद जब वह रचना छपी तो कालजयी साबित हुई. अत: लेखन या रिजेक्शन गलत नहीं था; लेखक का टूटना गलत था. बिना टूटे वह यत्न जारी रखता तो जीवित ही यशस्वी हो जाता.

कथा है कि एडीसन 1000 बार फेल हुये बल्ब के अनुसन्धान में. फिर एडीसन, एडीसन बन गये.

रिजेक्शन एक अनुशासन तो बनाता है. इतने ब्लॉगर जो लिख रहे हैं; अगर यह हो कि उनका लेखन एक मॉडरेटर देखेगा तो आप पायेंगे कि ब्लॉग की गुणवत्ता में 10% सुधार तो स्वत: आ जायेगा (यह वर्तमान गुणवत्ता पर प्रतिकूल टिप्पणी न मानी जाये). हमारा लेखन चमकेगा नहीं, अगर हम असफलता या अस्वीकृति का जायका नहीं पायेंगे. अस्वीकृति जरूरी नहीं बाहरी हो. अच्छे ब्लॉगर बता सकते हैं कि उन्होंने कितनी ब्लॉग पोस्ट कितनी बार मॉडीफाई की हैं या कितनी परमानेण्टली रिसाईकल बिन में फैंक दी हैं. वह भी तो रिजेक्शन ही है, सेल्फ-इंफ्लिक्टेड ही सही.

अगर आपके जीवन में असफलता/अस्वीकृति/रिजेक्शन नहीं है तो या तो आप बहुत भाग्यशाली हैं, या आपके लक्ष्य बहुत साधारण हैं. आज के युग में जहां इतनी जद्दोजहद है. मैं साधारण लक्ष्य की बात नहीं मान सकता. और परमानेण्ट भाग्यशाली तो वाल्ट-डिज़्नी के कार्टून चरित्र अंकल स्क्रूज़ को ही पाया है मैने.

इसलिये बन्धुओं, अगर दैदीप्यमान होना है तो अस्वीकृति/रिजेक्शन को अधिकाधिक आमंत्रण दो।

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पीसा जाता जब इक्षुदण्ड, झरती रस की धारा अखण्ड
मेंहदी जब सहती है प्रहार, बनती ललनाओं का शृंगार
मानव जब जोर लगाता है
पत्थर पानी बन जाता है
जब विघ्न सामने आते हैं, सोते से हमें जगाते हैं
मन को मरोड़ते हैं पलपल, तन को झंझोरते हैं पलपल
सत्पथ की ओर लगा कर ही
जाते हैं हमें जगा कर ही

(रश्मिरथी : दिनकर)

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

5 thoughts on “अस्वीकृति को अधिकाधिक आमंत्रण दें

  1. आपके विचार तो उत्तम हैं। लेकिन अस्वीकृति और उपेक्षा को आमंत्रित भी किया जा सकता है, यह बात कुछ समझ में नहीं आई। आजकल तो जुगाड़ और जान-पहचान का दौर है। पत्र-पत्रिकाओं में इसके सहारे कुछ भी और कैसा भी छपवा लिया जाता है। यहां तक कि चिट्ठों पर टिप्पणियों का भी जुगाड़ लोग कर लेते हैं। पुरस्कारों के मामले में तो यह फंडा सबसे अधिक कारगर रहा है। हालांकि शाश्वत सच्चाई तो यही है कि अस्वीकृति का दौर झेलने पर कई व्यक्तियों में दृढ़ता और संकल्प का भाव उन्हें बेहतर कार्य करने के लिए प्रेरित करता है। कुंदन तो आग से गुजरने पर ही अपनी पूरी चमक हासिल करता है।

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  2. चिट्ठे पर भी अगर अच्छा लगा कि नहीं, देखेंगे तो भाई जी, हमरी तो एक भी न छप पायेगी. सब रिसाईकिल में ही जायेंगी और सेव एज में पाथ रिसाकिल सीधे ही चुनने लग जायेंगे ताकि भेजना न पड़े.वैसे तो आपकी बात सही है…मगर हम अटक जायेंगे अगर पूरे से मान लें. कहो तो उड़न तश्तरी बंद कर दें. :)

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  3. भाई साहब रश्मी रथी की याद दिलाके का ध्न्यवाद १२ वे मे पढी थी मुझे भी यहा यही बढिया बात लगी लिखो और छापो फ़िर पढ लो सुधार दो बुरी लगले हटा दो पर छापेगा नही छापेगा चिन्ता नही

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  4. सहमत हूं आपसे ” उनका लेखन एक मॉडरेटर देखेगा तो आप पायेंगे कि ब्लॉग की गुणवत्ता में 10% सुधार तो स्वत: आ जायेगा”. कई बार हम चिट्ठा लिखते समय यह भूल जाते हैं हमारा भी कोई पाठ्क है ..क्योकि हमें लगता है कि कोई ना कोई तो पढ़ेगा ही . मैं तो अपनी खुद के पोस्ट कई बार पढ़ता हूँ और कई बार गलतियां सुधारता भी हूँ.

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