दशा शौचनीय है (कुछ) हिन्दी के चिठ्ठों की?

अज़दक जी आजकल बुरी और अच्छी हिन्दी पर लिख रहे हैं. उनके पोस्ट पर अनामदास जी ने एक बहूत (स्पेलिंग की गलती निकालने का कष्ट न करें, यह बहुत को सुपर-सुपरलेटिव दर्जा देने को लिखा है) मस्त टिप्पणी की है:

“…सारी समस्या यही है कि स्थिति शोचनीय है लेकिन कुछ शौचनीय भी लिख रहे हैं, टोकने पर बुरा मानने का ख़तरा रहता है, मैंने किसी को नहीं टोका है, लेकिन टोकने वालों का हाल देखा है…”

अब जहां भी बुरी या अच्छी हिन्दी की बात चलती है, मुझे बेचैनी होने लगती है. लगता है कभी भी कोई सज्जन मुझे उपदेश दे सकते हैं – जब लिखने की तमीज नहीं है, हर वाक्य में अंगरेजी के शब्द घुसेड़े जाते हो, तो लिखना बन्द क्यों नहीं कर देते? कैसे समझाऊं कि हिन्दी अच्छी हो या बुरी, लिखने में बड़ा जोर लगता है. अत: हम जो कुछ लिख पा रहे हैं, वह चाहे जितना बुरा हो, जोर लगा कर लिखने का ही परिणाम है. सालों साल सरकारी फाइलें अंग्रेजी में निपटाते और राजभाषा के फर्जी आंकड़ों को सही मानते; हिन्दी लिखना तो दूर सोचना भी अंग्रेजी में होने लगा था. अब रोज जो 200-250 शब्द हिन्दी में घसीट ले रहे हैं, वह शोचनीय हो या शौचनीय, संतोषप्रद है।

मन की एक बात रखना चाहता हूं – हिन्दी ब्लॉगरी का मार्ग प्रशस्त होगा तो शोचनीय या शौचनीय हिन्दी के बल पर ही होगा।

खैर, लिखने को तो लिख दिया है पर वास्तविकता है कि मेरे जैसा चिठेरा आत्ममुग्ध नही, आत्म-शंकित है. कौन कब गलतियां निकाल दे. हिन्दी अपनी मातृभाषा है. पर हायर सेकेण्डरी के बाद जो छूटी कि ये लगता रहता है कि कोई मातृभाषा के घर में पला/बढ़ा/रह रहा कह न दे – ‘कौन है ये जो हिन्दी की विरासत में हिस्सा बटाने चला आया है.’
——————————-
यह विशुद्ध आत्म-शंका का मामला है कि मैं यह ब्लॉग पोस्ट लिख रहा हूं. अन्यथा मुझे यह यकीन है कि उक्त दोनो सशक्त ब्लॉगर शायद ही कभी मेरे ब्लॉग को वक्र दृष्टि से देखते हों.

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

4 thoughts on “दशा शौचनीय है (कुछ) हिन्दी के चिठ्ठों की?

  1. Aapne kyon khudpar nigaah rakhi hai?Woh bhi tab, jab aur log aap par nigaah rakh rahe hain.Halaat ka andaaza is baat se lagaayein ki log doosre par nigaah rakhne mein masgool hain.Is sthiti ka mazaa leejiye aur atm-shanka se bachiye.Aapke case mein atm-shanka ka sthaan nahin ke baraabar hai.

    Like

  2. ज्ञानदत्त जी आप्के ब्लॉग मे ठुमकती गाडी और चलते रहने वाला फ्लिन्ट्स्टओन बहुत अच्छे हैं। भाषा विमर्श चालू रहे ।बस कोइ इत्ता ना पध ले कि ज्ञान कुली बन जाय।

    Like

  3. प्रमोद जी अब ज्ञान जी भी आप के अप्रगतिशील मोर्चा मे शामिल होने वाले है ख्याल रखियेगा ये ज्यादा देर पीछे नही चलते

    Like

  4. आप मुगालते में न रहें, महाराज.. सशक्‍त हों चाहें अशक्‍त, आप पर निगाह रखी जा रही है! आपकी हिंदी के एक-एक शब्‍द का आपसे जवाब लिया जाएगा!

    Like

Leave a reply to Shiv Kumar Mishra Cancel reply

Discover more from मानसिक हलचल

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Design a site like this with WordPress.com
Get started