उत्तर – रमानाथ अवस्थी की एक कविता का अंश


कविता हर एक के बस की बात नहीं है. मैं जो कुछ बनना चाहता था और नहीं बन पाया – उसमें काव्य लेखन भी एक आयाम है. इसलिये दूसरों की कविता से मन रमाना पड़ता है. रमानाथ अवस्थी की कविता/गीत मुझे बहुत प्रिय हैं.

समय के विविध रंग देखते देखते समय से एक अजीब सम्मोहन हो गया है. यह कब सुखद हो जाता है और कब कष्टकर – समझ नहीं आता. और बहुत सी ऊर्जा सुखद समय को लम्बा खींचने, दुखद को पलटने तथा दोनो का अंतर समझ समय को उत्तर देने में व्यतीत होती है.

आप फिलहाल इस विषय में अवस्थी जी की कविता के अंश देखें.

सवाल समय करेगा, उत्तर देना होगा!

आसानी से समय किसी को नहीं छोड़ता,
खामोशी के साथ एक दिन हमें तोड़ता,
कभी समय के सागर की कोई चाह नहीं,
और कभी यह करता कोई परवाह नहीं!
बुरे समय को सब-कुछ चना-चबेना होगा!

समय हुआ नाराज राम को वन में भेजा
और भरत को पूरा-पूरा राज सहेजा!
समय कभी देवता कभी दानव लगता है,
जो है नहीं सचेत उन्ही को यह ठगता है!
वह क्षण ही सच जब तू निरा अकेला होगा!

मार समय की बहुत बुरी होती है यारों,
अपने कर्मों से ही खुद को यहां संवारो!
पानी में जो डूब रहा है उसे निहारो,
अपनी जान लगा कर उसकी जान उबारो!
बालू में भी हमको नौका खेना होगा!
समय सवाल करेगा उत्तर देना होगा!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

5 thoughts on “उत्तर – रमानाथ अवस्थी की एक कविता का अंश

  1. वाह, अवस्थी जी को यहाँ पढ़ना अति आनन्ददायक रहा. समय समय पर अपने फुरसतिया जी भी उनके प्रेरक प्रसंग लाये हैं. उन्हें पढ़ना हमेशा ही एक विशिष्ट अनुभूति देता है. साधुवाद.

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  2. भाई वाहअपने मूल रुप में यह गीत कोई भाग्यवाद का पोषक नहीं, बल्कि रमानाथ अवस्थी का आत्मविश्वास दर्शा रहा है. आज यह गीत हम पढ़ रहे हैं, यही इसमें उद्घाटित सत्य का सबसे बड़ा प्रमाण है. अपके ब्लोग पर इस गीत के जरिये समय असल में हिंदी साहित्य के आलोचकों से उनकी करनी का हिसाब माँग रहा है. रमानाथ जी जैसे कई समर्थ रचनाकार हिंदी में केवल इसलिए चर्चा के बाहर रह गए क्योंकि वे किसी खेमे में कभी शामिल नहीं हुए. लेकिन जनता का प्यार ज़्यादातर ऐसे ही रचनाकारों को मिल और आज भी मिल रहा है. जिन्हे एक-दो किताबें लिख कर महान बने स्वनामधन्य आलोचकों ने जबरिया सिर पर बैठाना चाहा वे आलोचकों और विभिन्न पीठों के सिर पर तो बैठ गए लेकिन जनता ने उन्हें सीधे धुरिया दिया. किसी तरह चर्चा में बने रहने के लिए फालतू बतंगडो के टोटके करते रहने वाले बेचारे आलोचक अब इस पर भला क्या कहेंगे?

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  3. बढ़िया कविता!! दद्दा! अपना मानना है कि हम बिना पढ़े लिख भी नही सकते, अगर हमें अच्छा लिखना है तो उसके लिए अच्छा पढ़ना भी होगा!जितना ज्यादा पढ़ेंगे वह लिखने के लिए उतना ही उत्प्रेरक का काम करेगा, यह बात कविता पर भी लागू होती है!

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  4. कविता मे मजा आ गया,पर आपने अपना आईडिया खुद ही वापर डाला,हम तो अभी छाटने की प्रक्रिया मे ही थे:)

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