बार-बार देखो; हजार बार देखो!

मेरे एक मित्र हैं. सारी टिप्स लेने और सारी गणना करने के बाद एक शेयर खरीदते है. फिर पांच मिनट बाद उसकी वैल्यू चेक करते हैं. अगर पांच पैसे बढ़ गयी तो दस लोगों को बताते हैं कि उनकी स्टॉक रिसर्च कितनी जबरदस्त है. उनका सेंस आफ टाइम कितना एक्यूरेट है.

ये जितने ब्लॉगर हैं, पोस्ट लिखते ही नारद चेक करते हैं कि फीड एग्रीगेटर ने पकड़ी की नहीं. समय बीतता है और बेताबी बढ़ती है. कुछ कर नहीं सकते सिवाय बार-बार चेक करने और अंगूठा चूसने के. अचानक पोस्ट नारद के पन्ने पर आ जाती है तो जैसे कमोड पर पेट हल्का हो जाता है. बस उसके बाद स्टैटकाउण्टर की रीडिंग देखने लगते हैं. कई बार अन्देशा होता है कि कहीं स्टैटकाउण्टर वाले की साइट में स्नैग तो नहीं आ गया. वर्ना इतनी धांसूं पोस्ट पर भी रीडिंग बढ़ नही रही!

मेरे पिताजी पुराने जमाने के हैं. वे कम्प्यूटर नहीं देखते. वे घर के बिजली/पानी के मीटर को देखते हैं. ज्यादातर बिजली का मीटर उसकी डिस्क कितनी तेजी से भाग रही है. चश्मा लगा कर बिजली की यूनिट का काउण्टर पढ़ने का यत्न करते हैं. नहीं पढ़ पाते तो किसी को बुला कर पढ़वाते हैं. अगर काउण्ट आशानुरूप हुआ तो ठीक, वर्ना एक-आध पंखा-बत्ती का बटन टीप देते हैं.

मेरी पत्नीजी बार-बार कहती रहीं कि घण्टों ब्लॉगरी करते हो पर उससे धेले भर की भी तो आमदनी नहीं है. उनकी नैगिंग से परेशान हो कर मैने गूगल-एडसेंस के विज्ञापन चस्पां कर दिये हैं ब्लॉग पर. अब पत्नीजी का एक महत्वपूर्ण काम यह पता करना है कि एडसेंस एकाउण्ट में कितने पैसे आये. पाठक लोग इतने मिरचुक हैं कि कोई विज्ञापन क्लिक ही नहीं करता. इस रेट से तो 3 साल लगेंगे 100 डॉलर कमाने में. पर जब देखो तब वे एडसेंस एकाउण्ट चेक करती रहती हैं. एकाउण्ट चेक करने में ही आमदनी से ज्यादा खर्चा होता होगा!

भरतलाल (मेरा बंगलो-पियुन) दिनमें तीन बार बगीचे की नेनुआ-लौकी नाप आता है. नेनुओं की संख्या बताता है और लौकी के बारे में यह जानकारी देता है कि बस दो-तीन इंच और बढ़ गयी तो लौकी का कोफ्ता बन सकेगा.

मैं टीवी नहीं देखता पर एक बार की याद है. दो-तीन दिन तक पूरा देश बार-बार टीवी खोल कर देख रहा था और बता रहा था कि प्रिंस अभी गढ्ढ़े में ही है. बाहर निकलने में बस थोड़ा टाइम और लगेगा.

हर आदमी कुछ न कुछ देख रहा है. तकनीकी विकास ने देखने के संसाधन बढ़ा दिये हैं. इस देखने से कोई छोटी-बड़ी क्रांति हो रही हो ऐसा कतई नहीं है. पर समय है, उसे गुजारना है तो बस; देखो!

बार-बार देखो, हजार बार देखो, देखने की चीज है ये समय दिलरुबा.

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

6 thoughts on “बार-बार देखो; हजार बार देखो!

  1. बार बार देख देख कर बस आपकी पोस्ट खोज रहे थे और दिख ही गई-फायदा तो होता है बार बार देखने का और हजार बार देखने का.जिस गति से आपकी बातें चल रही हैं, शायद साल भर में तीन महिने में १०० डालर की स्थिती बन ही जाये, कोई आश्चर्य नहीं होगा-शुभकामनायें. आप तो जारी रहें. :)

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  2. देखिये, शेयर बाजार के निवेश पर मार्क ट्वेन ने जो कहा, उसे ही फालो करना चाहिए।ट्वेन साहब ने कहा कि जनवरी, फरवरी, मार्च, अप्रैल, मई, जून और जुलाई के महीने शेयर बाजार में निवेश के लिए एकदम सही नहीं हैं।वैसे यही बात अगस्त, सितंबर, अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर के बारे में भी कही जा सकती है। और जी हमरे ब्लाग पर जो आपने टिपेरा, उस बात में दम है, पर सोचिये कि ज्ञानियों की सोहबत किस जाम से कम है, सुबह से ही ज्ञानियों के सत्संग में जीते है, दिन और रात समझिये की सिर्फ यूं ही पीते हैं। सोजाम के नाम पर ना कोहराम उठाजाम उठा, जाम उठा, जाम उठा

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  3. हम तो कनफ़ुजिया रहे थे कि आज कही बाहर गये है का ज्ञान भाइसा,तो आज तो हमारा टिपियाने का बिल भी ज्यादा हो गया नही तो हम भी विज्ञापन को क्लिकवा देते

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  4. बार बार के चक्कर मा ही तो हम नारद पर आपकी पोस्ट बार-बार खोजते रहते है ना!

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  5. छै साढ़े छै का आपने चार घण्टे विलम्ब से चलकर पौने ग्यारह बजा दिया.. फिर कह रहे हैं कि बार बार देखो..?

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  6. सही है। हम भी बार-बार देखते हैं कि आज ज्ञानदत्तजी ने क्या लिखा! अभी देखा तो पता चला कि तीन मिनट पहले आपकी पोस्ट आ गयी। अब आप टिप्पणियां देख रहे होगे। पत्नीजी पूछ रहीं होंगी कोई विज्ञापन क्लिक किहिस कि नहीं ।:)

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