फीड एग्रेगेटर की आवश्यकता होती है विभिन्न साइट्स से निरंतर बदल रही सामग्री को एक स्थान पर एकत्रित करने की. हिन्दी एग्रेगेटर एक दिन में लगभग 100-125 अपडेटेड फीड दिखाता है. इतनी अपडेटेड फीड दिखाने के लिये तो गूगल रीडर ही सक्षम है. हां अगर पब्लिश बटन दबाते ही पोस्ट जग जाहिर होने की तलब हो और आप स्टैटकाउण्टर देखते हुये अपनी पोस्ट और रीडरशिप को बतौर चैट की एकाग्रता से मॉनीटर करने लगते हों, तो मामला अलग हो जाता है. गूगल रीडर तो अपडेट दिखाने में 7-8 घंटे तक की देरी कर देता है.
कुल मिला कर हिन्दी के हैं 600-700 ब्लॉग. सौ के आसपास सक्रिय. उसमें भी कई बाड़मेर पुलीस टाइप ब्लॉग. फिर आप मुहल्ले में रहते हैं तो शिव जी के त्रिशूल छाप ब्लॉग से क्या लेना-देना. अत: सौ में से आपकी प्रवृत्ति के बचे अधिकाधिक 50-60. उसके अलावा अगर आप को ठीक-ठाक लिखना है तो नेट पर और भी पढ़ना होगा. आपके बुकमार्क में 25-30 एक्टिव साइट्स और होंगी. मोटे तौर पार देखें तो आपको दिन भर में लगभग 100 साइट्स के अपडेट फीड्स पर नजर घुमानी है. आपके पास अगर पढ़ने की साउण्ड स्ट्रेटेजी नहीं है तो मर्कट की तरह उछल कूद करते रहें – एक शाख (एग्रेगेटर या साइट) से दूसरी पर. पहले एक शाख थी फीड एग्रेगेटर की, अब ढ़ेरों हैं. कल एक नया/सम्मोहक/ऊर्जावान एग्रीगेटर और आ गया है – ब्लॉगवाणी. और लोग भी शायद अपना लॉंच पैड चमका रहे हैं अपने फीड-एग्रेगेटर लॉंच करने को.
गूगल सर्च इंजन आपको हिन्दी विषयक सर्च भी ठीक-ठीक ही दे रहा है. वह किसी विषय पर जानकारी चाहिये तो हिन्दी में आपको लगभग सभी उपलब्ध सामग्री के लिंक सुझा देगा. ब्लॉग सर्च भी हिन्दी में बुरी जानकारी नहीं देता. सर्च की टूलबार तो आपके कम्प्यूटर में होगी ही जिसका आप घिस कर प्रयोग करते हों. ब्लॉगरोल का विभिन्न प्रकार से प्रयोग किया जाता है.
पर असली मजा है गूगल रीडर में. पहले मैं आरएसएस फीड ऑफ-लाइन देखने के लिये मोजिल्ला थण्डरबर्ड काम में लेता था. जब ब्रॉड-बैंड की सहूलियत मिल गयी तो धीरे-धीरे गूगल रीडर पर हाथ अजमाना प्रारम्भ किया. अपने काम के 40-50 ब्लॉग, 5-10 अखबार/न्यूज सेवायें और उतनी ही पत्रिकाओं के लिंक गूगल रीडर में जमा कर लिये हैं. अपने ब्लॉग पर कौन कंटिया फंसा रहा है उसका सर्च भी जमा कर रखा है. फिर सवेरे-दोपहर-शाम; जब मन करे खोल कर अपने “न पढ़े गये लिंक” चेक कर लेता हूं. मन हो तो वहीं पर पूरा लेख पढ़ भी लेता हूं – ज्यादातर लोग पूरी फीड देते हैं. कमेण्ट करने के लिये वहीं से साइट पर जा कर कमेण्ट भी कर आता हूं. दिन में एकआध बार, जब इच्छा हो(अभी फ्रीक्वेंसी ज्यादा है, पर उसे कम करने का इरादा है), किसी फीड एग्रेगेटर पर हो आता हूं जिससे हिन्दी जगत की रह-चह मिलती रहे.
गूगल रीडर या उस तरह के फीड रीडर के होते फीड-एग्रेगेटरों की (फीड की नहीं) बौछार सतत झेलने की जरूरत है क्या?
मित्रों, अपना समय प्रबन्धन सुधारने की बहुत जरूरत महसूस हो रही है. ब्लॉगों की केकोफोनी अब फीड एग्रेगेटरों की केकोफोनी में बदल रही है. हर एक अपने-अपने फार्मूले से इस या उस ब्लॉगर को बेहतर दिखा रहा है. ब्लॉगर जबरी तनावग्रस्त हो सकते हैं – समझ नहीं आता कि किस तरह से इण्टरनेट सर्फिंग मैनेज किया जाये. इस बेसुरेपन से निकलने की जरूरत है. एक बार आप यह तय कर लें कि आप ब्लॉगरी में बेहतर लेखन के लिये हैं, अपने लेखन के अधिकाधिक ग्राहक तलाशने के लिये हैं या प्रतिस्पर्धा के लिये. उसी के अनुसार अपना रास्ता चुनना आसान हो सकता है.
फीड एग्रेगेटर चौपाल या अड्डा है. यहां आपकी सामाजिक जरूरतें पूरी हो सकती हैं (?!). (और वे सामाजिक जरूरतें भी क्या जो जूतमपैजार को बढ़ावा दें!) पर अगर पठनीय सामग्री के कैप्स्यूल की तलाश है, तो गूगल रीडर या इसी प्रकार के अन्य यंत्र का फायदा क्यों न उठाया जाये?
गूगल रीडर और फीड एग्रेगेटर को आप सिनेमा हॉल और घर के होम थियेटर की तुलना से समझ सकते हैं. गूगल रीडर आपका पर्सनल फीड एग्रेगेटर है. जैसे जब आपने अपना टीवी खरीदा था तो सिनेमा हॉल जाने की वृत्ति कम हो गयी थी. फिर वीसीआर/डीवीडी प्लेयर ने उस वृत्ति को और भी कम कर दिया. उसी प्रकार गूगल रीडर से फीड एग्रेगेटर की जरूरत भी कम हो जायेगी. हर एक के पास जब अपना समेटक हो तो सहकारी समेटक पर कौन जाये?
मै यह जानता हूं कि जब मैं यह लिख रहा हूं, तो मैं अंतिम निष्कर्ष पर नहीं पंहुचा हूं. प्रयोगात्मक अवस्था है यह. अत: अंतत: किस तरह से अपना फीड/समय प्रबन्धन करूंगा, वह आने वाले महीनों में तय होगा. पर इतना जरूर लगता है, फीड रीडर की बेहतरी के साथ, फीड एग्रेगेटर की भूमिका, उत्तरोत्तर कम होती जायेगी.@ अभी भी 20% से अधिक यातायात मेरे ब्लॉग पर इन फीड एग्रेगेटरों से इतर सोर्सेज से आता है. हां फीड एग्रेगेटर अपना स्वरूप बदल लें तो बात कुछ और होगी. पर तब फीड एग्रेगेटर, फीड एग्रेगेटर नहीं रह जायेंगे.
एक बहस फीड एग्रेगेटरों के वर्तमान और भविष्य के रोल पर होनी चाहिये.
@ – शायद एक बिल्कुल नये ब्लॉगर के लिये फीड एग्रेगेटर की भूमिका सशक्त बनी रहेगी. पर वह भी फीड रीडिंग प्रबन्धन फीड रीडर के माध्यम से कर सकता है. फीड एग्रेगेटर एक पारिवारिक सपोर्ट की तरह है जिसे व्यक्ति अपनी ब्लॉगरी की शैशवावस्था और किशोरावस्था तक इस्तेमाल करता हो. इस बारे में अलग विचार हो सकते हैं; और मेरे विचार भी अंतिम रूप में फर्म-अप नहीं हैं. यह मुद्दा तो विचारार्थ उठाया जा रहा है.

आज सुबह इसी विषय पर सोच रहा था। समय प्रबंधन तो आज की आवश्यकता है ही पर ये इस बात की ओर इशारा भी है कि अब हिंदी ब्लागिंग एक ही कश्ती में सवार हो कर नहीं की जा सकेगी। अंग्रेजी ब्लॉगिंग तो बिना एग्रगेटर के मदद से होती ही रही है। पर नये लिखने वालों के लिए इनकी उपयोगिता बनी रहेगी।
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गलत है फ़िर से आप लोगो को मै महान हू कहने का मौका छीनते दिखाई दे रहे है…:)
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Udan Tashtari >…यह हमारे लिए कोई काम की खबर नहीं कहलाई…इसलिये आभार और साधुवाद नहीं कह रहे हैं. यह हमारे लिये महान सफलता! समीर लाल जी ने और किसी से आभार-साधुवाद विदहोल्ड किया हो, वह वीर हमें बताये और महीने भर बिला-नागा सकारात्मक टिप्पणी का लाभ प्राप्त करे! :)
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हमें तो टिप्पनी करने हर जगह खंगालना पड़ता है, न जाने कब कौन नया बिना टिप्पणी हतोत्साहित हो जाये..यह हमारे लिए कोई काम की खबर नहीं कहलाई…इसलिये आभार और साधुवाद नहीं कह रहे हैं.
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आपने तो फुल ज्ञान दान दिया, पर अपनी ज्ञानदानी तकनीकी मामलों में बहूत चिरकुट है, सो चीजें डिफार्म होकर पहुंच रही हैं या मिसकैरिएज हो रहा है। कुछ समय अपनी ज्ञानदानी को सैट करने में लगाना पड़ेगा। फिर ये मसले पूरे तौर पर समझ में आयेंगे।
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आपने एक विचारणीय मुद्दा उठाया है. या यों कहें कि मुद्दे को विचारणीय बना दिया है!मुझे फ़ीडरों का सीमित अनुभव ही है. लेकिन आपकी इस बात में दम है कि फ़ीडरों का महत्व बढ़ता ही जाएगा. ऐसा होता है तो निश्चय ही एग्रीगेटरों का महत्व आज की तुलना में कम होगा. वैसी स्थिति में बहुउद्देश्यीय एग्रीगेटर ही ढंग से चल पाएँगें. यानि ऐसे एग्रीगेटर जो ढेर सारी सेवाएँ या सुविधाएँ प्रदान करते हों. …या फिर ऐसे एग्रीगेटर भी चलेंगे जो ख़ास किस्म के ब्लॉगों को प्रमुखता देते हों.
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भविष्य की तस्वीर कुछ ऐसी ही होनी चाहिये.. आज सौ सवा सौ दिन की पोस्ट पढ़ने में आदमी किसी तरह मैनेज कर रहा है.. जब चार पाँच ह्जार का रोज़ाना ट्रैफ़िक होगा.. तब अपने पसंदीदा चिठेरों पर नज़र रखने का एक मात्र तरीका फ़ीड रीडर ही होगा.. गूगल या कोई और..मैंने भी गूगल रीडर की सर्विस ले रखी है जिसमें तीस पैंतीस चिट्ठे शामिल हैं.. कुछ अंग्रेज़ी के भी.. और निश्चित ही हम और आप अकेले नहीं होंगे.. मेरे ब्लॉग पर आने वाले ट्रैफ़िक में से आधे से कम ही नारद या चिट्ठाजगत या ब्लॉगवाणी से आ रहे हैं.. बाकी आधे दूसरे ब्लॉग्स पर दिये हुए मेरे लिंक से.. और कुछ सर्च इंजिन से.. ये अनुपात अभी और बदलेगा.. धीरे धीरे हम एक बंद दुनिया तोड़कर एक ऐसी दुनिया में पहुँच जायेंगे जहाँ हम अपने पाठक के बारे में कुछ नहीं जानते होंगे.. आज आप को भली भाँत मेरी कुण्डली मालूम है.. तब आप इस तरह की आज़ादी भी नहीं ले सकेंगे.. कि जब चाहा अज़दक का लिंक दिया और जब मन ना किया तो टाल गए.. आप अज़्यूम नहीं कर सकेंगे कि पाठक अज़दक से परिचित ही होगा..:)
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*सही नहीं है पढ़े। :)
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आप मुहल्ले में रहते हैं तो शिव जी के त्रिशूल छाप ब्लॉग से क्या लेना-देना. आपका यह सोचना सही हैं पांडेयजी। अगर मोहल्ले वाले त्रिशूल छाप ब्लाग नहीं देखेंगे तो अपने हथियार कैसे चमकायेंगे। यही बात दूसरी तरफ़ भी सही है। :)
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सही विश्लेष्ण है पर फीड ऎग्रीगेतटर की भी भुमिका है.वर्तमान स्वरूप से कहीं अलग.इस पर भी कभी लिखुंगा.
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