अ बिजनेस इज अ बिजनेस – गलत क्या है?

जो शीर्षक दिया है, वह हिन्दी अंग्रेजी घालमेल वाला हो गया है. इतना हिन्दी रखी है कि हिन्दी वाले नाक-भौं न सिकोड़ें. अन्यथा शीर्षक रखने का विचार था अ बिजनेस इज़ अ बिजनेस इज़ अ बिजनेस व्हाट्स रॉंग अबाउट इट!

यह प्रतिक्रिया दिल्ली में ब्लॉगरों के जमावड़े के बारे में पढ़ कर है. हिन्दी-युग्म पर वह पढ़ने भी इसलिये गया कि मैने श्री शैलेश भारतीय जी के ई-मेल का समय पर जवाब नहीं दिया था. उसका अपराध बोध था और मैं उनके और उनके ब्लॉग के विषय में जानकारी लेना चाहता था.

हिन्दी ब्लॉगरों के जमावड़े के बारे में हिन्दी-युग्म पर बड़ा बढ़िया लिखा है. मैं अगर साइडवेज कटाक्ष करूं तो यह होगा कि हिन्दी ब्लॉगरी में सबसे बढ़िया और विस्तृत लेखन शायद ब्लॉगरों के जमावड़े के रिपोर्ताज का है!

खैर जो बात उस लेख में बतौर थ्रेड पकड़ रहा हूं वह है आलोक पुराणिक द्वारा दुकान शब्द के प्रयोग पर मैथिली का क्षुब्ध हो जाना.

इस रामकृष्ण परमहंसीय परम्परा का निर्वहन करते हिन्दी जगत में पैसा या किसी भी बिजनेस वेंचर को दोयम दर्जे का माना जाता है यह मुझे बहुत खलता है. अगर निराला पैसे-पैसे को मोहताज थे और उन्होने अपनी रचनाओं की रॉयल्टी कौड़ियों के मोल दे दी थी तो इसमें निराला की महानता क्या है? वे महान कवि रहे होंगे, पर समग्र व्यक्ति के रूप में तो असफल जीव ही माने जायेंगे.

हिन्दी वालों को अर्थ (मनी) के बेसिक्स तो समझने चाहियें. हिन्दी का तो पता नहीं, पर अंग्रेजी में कई लेखक सफल बिजनेस नियमों के तहद लिखते और समृद्ध पाये गये हैं और ऐसा भी नहीं है कि वे बौद्धिक रूप से बेइमान हों.

मुझे नहीं मालूम की मैथिली के कैफे की बैलेंस-शीट कैसी है. पर उसमें सेवा-फेवा जैसा इमोशनलिज्म नहीं होना चाहिये. अगर वह बिजनेस वेंचर है तो उसे बतौर बिजनेस वेंचर सफल होना चाहिये हिन्दी के शौकिया ब्लॉगर चाहे जो कहें. मुझे लगता है कि स्मार्ट निवेश के डा. पुराणिक (अगड़म-बगड़म वाले नही!) मुझसे सहमत होंगे. हिन्दी में लेखन एक सफल व्यवसाय से ज्यादा पवित्र और हाई क्वालिटी की चीज है – यह बौद्धिक नहीं जंक सोच है. हां, यह लिखने पर कोई यह न समझे कि मैं एथिक्स या ईमानदारी में पानी मिलाने वाली बात कह रहा हूं. पानी तो तब मिलता है जब आप अपना कैश फ्लो या बजट मैनेज नहीं कर सकें, आपकी लार और आपके पैसे में सही अनुपात न हो, और आप फिर भी परमहंसीय बात करते हों.

समय बदल रहा है. पैसा हाथ का मैल है, मैं तो आत्म शांति के लिये प्रयासरत हूं, पैसा तो उसमें व्यवधान ड़ालता है पैसा ही सब कुछ नहीं है, अपन तो यह अफोर्ड नहीं कर सकते — छाप कहने वाले अगर सरासर झूठ नहीं कहते तो कम से कम अज्ञानी अवश्य हैं.

अत: अगली बार मैथिली को कोई हिन्दी सेवक कहे तो उसे वे एक कप बढ़िया कॉफी पिलायें. और अगर मेरे जैसा यह कहे की आप बढ़िया बिजनेस चला रहे हैं तो गरमागरम धन्यवाद देते हुये कॉफी के साथ वेज-बर्गर भी ऑफर करें. एक सफल बिजनेस (अगर वे चला रहे हैं तो) के लिये संकुचित होने के दिन लद गये या बड़ी जल्दी लद जायेंगे. आप देखते जाइये!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

7 thoughts on “अ बिजनेस इज अ बिजनेस – गलत क्या है?

  1. सही कह रहे हैं. दुकान शब्द का एक व्यापक अर्थ है-एंड देयर इज नथिंग रांग अबाउट इट.

    Like

  2. श्रीश > …लेकिन मेरे ख्याल से दुकान शब्द पर बुरा नहीं मानना चाहिए था, आलोक जी का मंतव्य समझना चाहिए था। बिल्कुल सही. मेरा भी कहना वही है. अगर आप बिजनेस कर रहे हैं तो दुकान के प्रयोग पर इमोशनल नहीं होना चाहिये. और अगर सामान्य प्रयोग कर रहे है तो बिल्कुल ही नही होना चाहिये. बस मेरा यह आग्रह है कि हिन्दी ब्लॉगर बिजनेस को दोयम दर्जे का न माने. बिजनेस कोई फोर लैटर शब्द नहीं वरन लेजटीमेट/आवश्यक डेवलेपमेण्टल क्रियाकलाप है.

    Like

  3. अब ये हाई फाई किस्म का चिंतन तो आप लोग करें लेकिन मेरे ख्याल से दुकान शब्द पर बुरा नहीं मानना चाहिए था, आलोक जी का मंतव्य समझना चाहिए था। वैसे भी हम लोग दुकान शब्द का प्रयोग मजाक के तौर पर करते ही रहते हैं जैसे कि अपने चिट्ठे आदि के लिए।

    Like

  4. संजीतजी ये खरे को खरा और बुरे को बुरा कहना ही तो उततर साधुवाद है…ज्ञानदत्‍तजी ने जो लिखा हम हिंदी वाजलो के लिए कड़वा है पर सच है..एंडसेस डाल लिया है चिट्ठे पर …तीन साल बाद 100 डालर हमें भी मिल जाएंगे।साधुवाद

    Like

  5. इ जौन बीमारी है खरी खरी कहने की उ आप तक भी पहुंच गई लागत है!अब इस पे तो साधुवाद कहना ही पड़ेगा भले ही लोग कहें कि साधुवाद युग समाप्त हुआ!!

    Like

  6. मुझे यह नहीं मालुम था कि ब्लॉगर/ब्लागस्पॉट भूतकाल में भी पब्लिश कर देता है. मेरी आज सवेरे की पोस्ट कल सवेरे के समय से पब्लिश हो गयी. मैने फिर से पब्लिश किया है. पुरानी 1-2 दिन बाद मिटादूंगा (अभी मिटाने पर क्या पता नारद में तकनीकी समस्या आ जाये). उसपर अनूप शुक्ल की टिप्पणी निम्न है: इस पर मैथिली जी कुछ लिखें तो अच्छा लगे। धन्धा धन्धा है। :)

    Like

Leave a reply to Gyandutt Pandey Cancel reply

Discover more from मानसिक हलचल

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Design a site like this with WordPress.com
Get started