पूरी निष्ठा से यत्न करने के बाबजूद ब्लॉगिंग छूट नहीं पा रही है. इधर अंग्रेजी के एक ब्लॉग ने एक (छद्म ही सही – अंग्रेजी का छद्म भी हिन्दी के लिये ब्रह्मवाक्य है!) स्टडी में बताया है कि ब्लॉगरी से वजन में शर्तिया बढ़ोतरी होती है. अब लगता है कुछ न कुछ करना होगा. वजन तो हमारा भी बढ़ा है – कम्प्यूटर पर काउच-पोटैटो की तरह निहारते बैठने और बरसात के कारण सवेरे की सैर बन्द कर देने से. अत: निम्न स्टेप्स पर मनन चल रहा है:
- ब्लॉगिंग को बाय-बाय. पर जितनी बार सोचते हैं, उतनी बार एक पोस्ट और सरका देते हैं.
- दो साल पहले एक्सरसाइजर जो पैसे की किल्लत होने पर भी पूरी गम्भीरता से खरीदा गया था और उसके कुछ महीने बाद आंखों से ओझल हो गया, उसे खोज निकालना और उसका पुनरुद्धार. वैसे यह मालुम है कि वह घर की अधिष्ठात्री ने स्टोर में कबाड़ के साथ रख दिया है. उसके पुनरुद्धार में घर में कलह मचना स्वाभाविक है – पर स्वास्थ के लिये यह गृह युद्ध झेलना ही होगा.
- वजन लेने वाली मशीन जो अपनी झेंप और कुत्ते के जान बूझ कर उसपर पेशाब करने की आदत के चलते दीवान के अन्दर के बक्स में डाल दी गयी थी; अगर कालान्तर में कबाड़ी के हवाले न कर दी गयी हो तो उसे घर के प्रॉमिनेण्ट स्थान पर स्थापित कर देना, जिससे बार-बार वजन ले कर वैसा ही मोटीवेशन हो जैसा गूगल एडसेंस की कमाई निहारते होता है. यह अलग बात है कि न तो एड सेंस की कमाई देखने से बढ़ रही है और न वजन की मशीन देखने से वजन कम होगा! पर दिमाग में हमेशा रहेगा तो कि वजन कम करना है.
- इंक-ब्लॉगिंग, या डिक्टाफोन पर बोल कर रिकार्ड किये को कच्चेमाल के रूप में सीधे ब्लॉग पर ठेलने की सम्भावनायें तलाशना, जिससे पीसी या लैपटॉप के सामने बैठे रहने की मजबूरी न रहे और पाठक/श्रोता भी अस्पष्ट लिखा पढ़ कर या सुन कर सिर खुजायें. एडसेंस के विज्ञापनों में रेफरल प्राडक्ट के रूप में सैनी हर्बल ऑयल छाप विज्ञापन रखे जायें जिसे पाठक सिर खुजाते हुये अपने बालों के स्वास्थ के लिये क्लिक करें.
- माउस पर क्लिक करने की ज्यादा प्रेक्टिस करना – उसमें भी कुछ केलोरी तो खर्च होंगी.
- खाना-बनाना, खाना-खजाना और रत्ना की रसोई छाप सभी ब्लॉगों पर अपने को जाने से भरसक रोकना. इससे कोई लालच बनने की स्थिति पैदा ही न होगी! (इसे आप ज्यादा गम्भीरता से न लें – मैं भी नहीं लेता!)
- अपने ब्लॉग पर अगर चित्र लगाने हों तो छरहरे लोगों के चित्र ही लगाना. अपने कम्प्यूटर के वालपेपर और स्क्रीन सेवर तक में छरहरे लोगों को वरीयता देना बनिस्पत रीछ और ह्वेल के चित्रों के.
- ब्लॉगिन्ग में समीर लाल की बजाय सुकुल को रोल माडल बनाना. जीतेन्द्र चौधरी भी नहीं चल पायेंगे वजन कम करने के अभियान में. वैसे तो राजीव टण्डन ठीक रहते पर आजकल उनकी ब्लॉगिंग तो क्या, टिप्पणी तक नहीं दीखती! (काकेश कहां हैं आजकल!) पंगेबाज जरूर छरहरे लगते हैं.
बस, आठ प्वाइण्ट बहुत हैं. बाकी सुकुल सोचेंगे – रोल माडल जो बना रहे हैं!

कुछ लोग बिना कुछ किए ही वाजब बढ़ा रहे हैं, तो ब्लागिंग करके वजन बढ़ाने में कोई खराबी नहीं है.
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मस्त!!!जब भी तेज़ हवा चलती है हमारे दोस्त हमें पकड़े रखते हैं कि कहीं हम उड़ ना जाएं इसलिए इस मामले में हमसे बेहतर रोल मॉडल कोई नही।है किसी में दम जो हमारी बराबरी कर सके।
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हमारा शेर सुनिये और सर धुनिये :”जिन्दगी मैं दो दफे मेरा घटा है बस वजन एक तेरे आने से पहले एक तेरे जाने के बाद “समझे? याने वो जब तक रही कम्बख्त खिलाती ही रहीनीरज
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अरे वजन तो बढना ही चाहिये पर वसा के कारण नही बल्कि हिन्दी चिठ्ठाकारो की जेबो मे ‘अर्थ’ आने से। ऐसे वजन बढने से भला किसी को क्या आपत्त्ति होगी।
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भाई साहबवो देखे हैं न- दवा के पहले और दवा के बाद.दो फोटो लगाईये रोल मॉडल की- एक ब्लॉगिंग के पहले और एक ब्लॉगिंग के बाद…एक तरफ हम शोभायमान रहें और दूसरी तरफ फुरसतिया जी बैठने की/खड़े रहने की जगह मुहैया कराई जाये…ताकि सफर का अंदाज रहे कि कहॉ से कहॉ तक!!!
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बढ़िया ! पोस्ट भी व टिप्पणियाँ भी !घुघूती बासूती
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@ विष्णु बैरागी – धन्यवाद. वजन तो लेखन में चाहिये पर यहां शरीर का बढ़ रहा है! @ काकेश – भय प्रकट कृपाला! @ श्रीश – भैया आप और यूनुस के क्लेम के चलते एक पोस्ट बन जायेगी! @ आलोक पुराणिक – यह क्या, अपने ब्लॉग पर छुट्टी रख कर टिप्पणी में पूरी पोस्ट डाल दी. धन्यवाद. @ महाशक्ति – धन्यवाद.@ अजित – ऐसे कैसे भाई. अभी तो बहुत शब्दों के अर्थ समझने हैं.
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चलो ठीक है शिरीष आपने कहा और हमने मान लिया । हम आपके पीछे हैं । लेकिर रोल मॉडल बनने की कतार में दूसरे नंबर से कम पर नहीं मानेंगे हां ।
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वज़न – उजन के फेर में तो हम नहीं है पर ब्लागिंग छोड़ने का ज़रूर सोच रहे है।
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सटीक बात
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