आजकल मैं वजन कम करने, रोल माडल बनने/बनाने और स्वास्थ्य के प्रति बहुत सजग हूं. सामान्यत: व्यायाम के लिये या तो आपको घर के बाहर सैर पर या जिम जाना होता है. अथवा उपकरण खरीदने होते हैं. पर निम्न विधि से आप घर पर उपलब्ध सामान्य साधनों से सहजता से व्यायाम कर सकते हैं:
एक समतल जगह पर सहजता से खड़े हो जायें. अपने दोनो बाजू में पर्याप्त जगह रखें. फिर दोनो हाथों में पांच-पांच किलो के आलू के थैले ले कर अपने हाथ सीधे साइड में फैलायें. जितनी देर हो सके हाथ साइड में जमीन के समांतर रखें. यह एक मिनट तक करने का यत्न करें. फिर आराम करें.
हर रोज समय बढ़ाने का प्रयास करें.
कुछ सप्ताह बाद 5 से बढ़ा कर दस किलो के थैलों से यह प्रक्रिया करें.
फिर जब उससे सहज महसूस करें तो 25 किलो और अंतत: 50 किलो के आलू के थैलों के साथ यह व्यायाम करने का प्रयास करें. उसमें एक मिनट तक रुकने की दक्षता हासिल करें (मैं इस स्थिति तक पहुंच चुका हूं).
जब आप इस अवस्था में सहज महसूस करने लगें, तो दोनो थैलों मे एक-एक आलू डाल कर यह व्यायाम करें.
मैं इस व्यायाम पर कोई दावा नहीं कर रहा कि यह मेरा ईजाद किया है. यह मुझे नेट पर अध्ययन के दौरान माइक ड्यूरेट नामक सज्जन के माध्यम से ज्ञात हुआ. यह सरल सहज और प्रभावी है, इस लिये मैं यहां प्रस्तुत कर रहा हूं. आपको भी इस प्रकार के व्यायाम आते हों तो सर्वजन हिताय बताने का कष्ट करें. धन्यवाद.

अब तक हमें यही पता था कि आलू वजन बढ़ाने में काम आता है, आप से जाना कि वजन घटाने में भी काम आ सकता है।
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आपके वज़न के vision में वज़न है. लेकिन, वज़न आदमी के शरीर में कहाँ होता है- वज़न तो लिफाफे में होता है अगर वोह भरा हो.वज़न तो बात में होता है अगर कहने वाले की कुर्सी ऊंची हो.वज़न तो तर्क में होता है अगर उसे पैदा करने के लिए वकील नें मोटी फ़ीस ली हो.वज़न तो आजकल के स्कूल के बच्चों के बस्तों में होता है चाहे उनके कंधे झुके हों.वज़न बहुमत में होता है अगर सरकार साझे की हो.यह सभी वज़न बढते ही दिखायी पड़ते हैं. इन सब के सामने हमारे आपके अपने साधनों से कमाये थोडे से वज़न की क्या चिन्ता. वज़न कम करने में झमेले ज्यादा हैं. इस प्रयास के स्थान पर यह नारा दिया जाए -इतने ऊंचे उठो की जितना बढ़ा वज़न है.पर शायद यह तो वज़न घटाने से भी ज्यादा मुश्किल है.वजनोत्सुक संजय कुमार
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आलू व्यायाम शाला मे, शिव कुमार जी की बात पर भी ध्यान देना चाहिए।:)
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@ शिव कुमार मिश्र -बड़ा गजब सिद्धांतवादी कमेण्ट है. यह तो अन्दाज ही न था कि वजन बढ़ाना आर्थिक रूप से सरल है. कम करन कठिन. इसी अर्थ शास्त्र के मर्म ज्ञान से धनी लोग वजन बढ़ाते हैं – कम नहीं करते!यही बात धनी राष्ट्रों पर भी लागू होती है.
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क्या भैया,’आलू व्यायाम’ जैसे बड़े और महत्वपूर्ण मुद्दे पर एक माईक्रो पोस्ट. आश्चर्य है. जिस मुद्दे पर शुकुल जी और पुराणिक जी कम से कम चार पन्ना लिखेंगे, उसपर एक पन्ना तो लिखते. चलिए मैं टिप्पणी के नाम पर एक पोस्ट ठेल देता हूँ…आलू व्यायाम का समाजशास्त्र:-आलू एक ऐसी सब्जी है जो समाज के हर वर्ग के लिए उपलब्ध है. आसानी से मिलाने वाला आलू. हर सीजन में उपलब्ध आलू. समाज के सभी वर्गों द्वारा भक्षण किया जाने वाला आलू. अब अगर खाने के लिए उपलब्ध है तो ब्लॉग समाज के लोगों को ‘पकाने’ के लिए भी उपलब्ध होगा ही.आलू व्यायाम का भौतिक शास्त्र:-एक क्विंटल आलू में आलू की संख्या पर भी बहस होनी चाहिए. आलू छोटा है तो पचास किलो के बोरे में कितना आलू आएगा. बड़ा है तो कितना आएगा. व्यायाम के लिए किस साईज के आलू को लेना है इसपर भी प्रकाश डाला जाना चाहिए.आलू व्यायाम का मनोवैज्ञानिक शास्त्र:-जिस वजन को बढ़ाने में इतने साल लगते हैं, उतने ही वजन को घटाने के लिए हम चाहते हैं की केवल दस दिन लगे. इसलिए पहले दिन से ही हम पचास किलो के दो बोरे का इस्तेमाल करेंगे.ये ठीक वैसा ही है कि सर के बाल गिराने में सालों का समय लगता है लेकिन आदमी जब डाक्टर के पास जायेगा तो पहला सवाल करेगा कि गिरे हुए बाल एक महीने में पूरे आ जायेंगे कि नहीं.आलू व्यायाम का दर्शन शास्त्र:-वजन बढ़ने का प्रमुख कारण खाने में आलू की अतिशय मात्रा. वो गाना सुना ही होगा आपने;’तुम्हीं ने दर्द दिया और तुम्हीं दवा देना’…या फिर ‘सांप के जहर का इलाज सांप के जहर से ही होता है’….या फिर शोले के मशहूर ठाकुर बलदेव सिंह जीं का प्रवचन कि; ‘लोहा ही लोहे को काटता है’…अब आ जाते हैं आलू व्यायाम के अर्थशास्त्र पर:-एक क्विंटल आलू का मूल्य क़रीब ११५० रुपया है. उसे बाजार से ले आने में लगेंगे क़रीब २० रुपये. उसके बाद रोज घर के गैरेज से व्यायाम की जगह लाने और फिर गैरेज तक ले जाने में मजदूरी लगेगी २० रुपये. आलू पाँच दिन में सड़ जायेगा और फिर नया आलू लाना पडेगा. मतलब ये कि पाँच दिन व्यायाम का खर्चा पड़ेगा १२७० रुपया. मतलब एक दिन क आलू व्यायाम का खर्च २५४ रुपया.क्या बात कर रहे हैं, इससे सस्ता तो ‘ग्रेट बंगाल जिम सेंटर’ है.
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सरजीइससे होगा क्या, वजन कम होगा या क्या।विस्तार से प्रकाश डालें। ये तो भौत अच्छा विजुअल सा बन रहा है, आप तो इलाहाबाद की ट्रेफिक पुलिस को अपनी सेवाएं दे सकते हैं। ज्ञानदत्तजी खड़े हैं तेलियरगंज चौराहे पर, दोनों हाथ ताने, दायें जायें, बायें जायें। लगे हाथों आलू भी ले जायें, सौ किलो आलू लायेंगे, तो कुछ मार्जिन बचेगा ही। कसरत की कसरत की, पार्ट टाइम कमाई की हसरत भी पूरी हो लेगी। जल्दी बतायें, कल से ही दिल्ली के आईटीओ चौराहे पर जमाता हूं।
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@ अरुण, अनूप – माइक ड्यूरेट नामक सज्जन ने केवल एक-एक आलू डालने की सलाह दी है. इससे ज्यादा का प्रयोग आपकी प्रयोग धर्मिता और आपकी अपनी रिस्क लेने की क्षमता पर निर्भर करता है.
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साहबजी, बहुत मंहगी पड़ेगी ये कसरत। आलू के दाम बढ़ रहे हैं। पता चला आप कसरत कर रहे हैं, आपकी एक तरफ़ से तीन आलू निकल गये सब्जी के लिये। बैलेंन्स गड़बड़ा जायेगा। हड्डी का दर्द। मेरी नजर में सबसे अच्छा व्यायाम सुबह देर तक सोना है। ज्यादा मेहनत करने का मन हो तो करवटें बदल लें। :)
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मैं तो बहुत मेहनती हूँ इसलिये १०० किलो के थेले तक जाकर फिर एक एक आलू डालूंगा, उसके पहले तो सवाल ही नहीं रुकने का. पूरी सजगता आ गई है हेल्थ के प्रति. कहते हैं संगत का असर होता है.आपकी संगत पाकर धन्य हुए.
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अरे वाह दादा बहुत शानदार तरीका ढूढा है आपने व्यायाम का…वहा घर पर रोजाना १०० किलो आलू का इंतजाम करने मे दिक्कत आती होगी..अब आपका कोई होटेल तो है नही की व्यायाम किया और बाद मे सब्जी बन गई.यहा मैन आलूओ का नया धंधा शुरू किया है..रोज रात को ट्र्क आते है और माल सुबह मंडी भेजना होता है..मेरी आपसे गुजारिश है कि आप सुबह मेरे यहा चले आया करे..आपका व्यायाम हो जायेगा..और मुझे आपका सहारा मिल जायेगा…:)
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