गड़बड़ रामायण – आम जनता का कवित्त


बचपन से गड़बड़ रामायण सुनते आये हैं. फुटकर में चौपाइयां – जिनको कुछ न दिमाग में आने पर अंत्याक्षरी में ठेला जाता था! पर कोई न कोई वीटो का प्रयोग कर कहता था कि यह तो तुलसी ने लिखा ही नहीं है. फिर वह नहीं माना जाता था. पर होती बहुत झांव-झांव थी.

यह सामग्री ब्लॉग के लिये उपयुक्त मसाला है. जिसे देख कर साहित्य के धुरन्धर और हिन्दी की शुद्धता के पैरोकार सिर धुनें!
लगता है कि अंत्याक्षरी के लिये या पूर्णत पैरोडी रचना के लिये गड़बड़ रामायण के चौपाई-दोहे बनाये गये होंगे. मुझे नहीं मालूम कि इनका कोई संकलन कहीं हुआ है या नहीं. पर एक प्रयास किया जाना चाहिये. कुछ जो मुझे याद है, वह हैं:

1. लंका नाम राक्षसी एका. रामचन्द के मारई चेका.
2. एण्टर सिटिहिं डू एवरी थिंगा. पुटिंग हार्ट कोशलपुर किंगा. (प्रबिसि नगर कीजै….. )
3. आगे चलहिं बहुरि रघुराई. पाछे लछमन गुड़ गठियाई.
4. आगे चलहिं बहुरि रघुराई. पाछे लखन बीड़ी सुलगाई.
5. सबलौं बोलि सुनायेसि सपना. साधउ हित सब अपना अपना.
6. जात रहे बिरंचि के धामा. गोड़े तक पहिरे पैजामा.
7. लखन कहा सुनु हमरे जाना. जाड़े भर न करहु अस्नाना.
8. अंगद कहहिं जाहुं मैं पारा. गिरा अढ़इया फुटा कपारा.
9. अंगद कहहिं जाहुं मैं पारा. मिले न भोजन फिरती बारा.
10. नाक-कान बिनु भगिनि निहारी. हंसा बहुत दीन्हेसि तब गारी.
11. जब जब होहिं धरम कइ हानी. तब तब पुरखा पावहिं पानी.
12. सकल पदारथ हैं जग माहीं. बिनु हेर फेर पावत नर नाहीं.
13. रहा एक दिन अवधि अधारा. गये भरत सरजू के पारा.
14. सुन्हहु देव रघुबीर कृपाला. अब कछु होइहैं गड़बड़ झाला.

आगे तुलसी बाबा के भक्तगण जोड़ने का प्रयास करें!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

18 thoughts on “गड़बड़ रामायण – आम जनता का कवित्त

  1. आगे चले बहुरि रघुराई। पाछे लछिमन चना भुंजाई।।
    राम कहेन तुम हमहुक दीन्ह्यो। लछमन कहेन सींग(👍) लई लीन्ह्यो।।
    आगे नहीं कहेंगे, ईशनिंदा का दोष लगेगा 😬

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  2. देर से सही एक मैं भी जोड़ देता हूँ :चित्रकूट के घात पर लंठंन की भीर तुलसीदास सबरी सम्हारें सेन्ही में हले रघुवीर सियावर रामचंद्र की जय

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  3. वाह वाह ज्ञानदत्त जी,ई पोस्ट अऊर टिप्पणी पढ़ि के मन परसन्न हुई गवा। तबहीं तो तुलसी बाबा कहत राहें,रघुकुल रीति सदा चली आई, जनता काटी नेतुआ खाई,:)

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  4. किसी अभद्र व्यक्ति का योगदान यह है:रामचन्द्र दुख द्वन्द निवारनभैंसि भागि गै बिना केंवारन

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