कबि न होहुं नहिं चतुर कहाऊं


कबि न होहुं नहिं चतुर कहाऊं; मति अनुरूप राम गुण गाऊं. बाबा तुलसीदास की भलमनसाहत. महानतम कवि और ऐसी विनय पूर्ण उक्ति. बाबा ने कितनी सहजता से मानस और अन्य रचनायें लिखी होंगी. ठोस और प्रचुर मात्रा में. मुझे तो हनुमानचालिसा की पैरोडी भी लिखनी हो तो मुंह से फेचकुर निकल आये. इसलिये मैं यत्र-तत्रContinue reading “कबि न होहुं नहिं चतुर कहाऊं”

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