खुक-खुक हंसती लड़की…..


क बेवजह
खुक-खुक हंसती लड़की…
एक समय से पहले ब्याही
नवयौवना कम, लड़की ज्यादा
और जले मांस की सड़ान्ध के
बीच में होता है
केवल एक कनस्तर घासलेट
और “दो घोड़े” ब्राण्ड दियासलाई की
एक तीली भर का अंतर
—–
अलसाये निरीह लगते समाज में
उग आते हैं
तेज दांत
उसकी आंखें हो जाती हैं सुर्ख लाल
भयानक और वीभत्स!
मैं सोते में भी डरता हूं
नींद में भी टटोल लेता हूं –
मेरी पत्नी तो मेरे पास सो रही है न!
—–
वह बेवजह
खुक-खुक हंसती लड़की
मुझे परेशान कर देती है
मरने पर भी
—–
मैं खीझता हूं –
डैम; ह्वाई डिड आई गो टु अज़दक्ज ब्लॉग!

मित्रों, मुझे कष्ट है. मैं कविता नहीं कर रहा हूं. पर अज़दक की उक्त हाइपर लिंक की पोस्ट ने परेशान कर दिया है और यह उसकी रियेक्शन भर है. मेरा लालित्यपूर्ण या खुरदरी – कैसी भी कविता लिखने का न कोई मन है न संकल्प.
अज़दक तो लिख कर हाथ झाड़ लिये होंगे. यहां कल से यदा कदा वह लड़की याद आती रही. आइ एम रियली कर्सिंग अज़दक.
मेरी पत्नी कहती हैं – “यह क्या लिखते हो ऊटपटांग. अरे यह सामाजिक विकृति तो अखबार में पढ़ते ही हैं. ब्लॉग में तो कुछ हो खुशनुमा! ऐसा लिखना हो तो बंद करो ब्लॉग – स्लॉग.
यह अंतिम प्रयास होगा कविता जैसा कुछ झोंकने का. असल में देख लिया; कविता में इमोशनल थकान बहुत ज्यादा है.


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

9 thoughts on “खुक-खुक हंसती लड़की…..

  1. अब बाँध बनाने का दुस्साहस न करे, बहने दे भावनाओ को उद्दाम वेग से।

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  2. ह्म्म, कुछ पढ़कर बैचेन होंगे फ़िर कुछ लिखेंगे, यही तो लेखन हुआ ना, चाहे कविता हो या गद्य!!वैसे अच्छा लिखा है आपने!! बैचेनी!!

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  3. मुझे पूरा यकीन था कि आपके भीतर का कवि कहीं गया नहीं है . वहीं है . अधिक से अधिक प्रसुप्ति की — हाइबरनेशन की — अवस्था में है . देखिये अब एकदम चैतन्य और जाग्रत है . बधाई!आपको यदि अज़दक को कोसना हो तो कोसें , हम तो उनके आभारी हैं . आपके भीतर के कवि को टोहनिया कर जगा दिया .मैं यदि कोशिश करता तो अंतिम पंक्तियां शायद इस तरह लिखता : “वह बेवजह खुक-खुक हंसती लड़की मुझे परेशान करती है मर कर भी ।”

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  4. वैसे कल की अजदकी पोस ने बहुतों को विचलित किया. आप भावुक, संवेदनशील और कविमना हैं, यह इन पंक्तिओं को पढ़कर कोई भी कह सकता है. अब यह आप पर निर्भर करता है कि दिल से उठती कविताओं को आप वहीं दफन कर दें या उसी रुप में पेश कर दें या फिर उन्हें गद्य में बदल दें. इन्तजार रहेगा आगे आपके निर्णय का. दोनों रुप में स्विकार्य है. शुभकामनायें.

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  5. तबीयत खऱाब सी हो गी दिक्खैजी। तभी इत्ती घणी कविता बणाण लाग रै हो। पंगेबाजजी ने पिछ्छे छोड़ना पड़ैगा कै।

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  6. आप के कल के एनाउस्मेंट के बाद आज जब यहाँ आये और कविता देखी तो पहला रिएक्शन ये था ओ वास हि रियली सिरियस? और फ़िर हम चाव से कविता पढ़ने लगे, दूसरा रिएक्शन था, ज्ञानदत्त जी ऐसी कविताएँ लिखते हैं। कविता अच्छी है,जव्लंत विषय पर है, पर हम आप की पत्नी से सहमत है, आप के 200-300 शब्द हमको ज्यादा भाते हैं

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  7. वाह पाण्डेय जी , आप तो केवल पढ़कर इतने विचलित हो गए ! उनसे पूछिये जिन्होंने इसे जिया है । जो हर बार माचिस जलाने पर अपने प्रियों को जलता देखते हैं । जिसे होली की लपटों में वे दिखती हैं । जिसे लोढ़ी की लपटों में वे दिखती हैं । जिन्हें अग्नि देवता नहीं, मानव की एक जीती जागती स्त्री को राख कर देने के षणयंत्र में, सहभागी दिखती है । शेष अपने चिट्ठे पर ।घुघूती बासूती

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