किस्सा-ए-टिप्पणी बटोर : देबाशीष उवाच


पिछले दिनो ९ सितम्बर को शास्त्री जे सी फिलिप के सारथी नामक चिठ्ठे पर पोस्ट थी – चिठ्ठों पर टिप्पणी न करें. इस में देबाशीष ने यह कहते हुये कि टिप्पणियां अपने आप में चिठ्ठे की पठनीयता का पैमाना नहीं है; टिप्पणी की थी –

… सचाई यह है कि मैं चिट्ठे समय मिलने पर ज़रूर पढ़ता हूं पर टिप्पणी सोच समझ कर ही करता हूँ और मुझे नहीं लगता कि ये मेरी प्रविष्टि को टिप्पणी न मिलने या चिट्ठाकारों का कोपभाजन बनने का कारक है, मेरे चिट्ठे पर “मेरी पसंद” पृष्ठ पर ऐसे चिट्ठे हैं जो मुझे पसंद हैं पर उन पर खास टिप्पणीयाँ नहीं आईं पर मैं इसे पोस्ट की गुणवत्ता से जोड़ कर नहीं देखता, मसलन अगर मैं महिला चिट्ठाकार होता तो शायद कूड़ा पोस्ट पर भी दो दर्जन कमेंट बटोर लेता। आप क्या सोचते हैं?

यह अपने आप में बड़ा प्रोफ़ाउण्ड रिमार्क है. हम लोग टिप्पणी के लिये कुलबुलाते रहते हैं. बकौल फ़ुरसतिया इस चिन्ता में रहते हैं कि “दस भी नहीं आयीं”. पर देबाशीष की माने तो स्टैट काउण्टर से ही प्रसन्न रहना चाहिये.

लेकिन मसला महिला चिठ्ठाकारों का था – सो देबाशीष की टिप्पणी के बाद (ऊपर उद्धृत टिप्पणी पर चर्चा से कतराते हुये) किसी सज्जन ने कुछ नहीं कहा. यद्यपि पोस्ट पर टिप्पणियां १२ आयीं.

मैं सोच रहा था कि क्या वास्तव में ऐसा है कि महिला चिठ्ठाकारों को प्रेफरेन्शियल ट्रीटमेण्ट मिलता है टिप्पणियों में? मेरे विचार से श्री समीर लाल (जो स्त्री नहीं हैं) को अवश्य मिलता है. वे पुरानी पोस्ट भी गलती से ठेल दें तो लोग टिप्पणी करने पंहुच जाते हैं ( :-) ). पर उनके मामले में जायज है – वे स्वयम जोश दिलाने के लिये लोगों के चिठ्ठों पर जा-जा कर इतना सुन्दर टिपेरते हैं कि उनको टिप्पणियां मिलनी ही चाहियें. देबाशीष की टिप्पणी दूससे सन्दर्भ में है. उस में क्या कोई मनोविज्ञान है? क्या अनूप सुकुल अनुपमा सुकुल, आलोक पुराणिक अलका पुराणिक और देबाशीष देवयानी या हम खुद ज्ञानेश्वरी देवी के पेन नेम से अपनी पहचान छुपा कर लिखते तो टिप्पणियां दूनी होतीं?

जरा प्रकाश डालें! :-)


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

12 thoughts on “किस्सा-ए-टिप्पणी बटोर : देबाशीष उवाच

  1. हेलॊ जीमैँ केरल से हूँ। मलयालम में ब्लोग कर रहा हूँ।मैंने ब्लॊगिंग ब्लॊगस्पॊट में शुरू किया था। अब मेरा जॊ ब्लॊग( रजी चन्द्रशॆखर ) वॆर्ड्प्रस में है, उसी में हिन्दी प्रविष्टियाँ भी शामिल कर रहा हूँ । कृपया दॆखें और अड्वैस भी दें।

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  2. वह ज्ञान जी ! हमारे ज्ञान चक्षु खोलने के लिये बहुत बहुत आभार! हम तो अब तक यही समझ रहे थे कि हम अच्छा लिखते हैं । घुघूती बासूती

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