परसों सवा तीन बजे 2560,शिवगंगा एक्सप्रेस के पीछे के ब्रेकवान में आग लग गयी। गाड़ी कानपुर से चली थी। चलते ही चन्दारी और चकेरी स्टेशनों के बीच उसे बीच में रोक कर आगे की पूरी गाड़ी प्रचण्ड आग से ग्रस्त अंतिम कोच (ब्रेकवान) से अलग की गयी। आग की लपटें इतनी तेज हो गयी थीं कि ट्रेक्शन की बिजली काटनी पड़ी। शिवगंगा एक्स्प्रेस लगभग 4 घण्टे वहीं खड़ी रही – जब तक कि दो फायर टेण्डर जद्दोजहद कर आग पर काबू कर पाये। सवेरे साढ़े तीन बजे से इस चक्कर में जागना पड़ा। करीब 40 एक्स्प्रेस गाड़ियाँ प्रभावित हुईं। दुर्घटना का कारण तो जांच का विषय है।
ट्रेन में आग की घटना मुझे व्यक्तिगत रूप से विदग्ध करती है। मेरा बेटा उस प्रकार की घटना का शिकार रहा है। पर यहां मैं उसपर कुछ नहीं लिख रहा। मैं यहां एक विचित्र कोण की बात कर रहा हूं।
इस दुर्घटना में कोई हताहत नहीं हुआ। उस ब्रेक-वान वाले कोच में एक व्यक्ति की मौत हृदयगति रुकने से हुई। वह इस दुर्घटना से सम्बन्धित नहीं प्रतीत होती। घटना के बाद यातायात सामान्य होने में करीब 6-8 घण्टे लगे।
पर परसों रात में फिर कंट्रोल के फोन ने जगा दिया। चन्दारी और चकेरी के बीच लगभग उसी स्थान पर जीटी रोड के समपार फाटक पर एक ट्रक ने वाहनों की ऊंचाई नियत करने वाले हाइट गेज को तोड़ दिया। वह गेज 25 किलोवोल्ट के ट्रेक्शन के तारों से उलझ गया। यातायात पुन: बन्द। कुछ इस प्रकार से जैसे उस स्थान के आस-पास अदृष्य ताकत यातायात रोकने को उद्दत हो और हम लोगों की समग्र जागृत ऊर्जा को चुनौती दे रही हो।
ऐसा कई बार अनुभव किया है – एक स्थान पर मल्टीपल घटनाओं का मामला।
बहुत पहले रतलाम-उज्जैन के बीच दोहरी लाइन के खण्ड पर नागदा के समीप रात में एक सैलून की खण्ड में कपलिंग टूट गयी। एक सजग स्टेशन मास्टर ने देख लिया कि गाड़ी के पीछे लगा कैरिज बीच में ही रह गया है। अगर वह सजग न होता तो दूसरी गाड़ी को आने की अनुमति दे देता और भयंकर दुर्घटना में कई जानें जातीं। मौत को शिकार नहीं मिल पाया।
पर क्या वास्तव में? जो गाड़ी स्टेशन मास्टर ने चलाने को अनुमति नहीं दी, वह दूसरी लाइन से चलाई गयी। दूसरी लाइन पर दो पेट्रोल-मेन गश्त कर रहे थे। उन्हे अन्देशा नहीं था कि उलटी दिशा से गाड़ी आ सकती है। दोनो चम्बल नदी के पुल के पहले पटरी के बीचों बीच चल रहे थे। वह ट्रेन उन्हें रौन्दते हुये निकल गयी। मुझे उस घटना पर अपनी खिन्नता की अब तक याद है।
जो ट्रेन, कैरिज व उसमें सोये लोगों को उड़ाती, वह अंतत: लगभग उसी स्थान पर दो अन्य लोगों की बलि ले गयी|
कुछ इस अन्दाज में जैसे मौत वहां पर अपने लिये कोई न कोई शिकार तलाश रही हो!
क्या अदृष्य ताकतों का कोई परा-विज्ञान* है?
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* – परा-विज्ञान शब्द मैने परा-मनोविज्ञान (para-psychology) की तर्ज पर गढ़ा है। मेरा अभिप्राय विज्ञान से इतर तत्वों से है जिनका अस्तित्व विज्ञानसम्मत आधार पर प्रमाणित नहीं है। सामान्य भाषा में कहें तो आत्मा-प्रेत-भूत-देव छाप कॉंसेप्ट (concept)।
1. इस पोस्ट का औचित्य? असल में जेम्स वाटसन के डबल हेलिक्स के चंगुल से निकलने को मैने परा-विज्ञान का सहारा लिया है। विशुद्ध वैज्ञानिकता से दूर; तार्किकता के दूसरे ध्रुव पर जाने में ब्लॉग जगत की पूर्ण स्वच्छन्दता की बढ़िया अनुभूति होती है! लेकिन, कृपया मुझे परा-विज्ञान विषयों का फेनॉटिक न मान लिया जाये!
2. वैसे मैं प्रसन्न हूं कि मनीषा जी ने वेबदुनियां में मेरी लिखित या मौखिक हिन्दी में अंग्रेजी के पैबन्द पर कोई प्रतिकूल टिप्पणी नहीं की! इसके लिये उन्हे धन्यवाद।

आज आपकी कई पुरानी पोस्टें पढ़ रहा था तभी इस पोस्ट पर भी नजर पड़ी। वाकई कभी कभी लगता है कि कुछ तो है जो कि इंसानी समझ के बाहर की है और उससे उलझना ठीक नहीं। इश्वर पर मैं अंधश्रद्धा तो नहीं रखता लेकिन पूरी तरह से नकारता भी नहीं। वैसे, आजकल जो एक के बाद एक CRPF वालों के साथ हो रहा है वह भी एक तरह से पराशक्तियां ही समझी जांय क्योंकि नक्सली तो सरकार की जद में आने से रहे …..तमाम कोशिशें उन्हें हमसे परा ही साबित कर रही हैं और जब हाल ही में जो पिछले डेढ़ महीने पहले जो दुर्घटना ( नक्सलियों या माओवादीयों के चलते) जिसमें एक रेल पटरी को काट कर ट्रेन पहले डिरेल किया गया और दूसरी पटरी से आती गाड़ी से हादसे को भयानक बना दिया गया तो…यह भी एक तरह की परा शक्तियां ही हैं जो कि हमें दिख भी रही हैं और फिर भी हम कुछ कर नहीं पा रहे।
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ज्ञान जी आप की पोस्ट पड़ कर दिल दहल गया और ऊपर से आलोक जी की टिप्प्णी में कहानी। एक तो हमें आप का पोस्ट का पता रात को मिलता है तो अभी पढ़ रहे हैं, अब सोयेगे कैसे?सच है कुछ बातें ऐसी होती है जिनका कोई वैज्ञानिक आधार नही होता पर वो सच होती है। पेरा साइकलॉजी भी यही बात करती है ।
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