मेरा चना बना है आली!


गा-गा कर चने बेचने वाले लगता है भूतकाल हो गये। साइकल पर चने-कुरमुरे या चपटे मसालेदार चने का कनस्तर कैरियर पर लादे आगे टोकरी में अखबार के ठोंगे रखे नमकीन चने बेचने वाला गली से निकलता था तो हर मकान से भरभरा कर बच्चे और उनके पीछे बड़े भी निकल आया करते थे। बेचने वाले का सामान जो होता था, सो तो ठीक; मुख्य होता था उसका गायन।

Chanaमेरा चना बना है आली

उसको खाते हैं बंगाली

पहने धोती ढ़ीली ढ़ाली

सिर पर जुल्फें काली-काली

चना जोर गरम बाबू, मैं लाया मजेदार

चना जोर गरम

मेरा चना बना अलबत्ता

उसको भेजूं शहर कलकत्ता

जहं चेहरेदार रुपैया चलता1

चना जोर गरम बाबू, मैं लाया मजेदार

चना जोर गरम

मेरा चना बना वजीर

उसको खाते लछिमन बीर

मारा मेघनाद को तीर

फुटिगइ रावन की तकदीर

चना जोर गरम बाबू, मैं लाया मजेदार

चना जोर गरम

यह चने वाला ट्रेन में भी चलता था।2 या ट्रेन में ही ज्यादा चलता था। जितना माल वह चने की गुणवत्ता से बेचता था, उतना ही अपनी गायन प्रतिभा से। अब वह कहीं बिला गया है। चना जाने कैसे बिक रहा है। गली में वह आता नहीं। जिन ट्रेनों में – लोकल पैसेंजर ट्रेनों में – वह बेचता था, उनमें मुझे बतौर आम यात्री चढ़े अर्सा गुजर गया। पता नहीं अब वह उनमें चलता है या नहीं। चलता भी हो तो कहीं पाउच में ब्राण्डेड चना-मूंगफली न बेंच रहा हो, बेसुरी आवाज में हांक लगा कर!

फुरसतिया सुकुल आज कल पॉडकास्टिंग का प्रपंच चला रहे हैं – कहीं यह चने वाला मिल जाये तो उसका गायन टेप कर पॉडकास्ट कर सुनवाने का कष्ट करें। या और कोई ब्लॉगर भाई जो ये हाईटेक काम सड़क छाप चनेवाले पर कर सकते हों, कृपया उस गायक से मिलवायें – प्लीज़!

और बाकी पाठक साहबान को अगर ऊपर वाले गाने की और पंक्तियाँ आती हों तो कृपया टिपेरे बिना हिलें मत। यूनुस अगर किसी फिल्म में यह गाना सुनवा सकें तो सोने में सुहागा!


Gyan(181)1. चेहरेदार रुपैया से मतलब टकले एडवर्ड सप्तम के चांदी के रुपये के सिक्के से है। जाने किस कारण से उनका बिना मुकुट का सिक्का ढ़ाला गया था!

2. रेलवे के दृष्टिकोण से देखा जाये तो चने वाला ट्रेन में अनाधिकृत वेण्डर होगा – जो रेलवे एक्ट में दण्डनीय है।Loser 

 


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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

18 thoughts on “मेरा चना बना है आली!

  1. ज्ञान जी आपने इस पोस्ट के द्वारा बचपन की याद दिला दी. जब मै नौंवी क्लास में पढ़ता था तो एक 'पागल पंडित' नामक व्यक्ति आता था चूरन बेचने. वो विशेष अंदाज में एक गीत गाता था "गड़गड़ गड़गड़ पेटवा बोलई, नीक ना लागई दनवा; सजनवा लाई देता ना पागल पंडित का हो चुरनवा सजनवा लाई देता ना" और फिर उसी अंदाज में संवाद बोलता "चूरन बना है पेवर*, खाई भउजी मुंह चाटे देवर" *शुद्ध

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  2. टकले एडवर्ड सप्तम के बारे में ऐसा कहा जाता है : महारानी विक्टोरिया का निधन २२ जनवरी १९०१ को हुआ मगर एडवर्ड की ताजपोशी ९ अगस्त १९०२ तक नही हुई. सिक्के का मास्टर सांचा ताजपोशी से पहले बना इसलिए उसमे उन्हें ताज में नही दिखाया जा सकता था. नए राजा का पोर्ट्रेट १९१० में जाकर तैयार हुआ. मगर क्योंकि इसी साल इस राजा की मौत हो गई इसलिए उस साल सिक्के जरी नही हो सके. केवल एक आने का सिक्का इस बादशाह का ताज पहने हुवे हिंदुस्तान में निकला था १९०६ में .

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  3. बहुत खूब !खूब मजेदार चना जोर गरम खिलाया। :)समय के साथ सब कुछ बदलता सा जा रहा है।

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  4. ज्ञान जी , आपके नित नए मुद्दों के ज्ञान के आगे हम नतमस्तक हो गए. वैसे आप जो बचपन को याद करके हमे भी हमारा बचपन याद दिला रहे हैं… बहुत कुछ याद आ गया है…!

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  5. धन्यवाद इस स्वादिष्ट पोस्ट के लिये। हमारे यहाँ तो आपके प्रदेश ही से चना जोर गरम वाले आते है पर अब वे पहले जैसे चिल्लाते नही है। दूर से उनकी जलती चिमनी उनकी पहचान है। कभी-कभी कैरोसिन की गन्ध भी चने मे आ जाती है। जैसे अब सत्तू पाउच मे आने लगा है वैसे ही चना जोर गरम भी आ रहा है। इस नमकीन पोस्ट के बाद कुछ मीठा हो जाये। वैसे बिस्क़िट वाली पोस्ट कुछ तो मीठी थी।

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