मोकालू गुरू का चपन्त चलउआ

Bharatlal

भरतलाल का गांव1 इलाहाबाद-वाराणसी ग्राण्ड-ट्रंक रोड और पूर्वोत्तर रेलवे की रेल लाइन के बीच में स्थित है। सड़क पर चलते वाहनों की चपेट में आ कर और ट्रेन से कट कर आसपास के कई लोग कालकवलित होते हैं। इससे भूत-प्रेतों की संख्या सतत बढ़ती रहती है। भूत प्रेतों की आबादी को डील करने के लिये ओझाओं की डिमाण्ड – सप्लाई में जबरदस्त इम्बैलेंस है। ऐसा नहीं कि झाड़-फूंक वाले ओझा कम हैं। लोटन दूबे, लाखन बिन्द, जिंगालू, लाल चन्द (बम्बई रिटर्ण्ड), कलन्दर यादव, बंसी यादव, बंसी पासवान और मोकालू शर्मा कुछ ऐसे ओझा हैं जिनके नाम भरतलाल को याद हैं। और भी हैं। पर भूत-प्रेतों की जनसंख्या में बढोतरी के चलते ये कम पड़ रहे हैं।

“लेटेस्ट भूत पापूलेशन में जो प्रमुख नाम हैं, वे हैं – शितलू, चेखुरी, झिंगालू, फुननिया, बंसराज क मेहरारू, गेनवां आदि। ताल (गांव के पास की निचली दलदली जमीन) पर एक चौदह साल के धोबी के लड़के का सर कलम कर हत्या की गयी थी। उसका सिरविहीन धड़ अभी भी रात में सफेद कपड़े धोता है। वह लेटेस्ट और मोस्ट सेनशेसनल भूत है।”

ऐसा भी नहीं है कि भूत बनने के बाद कोई परमानेण्ट गांव का निवासी हो जाये। हर साल भूत गोंठाये जाते हैं। एक ओझा अपने चेलों के साथ झण्डा, नारियल, गगरी में पानी आदि ले कर गांव का चक्कर लगाता है। इस परिक्रमा के अनुष्ठान में सारे भूत आ आ कर नारियल में समाते जाते हैं। उसके बाद उस नारियल को पितृपक्ष में ओझाओं का डेलीगेशन लेकर गया जाता हैं और वहां नारियल के साथ भूतों को डिस्पोज़ ऑफ कर वापस लौटता है।

पर भरतलाल का अनुमान है कि कुछ चण्ट भूत ओझा मण्डली को पछियाये गया से वापस चले आते हैं – जरूर। वर्ना कई एक दो दशाब्दियों के भूत अभी कैसे पाये जाते गांव में?

लेटेस्ट भूत पापूलेशन में जो प्रमुख नाम हैं, वे हैं – शितलू, चेखुरी, झिंगालू, फुननिया, बंसराज क मेहरारू, गेनवां आदि। ताल (गांव के पास की निचली दलदली जमीन) पर एक चौदह साल के धोबी के लड़के का सर कलम कर हत्या की गयी थी। उसका सिरविहीन धड़ अभी भी रात में सफेद कपड़े धोता है। वह लेटेस्ट और मोस्ट सेनशेसनल भूत है। उसका नाम भरतलाल को नहीं मालूम।

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भूत-प्रेत (या उसका मालिक ओझा) जो ज्यादा उत्पात मचाता है, उसे दूर करने के लिये भी टेकनीक है। उस तकनीक को चलऊआ कहा जाता है। सिंदूर, अक्षत, गेंदा के फूल, घरिया में गन्ने का रस, आधा कटा नीबू, चूड़ी के टुकड़े, लौंग आदि लेकर नजर बचा कर किसी व्यक्ति या किसी दूसरे मुहल्ले/गांव पर चलऊआ रख दिया जाता है। एक ताजा चलऊआ मोकालू गुरू नें जिंगालू गुरू के कहने पर रखा। सबसे बेस्ट क्वालिटी का चलऊआ हो तो उसे “चपंत चलऊआ” कहा जाता है। इसका परिणाम जल्दी आता है। मोकालू ने चपंत चलऊआ रखा था।

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पर इस चपंत चलऊआ में कहीं कुछ मिस्टेक रह गयी। जहां यह चलऊआ रखा गया था, वह जीटी रोड पर था। उस जगह पर अगले दिन एक ट्रक के अगले दो चक्के निकल गये और गड़गड़ाते हुये खेत में चले गये। ट्रक ढ़ंगिला (लुढ़क) कर गड़ही (गहरी छोटी तलैया) में पलट गया। जिंगालू गुरू के क्लायण्ट को कष्ट देते भूतों पर चलने की की बजाय यह चलऊआ ट्रक पर चल गया।

जिंगालू गुरू बाद में किसी और प्रेत को साधते हुये रन-अवे ट्रेक्टर की चपेट में आ कर खुद प्रेत पॉपुलेशन में शामिल हो गये।

मोकालू गुरू; लोटन दूबे, गांव के ओझा-इन-चीफ के असिस्टेण्ट हैं। साधना में भवानी उनकी जबान पर तो आ गयी हैं; पर अभी बोली नहीं हैं। मोकालू जब ट्रांस (trance – मोहावस्था, अवचेतन, मूर्छा, तन्मयावस्था) में आ कर “बोल मण्डली की जै” बोल देंगे तो भवानी उनपर सिद्ध हो जायेंगी। तब वे इण्डिपेण्डेण्ट ओझाई करने लगेंगे।

अभी इंतजार किया जाये।

Waiting

इस पोस्ट के सभी महत्वपूर्ण इनपुट भरतलाल के दिये हैं। केवल भाषा मेरी है।


1. भरतलाल मेरा बंगला पियून है और मेरी ससुराल के गांव का है। गांव एक सभ्य और पूर्वांचल का प्रगतिशील गांव कहा जायेगा। यह लेख मैने हास्य का सहारा ले कर लिखा है। पर विडम्बना है कि इस प्रकार के गांव में भी भूत-प्रेत-ओझा का अस्तित्व कायम है और उनका अर्थशात्र भी डगमगाया नहीं है।
यह ३००वीं पोस्ट है।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

20 thoughts on “मोकालू गुरू का चपन्त चलउआ

  1. सटीक मुद्दे पर लिखा आपने, हास्य का सहारा लेना लेखन की मजबूरी थी।यह जादू-टोना, भूत-प्रेत, इससे छत्तीसगढ़ के अंदरूनी इलाके के गांव ही नही बल्कि शहरों के आसपास के गांव भी ग्रसित हैं। ऐसे में राजधानी रायपुर की एक संस्था अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के सदस्य बढ़िया काम यह कर रहे है कि जहां भी इस तरह की बातें सुनने में आती है वहां खुद एक दो दिन या रात बिताते हैं और ग्रामीणों को यकीन दिलाते है कि इस तरह की कोई चीज नही है।जल्द ही इस संस्था और उसके सदस्यों के बारे में लिखूंगा मैं।300वीं पोस्ट की बधाई और भरतलाल तो जीये ही जीये उसके कारण आपकी कई पोस्ट बनती रहती है।

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  2. इसको इत्तेफ़ाक न कहें तो और क्या कहें, कल ही मेरा एक कोलम्बियन मित्र कोलम्बिया के भूतों की कहानी सुना रहा था । वैसे कोलम्बिया में भूतनियों (वो भी बेहद खूबसूरत) की मोनोपोली है :-)३०० वीं पोस्ट की बधाई, इससे याद आ गया कि आपने अपनी १००वीं पोस्ट के बाद ब्लाग जगत से भागने की धमकी दी थी :-) अब तो ऐसा नही लगता कि आप भाग पायेंगे, लौट कर यहीं आयेगें ।

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  3. 300 वी पोस्ट के लिये बधाई! ईश्वर करे कि अब आप 3000 वां शिखर स्पर्श करें.इस लेख द्वारा जो जानकारी आपने दी है उसके लिये आभार. भारत में इतनी विविधता है कि इस तरह की स्थानीय बातों को पढे बिना अपने देश के बारें मे किसी भी व्यक्ति की जानकारी अधूरी रहती है.

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  4. भैया, तीन सौ में से कम से कम २० पोस्ट भरत लाल की वजह से बनी होंगी. बताईये, आपको सब ने बधाई दे दी लेकिन पूरी बधाई का ५% हिस्सा भी भरत लाल को नहीं गया…..मैं भी आपको बधाई देता हूँ. इस आशा के साथ कि ५% आप भरत लाल की तरफ़ सरका देंगे……:-)

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  5. आज लिखने को बहुत सी बाते है। पहले तो तीन सौ का आँकडा छूने की बधाई। इस एक और अतिथि पोस्ट की बधाई। जाने-अंजाने भरतलाल का जिक्र आता ही रहता है। भूत-पुराण बढिया लगा। इन भूतो का भविष्य़ सही जान पडता है। यह तो गनीमत है कि जानवर विशेषकर मच्छरो के भूत नही होते है। नही तो ओझाओ की कमी और महसूस होती।

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  6. ज्ञान जी सबसे पहले तो तीन सौ वीं पोस्‍ट की बधाई ये जो तिहरा शतक है ये कई मायनों में मानीखेज है और ये भूतिया पोस्‍ट भी । मैंने आई आई टी के निदेशक प्रो अशोक मिश्रा से पिछले हफ्ते एक इंटरव्‍यू में पूछा था कि एक तरफ देश कंप्‍यूटर मोबाईल और गिज्‍मोज़ के जरिए तकनीकी तरक्‍की पर है दूसरी तरफ चाहे गांव हों या शहर भूत प्रेत टोने टोटके और अंधविश्‍वास बढ़ रहे हैं । विरोधाभासों की ये खाई क्‍या कभी खत्‍म होगी । तो उन्‍होंने भी स्‍वीकार किया था कि भारत विरोधाभासों का देश है । यहां तर्क और भावनओं के बीच का फर्क बहुत लंबा है वगैरह वगैरह । बहरहाल हम ये जरूर कहना चाहेंगे कि आपका थोड़ा ब्‍लॉगिंग जुनून हमारे पास भी आ जाये तो हम भी ब्‍लॉगिंग के ‘भूत’ बन जायें वो भी खुशी खुशी

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  7. मेरे शहर में एक रिटायर्ड प्रोफेसर हैं जिनके पास मैं पढ़ने चला जाता हूं, वे भी यूपी के किसी गांव के मूल निवासी हैं. बेहद बुद्धिमान और वैज्ञानिक सोच के धनी. उनके गांव में भी ऐसे ही भूत-प्रेत की समस्‍या थी पर एक बार उन्‍होंने गांव वालों को भूत का अस्तित्‍व साबित करने को कहा और गांव वालों को खुद सच्‍चाई की तह तक पहुंचने का रास्‍ता दिखाया अब उस गांव में कोई भूत-प्रेत को नहीं मानता है।तिहरे शतक की बधाई. वह दिन दूर नहीं जब पोस्‍ट लिखने के मामले में आप सचिन के रनों की तरह रिकार्ड कायम करेंगे. :)

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  8. आप को क्रिसमस के साथ ३००वीं पोस्ट मुबारक। गांव के साथ साथ भूत-प्रेत अउर औझा भी प्रगति को प्राप्त हो रहे हैं। उन के तंत्र में भी नए आइटम जुड़ते चले जाते हैं।

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  9. बधाई कि आपकी ये तीन सौंवी पोस्ट है। भूत-प्रेत के बारे में जानदार-इनपुट देने के लिये भरतलालजी भी बधाई के पात्र हैं। भूत-प्रेत बेचारे भी बड़े खुश होंगे कि उनके बारे में भी ब्लाग-जगत में लोग लिखते-पढ़ते हैं। :)

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