गाजर घास पर जानकारी


आज बुधवासरीय अतिथि पोस्ट में आप श्री पंकज अवधिया द्वारा गाजर घास पर विभिन्न कोणों से दी गयी विस्तृत जानकारी उनके नीचे दिये गये लेख में पढ़ें। उनके पुराने लेख आप पंकज अवधिया के लेबल सर्च से देख सकते हैं।


गाजर घास (पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस) की समस्या जन-जन की समस्या बनती जा रही है। भारत में गाजर घास लगभग सभी क्षेत्रोँ में फैली है और जन-स्वास्थ्य के लिये खतरा बनी हुई है। यह विडंबना ही है कि आज भी भारत की आबादी का एक बड़ा हिस्सा गाजरघास के विषय में नहीं जानता है। आज आवश्यकता इस बात की है कि व्यापक जन-जागरण अभियान चलाकर न केवल व्यक्तिगत स्तर पर गाजर घास का उन्मूलन किया जाए बल्कि सरकार पर भी दबाव बनाया जाये। इस आलेख में प्रश्नोत्तरी के माध्यम से गाजर घास के विषयमें नवीनतम जानकारी उपलब्ध कराने का प्रयास किया गया है।

प्रश्न:  गाजर घास क्या है और इसका नामगाजर घासक्यों पड़ा?

उत्तर: गाजरघास एक साधारण सा दिखने वाला खरपतवार है जो कि पहले बेकार जमीन व मेड़ों तक ही सीमित था पर अब यह खेतों में प्रवेश कर फसलों से प्रतियोगिता कर रहा है। गाजर घास एस्टेरेसी परिवार का सदस्य है। देश-विदेश के विभिन्न क्षेत्रोँ में इसके अलग-अलग स्थानीय नाम हें। इन नामों के पीछे गाजर घास के पौधे की विशेषता छिपी हुई है। गाजरके समान पत्ती होने के कारण गाजर घास कहते हैं। इसके फूल सफेद रंग के होते हैं इसलिए इसे चटकचांदनी या व्हाइट टाप भी कहा जाता है। जबलपुर के आस-पास के लोग इसकी सर्वत्र उपलब्धता के आधार पर इसे रामफूल कहते हैं। चूंकि यह खरपतवार सामान्यत: समूहों में उगता है इसीलिए इसे कांग्रेस वीड कहा जाता है। पार्थेनियम की 15 जातियाँ विश्व में पाई जाती हैं। इनमें से पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस ही अधिक नुकसानदायक है। बहुत अधिक बीजोत्पादन क्षमता होने के कारण ही इसे पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस का नाम मिला। गाजरघास के पौधे वार्षिक होते हैं व इनकी ऊंचाई सामान्यतया 2 मीटर तक होती है। गाजर घासकी पत्तियों व तनों पर छोटे-छोटे रोम पाये जाते हैं जिन्हें ट्रायकोम्स कहा जाता है।

प्रश्न:  गाजरघास से क्या-क्या नुकसान हैं?

उत्तर:  गाजरघास संभवत: विश्व एक एकमात्र ऐसा खरपतवार है जो कि मनुष्यों, पशुओं, फसलों, वनों और वन्यप्राणियों सभी के लिये नुकसानदायक है। गाजर घास के फूलों से उत्सर्जित होनेवाले पराग-कण मनुष्य के श्वास तंत्र में प्रवेश करके अस्थायी दमा व एलर्जी उत्पन्न करते हैं। गाजर घास के एक फूल से असंख्य परागकण उत्सर्जित होते हैं। एक परागकण किसी मनुष्य को अस्वस्थ करने के लिये पर्याप्त है। ये परागकण हमारे आस-पास हवा में फैले रहते हैं व साधारण ऑंखों से दिखायी नहीं पड़ते हैं। देश के विभिन्न महानगरों व नगरों में किये गये सर्वेक्षणों से पता चला है कि वहाँ के वातावरण में गाजर घास के परागकण अन्य हानिकारक परागकणों की तुलना में बहुत अधिक हैं। पश्चिम बंगाल के मोहनपुर क्षेत्र में काली पूजा के समय गाजर घास के फूल आते हैं व परागकणों का उत्सर्जन होता है। इस समय यहाँ का प्रशासन लोगों की मदद के लिये दसों अस्थायी अस्पतालों की व्यवस्था करवाता है। फिर भी प्रभावित लोगों की संख्या में कमी नहीं आती है। गाजरघास के परागकण मनुष्यों के अलावा पशुओं व फसलों को भी नुकसान पहूँचाते हैं। हवा में उपस्थित असंख्य परागकण पर- परागित सब्जी की फसलों में पौधों के मादा जनन अंगों के ऊपर एकत्रित हो जाते हैं जिससे कि उनकी संवेदनशीलता खत्म हो जाती है और बीज नहीं बनने से फसलों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। गाजर घास के निरंतर संपर्क में आने वाले मनुष्यों को त्वचा की एलर्जी का खतरा रहता है। अनुसंधानों से पता चला है कि गाजर घास के संपर्क में आने से एक विशेष प्रकार का एक्जीमा हो जाता है। आपका ये जानकर आश्चर्य होगा कि भारत के कर्नाटक राज्य में गाजर घास जनित रोगों से प्रभावित होकर 7 से भी अधिक किसान आत्महत्या कर चुके हैं। यह विश्व में पहली घटना है जबकि किसी खरपतवार से परेशान होकर किसानों ने आत्महत्या की हो। गाजर घास के पौधे कुछ घातक एलिलो-रसायनों का स्त्राव करते हैं। ये एलिलो-रसायन आस-पास किसी अन्य पौधों को उगने नहीं देते हैं। भारतीय वन अपनी जैव-विविधता के कारण विश्व के मानचित्र में विशेष स्थान रखते हैं। भारतीय वनों में आज भी ऐसी सैकड़ों वनौषधियाँ उपलब्ध हैं जिनके दिव्य औषधिय गुणों का सही आकलन अभी तक नहीं हुआ है। भारतीय वनों में गाजर घास के अनियंत्रित फैलाव से बेशकीमती जड़ी-बूटियाँ नष्ट होती जा रही हैं। गाजर घास के दुष्प्रभाव से वन्य प्राणी भी अछूते नहीं रह गये हैं। आस्ट्रेलिया में प्रति वर्ष 165 अरब रूपयों का खाद्य/मांस गाजर घास के कारण अप्रत्यक्ष रूप से बर्बाद होता है।भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा किये गये अनुसंधानों से पता चला है कि गाजर घास के प्रकोप से फसलों की उपज में 40 प्रतिशत तक कमी हो जाती है। गाजर घास के परागकण मक्के के पर-परागण में बाधा डालते हैं व इसकी उपज को 50 प्रतिशत तक कम कर देते हैं। आस्ट्रेलिया में गाजर घास एक विशेष प्रकार के सूत्राकृमि को आश्रय देती है। यह सूत्राकृमि सूर्यमुखी के लिये नुकसानदायक है।

प्रश्न:  क्या गाजर घास का उत्पत्ति स्थान भारत है और क्या भारत में ही इसका प्रकोप हैं?

उत्तर:  नहीं। गाजर घास का उत्पत्ति स्थान भारत नहीं है। गाजर घास का उत्पत्ति स्थान है दक्षिणमध्य अमेरिका । भारत में गाजर घास को जानबूझकर 1951 में आयातित अन्न के साथ लाया गया। सबसे पहले भारत में इसे पूना में देखा गया। अब यह बात एकदम साफ हो गई है कि अमेरिका ने भारत को आयतित अन्न के साथ गाजर घास के बीज मिलाकर भेजे ताकि भारत जैसे विकासशील देश की सुदृढ़ कृषि व्यवस्था को छिन्न-भिन्न किया जा सके। आज गाजर घास का उत्पत्ति स्थान अमेरिका गाजर घास की समस्या से उतना अधिक प्रभावित नहीं है, जितना विश्व के अन्य क्षेत्र। यदि गाजर घास से प्रभावित देशों को मानचित्र में दर्शाया जाये तो सबसे ज्यादा प्रभावित देश भारत ही दिखेगा। गाजर घास से प्रभावित देशों में अफ्रीका गणतंत्र, मेडागास्कर, केन्या, मोजाम्बिक, मारिशस, इजरायल, भारत, बांग्लादेश, नेपाल, चीन, वियतनाम, ताइवान, आस्ट्रेलिया आदि प्रमुख हैं।

प्रश्न:  गाजरघास के तेजी से फैलने के क्या-क्या कारण हैं?

उत्तर:  गाजरघास का पौधा कई विशिष्ट गुणों से युक्त होता है। इन्हीं विशिष्ट गुणों के कारण इसका फैलाव निर्बाध गति से हो रहा है। गाजर घास के एक पौधे से लगलग 25,000 बीज बनते हैं।इन बीजों में सुसुप्तावस्था नहीं पाई जाती है अर्थात ये सभी बीज तुरंत अंकुरण की क्षमता रखते हैं। गाजर घास के बीज हवा व जल के माध्यम से फैलते हैं। एक वर्ष में गाजर घास की तीन से चार पीढ़ियाँ होती हैं। गाजर घास सभी प्रकार की मिट्टियों में अच्छी वृद्धि करता है। यह विपरीत वातावरणीय परिस्थितियों, अधिक अम्लता या क्षारीयता वाली भूमि आदि में उग सकता है। इसके अलावा गाजर घास के पौधे पार्थेनिन, काउमेरिक एसिड, कैफिक एसिड आदि घातक एलिलोरसायनों का स्त्रवण करते हैं जो कि अपने आस-पास किसी अन्य पौधे को उगने नहीं देते हैं व गाजर घास से कोई भी पौधा या फसल प्रतियोगिता नहीं कर पाती है। इन्हीं कारणों से गाजर घास का फैलाव अन्य पौधों की तुलना में तेजी से हो रहा है।

प्रश्न:  गाजरघास को कैसे नियंत्रित किया जा सकता है?

उत्तर:  गाजरघास को परिस्थितियों के अनुसार अलग-अलग विधियों से नियंत्रित किया जा सकता है। गाजर घास को हाथ से उखाड़कर नष्ट किया जा सकता है। यह कार्य फूल आने से पहले करना चाहिये ताकि गाजर घास का आगे फैलाव न हो। इस उपाय से गाजर घास को प्रभावी रूप से नियंत्रण के लिये विशेष सावधानी की आवश्यकता है। हाथों में दस्ताने पहनना व मुँह व कान को अच्छी तरह से कपड़े से बांधना आवश्यक है। बच्चों को तो हाथ से गाजर घास नहीं उखाड़ने देना चाहिये। नमक के 20 प्रतिशत घोल से भी गाजर घास को आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है। किसान भाई 5 गिलास पानी में एक गिलास साधारण नमक घोलकर पौधों पर छिड़काव कर सकते हैं। घरों के आस-पास सीमित स्थानों पर गाजर घास को इस तरह नियंत्रित किया जा सकता है पर बहुत बड़े क्षेत्र में इसके प्रयोग से भूमि की लवणता बढ़ सकती है। साथ ही बड़े क्षेत्र के लिये यह विधि खर्चीली भी है। भारतीय कृषि वैज्ञानिकों ने कई ऐसे पौधे सुझायें हैं जो कि तेजी से बढ़ते हैं व उपयोगी हैं तथा गाजर घास की वृद्धि को कम करने में सहायक हैं। इन पौधों में गेंदा, चरोटा, क्रोटन आदि प्रमुख हैं। गेंदे के पौधे का निचोभी गाजर घास की वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। कर्नाटर सरकार कैसिया सेरेसिया नामक पौधे के बीज किसानों को उपलब्ध करा रही है। ये पौधे गाजर घास से प्रतियोगिता करके उसे नष्ट कर देते हैं। कुछ मित्र कीट व रोग कारक भी गाजर घास के विरूद्ध उपयोगी पाये गये हैं। कीटों में जाइगोग्रामाबाइकलरेटा नामक कीट केवल गाजर घास को ही नष्ट करता है व भारतीय परिस्थितियों के लिये उपयुक्त पाया गया है। गाजर घास को उपलब्ध कृषि रसायनों की सहायता से भी नियंत्रिात किया जा सकता है। इन रसायनों में एट्राजीन, डाइकाम्बा, एट्राजीन+2, 4 डी, मेटसल्फ्यूरॉन, ग्लाइफोसेट आदि प्रमुख हैं।

प्रश्न:   क्या गाजर घास का रासायनिक नियंत्रण पर्यावरण के दृष्टिकोण से सुरक्षित है?

उत्तर:  गाजरघास को विदेशों से भारत लाया गया है। यह कटु सत्य है कि गाजर घास को नियंत्रित करने में सक्षम कृषि रसायन भी विदेशों की ही देन हैं। गाजर घास का रासायनिक नियंत्रण पर्यावरण के दृष्टिकोण से बिल्कुल सही नहीं है। उपलब्ध रसायन न केवल मिट्टी बल्कि मिट्टी में उपस्थित लाभकारी सूक्ष्मजीवों के लिये भी नुकसानदायक हैं। इसके अलावा ये रसायन भूमिगत जल को भी दूषित कर देते हैं। यदि यह कहा जाय कि गाजरघास को रासायनिक विधि से नियंत्रित करना एक समस्या को हटाकर दूसरी भयानक समस्या को आमंत्रण देना है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

प्रश्न:  क्या सरकारी स्तर पर किसी अभियान के तहत इसे उखाडा जा रहा है?

उत्तर:  नही सरकारी स्तर पर ऐसा कोई प्रयास नही हो रहा है। खरपरवार वैज्ञानिको की पहल पर प्रतिवर्ष 6 से 12 सितम्बर को गाजर घास जागरुकता सप्ताह मनाया जाता है। इसे हाल ही के वर्षो से आरम्भ किया गया है। इसके पीछे उद्देश्य सही है पर ज्यादातर आयोजन भाषणो तक सीमित होने लगे हैं। जिस गति से गाजर घास का फैलाव हो रहा है उसे देखकर यही लगता है कि एक दशक तक वृहत पैमाने पर अभियान की जरुरत है।

प्रश्न:  गाजर घास के विरुद्ध अभियान मे जुटी संस्थाए सोपाम और आई.पी.आर.एन.जी. को इस कार्य के लिये पैसे कहाँ से मिलते है?

उत्तर:  दोनो ही संस्थाए निज व्यय से चलती है। यहाँ तक की सदस्यो से सदस्यता शुल्क भी नही लिया जाता है। इन संस्थाओ का संचालन संस्थापक पंकज अवधिया करते है। सोपाम द्वारा अभी तक दस हजार से अधिक किसानो को पोस्टकार्ड के माध्यम से जानकारी दी जा चुकी है। आई.पी.आर.एन.जी. गाजर घास से जुडे किसानो और वैज्ञानिको का आन-लाइन ग्रुप है। इसकी अपनी वेबसाइट है जो गाजर घास पर विस्तार से जानकारी देने वाली दुनिया की एकमात्र वेबसाइट है। इसे भी निज व्यय से संचालित किया जाता है। पिछले एक दशक से भी अधिक समय से गाजर घास जागरुकता अभियान बिना किसी आर्थिक और तकनीकी सहायता से चल रहा है।     


गाजर घास पर इण्टरनेट पर उपलब्ध कुछ महत्वपूर्ण लिंक:

इंटरनेशनल पार्थेनियम रिसर्च न्यूज ग्रुप की वेबसाइट

गाजर घास के चित्र

गाजर घास पर हिन्दी आलेख और शोध पत्र

इकोपोर्ट पर उपलब्ध शोध आलेख

बाटेनिकल डाट काम पर उपलब्ध शोध आलेख

गाजर घास पर चर्चा हेतु याहू ग्रुप


पंकज अवधिया

© इस लेख पर सर्वाधिकार श्री पंकज अवधिया का है।


गाजर घास के चित्र लेने में देर कर दी हमने। कल धुंधलका होने पर याद आया। मैं और रीताजी घूमने निकले। टॉर्च, कैमरे के प्लैश और स्ट्रीट लाइट में यह चित्र लिये जो ऊपर लगाये हैं। रात में झाड़-झंखाड़ का फोटो लेते देखने वाले हमें निश्चय ही खब्ती समझ रहे होंगे! :-)

ब्लॉगिंग खब्तियाने का ही दूसरा नाम है शायद!



Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

7 thoughts on “गाजर घास पर जानकारी

  1. गाजर घास से हो रही परेशानियों के बारे में सुना था पर आज पूरी जानकारी पता चली, धन्यवाद डॉ साहब।एकाद चित्र फूल व पत्तियों का एकदम पास से हो (क्लोजअप) तो किसी वनस्पति को आसानी से पहचाना जा सकेगा।

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  2. जानकारी देने के लिए शुक्रिया।और हाँ फोटो के लिए ज्ञान जी और रीता जी को शुक्रिया।

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  3. गाजर घास के बारे में बहुत ज्ञान वर्धन किया है पंकज अवधिया जी ने , जब भी इस ब्लॉग पर आता हूँ कुछ लेकर जाता हूँ , ज्ञान जी आपका आभार !

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  4. “भारत में गाजर घास को जानबूझकर 1951 में आयातित अन्न के साथ लाया गया। … अमेरिका ने भारत को आयतित अन्न के साथ गाजर घास के बीज मिलाकर भेजे ताकि भारत जैसे विकासशील देश की सुदृढ़ कृषि व्यवस्था को छिन्न-भिन्न किया जा सके।” बाप से बाप, इतनी बड़ी साजिश!! और हमारे नेहरू जी को पता ही नहीं चला। इससे तो यही लगता है कि इन नेताओं के दिखाने के दांत कुछ और थे और खाने के कुछ और…

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  5. यह सामाजिक और राष्ट्रीय महत्व की जानकारी है। आप के द्वारा लिया गया चित्र बहुत अच्छा है संभवतः दिन में उतना अच्छा न होता। रात्रि में केवल लक्ष्य पर प्रकाश रहने से अधिक स्पष्ट हो गया है।

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