रेगुलरहा सुकुल ने दिया फेयरवेल


एक लम्बी कद-काठी के साठ वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्ति को गोरखपुर की रेलवे कॉलोनी में रोज सवेरे शाम घूमते देखता था। एक ही चाल से। हर मौसम में। कड़ाके की ठण्ड में भी। कोहरा इतना घना होता था कि तीन चार मीटर से ज्यादा दिखाई न दे। मैं अपने गोलू पाण्डेय (मेरा दिवंगत कुत्ता) के साथ घूमता था। कोई अन्य व्यक्ति न होता था सड़क पर।


लीची के पेड़ के नीचे रेगुलरहा की रसोंई

अचानक विपरीत दिशा से यह सज्जन आते दीखते और गुजर जाते। महीनों तक कोई बातचीत न थी। पर घूमने वाले के रूप में पहचान हो गयी थी। वे सैर में नियमित थे – अत: नाम रख दिया गया – रेगुलरहा| कभी पत्नी जी साथ न घूमतीं तो घर आने पर पूछतीं – आज रेगुलरहा थे या नहीं? और रेगुलरहा लगभग रोज होते थे।

अचानक रेगुलरहा गायब हो गये। महीनों न दिखे। अप्रैल में वैशाखी भी निकल गयी। एक दिन अकस्मात दिखे – उल्टी तरफ से आते हुये। मुझसे रहा न गया। सड़क क्रॉस कर उनसे नमस्कार कर बोला – क्या बात है जी, बहुत दिन से दिखे नहीं? रेगुलरहा को अपेक्षा नहीं थी कि जाना-अजनबी अचानक बात कर उठेगा। बोले – “हां जी, गांव गया था। फसल तैयार हो रही थी। काम निपटा कर कल ही वापस लौटा हूं”। तब बात में पता चला कि उनका नाम था सत्यनारायण शुक्ल। रेलवे के ही कर्मचारी थे। सिगनल वर्कशॉप से रिटायर हुये। उन्होने बताया “वे मेरे बारे में जानते हैं। मेरे घर-परिवार की जानकारी है। वे रेलवे की यूनियन से भी सम्बद्ध रह चुके हैं, और उस समय भी उसका काम करते हैं”। अब हमारे लिये वे रेगुलरहा से रेगुलरहा सुकुल हो गये!

रेगुलरहा सुकुल
रेगुलरहा सुकुल

रेगुलरहा सुकुल
रेगुलरहा सुकुल का दाल-बाटी आयोजन

एक छोटी सी बात करने की पहल एक नये सम्बन्ध को जन्म देती है। हम रोज दुआ-सलाम करने लगे। रेगुलरहा यूनियन के आदमी थे, सो सम्बन्ध बनाना और उसका उपयोग करना उन्हें आता था। कालान्तर में मेरा गोरखपुर से स्थानान्तरण हो गया था। सामान लगभग बंध चुका था। रेगुलरहा सुकुल अपनी रिटायर्ड लोगों की मण्डली के साथ मेरे घर पर आये। उन्होने लीची के पेड़ के नीचे दाल बाटी बनाने का काम किया। भोजन बना कर रेगुलरहा की मण्डली ने एक दो भजन गाये। फिर हम सबने कमरे में फर्श पर भोजन किया।

मेरे ही घर पर मेरा फेयरवेल! रेगुलरहा जैसे असामान्य से थे, वैसा ही अलग-अलग सा फेयरवेल था उनके द्वारा। अब उस सब को तीन साल होने जा रहे हैं। रेगुलरहा सुकुल की याद अब भी आती है।

आपको भी मिले होंगे ऐसे रेगुलरहा सुकुल?


1. और बस, आलोक पुराणिक जी ने कहा है कि ऐसी संस्मरणात्मक पोस्टें बुढ़ापत्व की ओर ले जाती हैं। सो इस तरह का लेखन बन्द।

2. Blogger in draft के माध्यम से आप अपनी पोस्टें आप शिड्यूल कर पोस्ट कर सकते थे। वे भविष्य में नियत समय पर पब्लिश हो रही थीं। पर उनसे BlogSend की ई-मेल जेनरेट नहीं हो रही थी। अब यह समस्या भी दूर हो गयी है। आज पहली बार ब्लॉगर इन ड्रॉफ्ट के माध्यम से मेरी सवेरे 5:00 बजे पब्लिश्ड पोस्ट की ई-मेल प्रति मुझे अपने ई-मेल पते पर मिली। मैने ब्लॉगर ड्रॉफ्ट के ब्लॉग से देखा तो पाया कि वास्तव में उन्होने इस बग को रिपेयर कर लिया है। – यह पुछल्ला सवेरे 6:05 पर जोड़ा।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

20 thoughts on “रेगुलरहा सुकुल ने दिया फेयरवेल

  1. ऐसे लोग और इतना आत्मीय फेयरवेल-वाह!! यह तो आपकी यादों में हमेशा रचा बसा रहेगा.

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  2. हम सब के अन्दर यह व्यक्तित्व छिपा है। जब भी ऐसे संस्मरण पढते है मन मे भाव जागते है कि इस तरह भी जीया जाये। धन्यवाद।

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  3. भई अपन ने तो कई महीने पहले ही कहा था आपके वो मंघाराम एंड संस के बिस्किट वाले पोस्ट पे कि काहे आप धीर-धीरे सरक रहे हो बुढ़ापे की ओर, तब अपना भी यही आशय था जो आलोक जी का।बाकी रेगुलरहा सुकुल ने जो आयोजन किया ऐसे आयोजन एक अलग ही खुशी दे जाते हैं!भगवान बस ऐसे आदमियों को बनाना बंद न करे!

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  4. ये आलोक पुराणिक हमेश उल्‍टी- पुल्‍टी बाते करता रहता है. इसकी बातों को गंभीरता से मत लेना, इसके झांसे में मत आना जी, आप संस्‍मरण लिखते रहिए. इनसे प्रेरणा मिलती है.

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  5. ज्ञान जी हम कहे दे रहे हैं कि किसी सावंत के प्रशंसकों के बहकावे में मत आईये । संस्‍मरणों की चटाई बिछाए रहिए । हम आपके संस्‍मरणों की पुस्‍तक की भी बाट जोहने लगे हैं । उड़नतश्‍तरी से कवर डिज़ायन करवाएंगे या फिर पंगेबाज़ से । और दिल्‍ली से छपवाएंगे । बेस्‍टसेलर बनेगी आपकी बुक ।

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  6. जमाये रहियेजी।संस्मरण लिखना अच्छी बात है, पर 95 सौ की उम्र के बाद सोचना चाहिए कि अब आधी जिंदगी जी चुके, तब शुरु करें।57 साल की उम्र बाली उमरिया कोई संस्मरण लिखने की है क्या। ये तो संस्मरण योग्य कर्म करने की है। जमाये रहियेजी।

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  7. रेगुलरहा सुकुल क्या नाम निकाला है आपने। अच्छा है। वैसे, हर इंसान अपने में एक इतिहास-भूगोल समेटे हुए चलता है। इसलिए ज्यादा से ज्यादा लोगों से मिलते-जुलते रहना चाहिए। लेकिन क्या करूं. मैं ऐसा कर नहीं पाता। स्वभाव से लाचार हूं।

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  8. भईयाआप के संस्मरणों में साधारण व्यक्तियों में छिपा असाधारण तत्त्व नजर आता है. सच है ऐसे लोग जीवन में नयी उर्जा का संचार करते हैं.जमीन से जुड़े लोगों की विलक्षण बातें बताने के लिए शुक्रिया.नीरज

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