ट्रैक्टर ट्रॉली का जू-जू


ट्रैक्टर और ट्रॉली का युग्म मुझे हाथी की तरह एक विचित्र जीव नजर आता है। हाथी में हर अंग अलग-अलग प्रकार का नजर आता है – एक लटकती सूंड़, दो तरह के दांत, भीमकाय शरीर और टुन्नी सी आंखें, जरा सी पूंछ। वैसे ही ट्रैक्टर-ट्रॉली में सब कुछ अलग-अलग सा नजर आता है। मानो फॉयरफॉक्स में फुल्ली जस्टीफाइड हिन्दी का लेखन पढ़ रहे हों।@ सारे अक्षर बिखरे बिखरे से।

रेलवे, लेवल क्रॉसिंग के प्रयोग को ले कर जनजागरण के लिये विज्ञापन पर बहुत खर्च करती है। पर आये दिन दुर्घटनाओं, बाल बाल बचने या बंद रेलवे क्रॉसिंग के बूम तोड़ कर ट्रैक्टर भगा ले जाने की घटनायें होती हैं। लगता है ढ़ेरों फिदायीन चल रहे हों ट्रैक्टरों पर।

JUGADजुगाड़ का एक जीवन्त चित्र श्री नरेन्द्र सिंह तोमर द्वारा

शहर और गांव में दौड़ती ट्रेक्टर ट्रॉलियां मुझे बहुत खतरनाक नजर आती हैं। कब बैलेन्स बिगड़े और कब पलट जायें – कह नहीं सकते। रेलवे के समपार फाटकों पर तो ये नाइटमेयर हैं – दुस्वप्न। बहुत अनस्टेबल वाहन। ईट या गन्ने से लदे ये वाहन आये दिन अनमैन्ड रेलवे क्रॉसिन्ग पर ट्रेन से होड़ में दुर्घटना ग्रस्त होते रहते हैं। वहां इनके चालक सामान्यत ग्रामीण नौजवान होते हैं। उनके पास वाहन चलाने का लाइसेंस भी नहीं होता (वैसे लाइसेंस जैसे मिलता है, उस विधा को जान कर लाइसेंस होने का कोई विशेष अर्थ भी नहीं है) और वे चलाने में सावधानी की बजाय उतावली पर ज्यादा यकीन करते प्रतीत होते हैं। इसके अलावा, ट्रैक्टर और ट्रॉलियों का रखरखाव भी स्तर का नहीं होता। कई वाहन तो किसी कम्पनी के बने नहीं होते। वे विशुद्ध जुगाड़ ब्राण्ड के होते हैं। यह कम्पनी (आंकड़े नहीं हैं सिद्ध करने को, अन्यथा) भारत में सर्वाधिक ट्रैक्टर बनाती होगी!

मुझे एक रेल दुर्घटना की एक उच्चस्तरीय जांच याद है – ट्रैक्टर ट्रॉली का मालिक जांच में बुलाया गया था। याकूब नाम का वह आदमी डरा हुआ भी था और दुखी भी। ट्रैक्टर चालक और ४-५ मजदूर मर गये थे। कुछ ही समय पहले लोन ले कर उसने वह ट्रैक्टर खरीदा था। जांच में अगर ट्रैक्टर चालक की गलती प्रमाणित होती तो उसके पैसे डूबने वाले थे और पुलीस केस अलग से बनने वाला था। पर याकूब जैसा भय व्यापक तौर पर नहीं दीखता। रेलवे, लेवल क्रॉसिंग के प्रयोग को ले कर जनजागरण के लिये विज्ञापन पर बहुत खर्च करती है। पर आये दिन दुर्घटनाओं, बाल बाल बचने या बंद रेलवे क्रॉसिंग के बूम तोड़ कर ट्रैक्टर भगा ले जाने की घटनायें होती हैं। लगता है ढ़ेरों फिदायीन चल रहे हों ट्रैक्टरों पर।tractor01

ट्रैक्टर ट्रॉली की ग्रामीण अथव्यवस्था में महत भूमिका है। और किसान की समृद्धि में वे महत्वपूर्ण इनग्रेडियेण्ट हैं। पर भारत में सोने का अण्डा देने वाली मुर्गी को हलाल कर सब अण्डे एक साथ निकाल लेने का टेम्प्टेशन बहुत है। ट्रैक्टर – ट्रॉली के रखरखाव पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता। जुगाड़ का न केवल ग्रामीण खेती और माल वहन में योगदान है, वरन यात्री वाहन के रूप में बहुपयोगी है। बहुत सी शादियां जुगाड़ परम्परा में जुगाड़ और ट्रॉली के प्रयोग से होती हैं।

मैं यह अन्दाज नहीं लगा पा रहा हूं कि डीजल और अन्य पेट्रोलियम उत्पादों की बढ़ती कीमतों के चलते ट्रेक्टर-ट्रॉली-जुगाड़ सीनारियो में कुछ बदलाव आयेगा या इनका जू-जू कायम रहेगा।


@ आजकल हर रोज डबल डिजिट में नये ब्लॉग उत्पन्न हो रहे हैं और उनमें से बहुत से फुल्ली जस्टीफाइड तरीके से अपनी पोस्ट भर रहे हैं। फॉयरफॉक्स में आप उनपर क्लिक करने के बाद दबे पांव वापस चले आते हैं। वर्ड वेरीफिकेशन तो बहुतों ने ऑन कर रखे हैं। नयी कली सुनिश्चित करती है कि वह कांटों से घिरी रहे! कोई उसे पढ़ने-टिप्पणी करने की जहमत न उठाये!



Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

13 thoughts on “ट्रैक्टर ट्रॉली का जू-जू

  1. गजब का प्रेक्षण रहता है आपका भी -आस पास के वातावरण ,परिवेश का .आप को तो वैज्ञानिक होना हाहिये था ,कहाँ छुक छुक मे फँस गए .

    Like

  2. अजी ग्रामीण इलाके मे तो ये ट्रैक्टर बहुतै काम की चीज है, इनकी हेडलाईट में शादियां तक निपटते देखी है हमनें।बाकी आपके विषय चुनने के तो पहले ही कायल है अपन!!

    Like

  3. साल भर विशेषकर गर्मी के दिनो मे बारातियो से लदी ट्रेक्टर ट्रालियो के पलटने के हादसे अखबारो मे छपते रहते है। बचपन मे साइकल मे पुली लगी होती थी ताकि संतुलन बिगडने पर चोट न लगे। ट्रेक्टर मे भी ऐसा कोई जुगाड लगाकर उसे काफी हद तक स्टेबल बनाया जा सकता है।

    Like

Leave a reply to arvind mishra Cancel reply

Discover more from मानसिक हलचल

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Design a site like this with WordPress.com
Get started