बंदर नहीं बनाते घर – क्या किया जाये?


बन्दरों के उत्पात से परेशान कुछ बड़े किसानों ने बिजली के हल्के झटके वाली बाड लगाने की योजना बनायी। तब वे खुश थे कि जब बन्दर इस पर से कूदेंगे तो उनकी पूँछ बाड़ से टकरायेगी और उन्हे झटका लगेगा। बाड़ लगा दी गयी। कुछ दिनों तक बन्दर झटके खाते रहे पर जल्दी उन्होने नया तरीका निकाला। अब कूदते समय वे हाथ से अपनी पूँछ पकड़ लेते हैं और फिर बिना दिक्कत के बाड़ पार!

यह पोस्ट श्री पंकज अवधिया की बुधवासरीय अतिथि पोस्ट है।

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पिछले दस से भी अधिक वर्षों से मै बन्दरों पर नजर जमाये हुये हूँ और आम लोगों विशेषकर किसानों को उनसे होने वाले नुकसानों का दस्तावेजीकरण कर रहा हूँ। मैने आम लोगों द्वारा बन्दरों को बिना नुकसान पहुँचाये उन्हे दूर रखने के देसी उपायों पर भी काम किया है। पिछले दिनो उत्तर भारत के एक वैज्ञानिक संगठन ने मुझसे एक रपट बनाने के लिये कहा ताकि वे देसी उपायों से इन पर अंकुश लगा सकें।Barbary_Ape

देश के मध्य भाग के किसान लंगूरो से बहुत परेशान हैं। जंगलो के खत्म होने से अब ये बड़ी संख्या मे गाँवो के आस-पास बस गये हैं। उन्होने सभी तरह की वनस्पतियों को आजमाना शुरु कर दिया है। अलसी की फसल आमतौर पर जहरीली मानी जाती है। पशु इसे नही खाते पर किसान बताते हैं कि बन्दर ने इसे खाना आरम्भ कर दिया है। गाँवों मे खपरैल की जगह अब टिन लगवाना पड़ रहा है। धार्मिक आस्था के कारण इन्हे नुकसान नही पहुँचाया जाता पर आम लोग इनसे छुटकारा भी चाहते हैं। रायपुर मे तो कई वर्षों पहले आदमी की गल्ती से मारे गये बन्दर को विधिपूर्वक न केवल दफनाया गया बल्कि एक स्मारक भी बनाया गया है।

देसी उपायो मे तो जितने किसानो से आप बात करेंगे उतने ही उपायो के बारे मे वे बतायेंगे। अपनी यात्रा के दौरान मैने एक किसान को एयरगन लेकर दौडते देखकर गाडी रुकवायी। उसका कहना था कि बिना छर्रे डाले केवल बन्दूक दिखाने से लंगूर डर जाते है। भले ही वह किसान छर्रे न चला रहा हो पर लंगूरो का डर यह बताता है कि उनपर कभी बन्दूक का प्रयोग हुआ है, इसीलिये वे डरते है। भारतीय कानून के अनुसार बन्दर पर बन्दूक चलाना अपराध है।

बहुत से किसानो से मशाल को अपनाया। शुरु में तो बन्दर डरते हैं; पर फिर मशाल के जलने का इंतजार करते हैं। जलती हुयी मशाल लेकर जब उनकी ओर दौडो तब जाकर थोडा बहुत भागते हैं। मुझे जंगली हाथियो की याद आ रही है। न्यू जलपाईगुडी के पास के क्षेत्र मे जंगली हाथी आ जाते हैं तो ग्रामीण फटाके फोड़ते है। हाथी शांति से शो देखते रहते हैं और फिर फटाके खत्म होने के बाद इत्मिनान से खेतों मे घुसते हैं।

बहुत से किसान गुलेल का प्रयोग कर रहे हैं। यह बडा ही कारगर है। सस्ता है और बन्दरो के लिये जानलेवा भी नही है। पर इसके लिये दक्ष गुलेलबाज होने चाहियें। नौसीखीये गुलेल चलाते हैं तो बन्दर धीरे से सिर घुमा लेते हैं या झुक जाते हैं।

एक बार औषधीय फसलो की खेती कर रहे किसान के पास दक्ष गुलेलबाज मैने देखे थे। उन्होने बन्दरो की नाक मे दम कर रखा था। पर वे मेरे साथ जब फार्म का भ्रमण करते थे तो उन पेडो से दूर रहते थे जिन पर बन्दरो का डेरा था। यदि गल्ती से वे उसके नीचे चले जाते थे तो बिना किसी देरी के उन पर मल आ गिरता था। बन्दर बदला लेने का कोई मौका नही गँवाना चाहते थे।

हमारे यहाँ लंगूरों ने बबूल को अपना ठिकाना बनाया पहले-पहल। फिर जब किसानों ने उन्हे रात मे घेरना आरम्भ किया तो वे अर्जुन जैसे ऊँचे पेड़ों मे रहने लगे। हाल ही मे किसानों से मुझसे पता चला कि काँटे वाले सेमल के पेड़ से बन्दर दूर रहते हैं। आप यह चित्र देखें तो समझ जायेंगे कि कैसे इसके काँटे बन्दरो को बैठने तक नही देते हैं।

कई किसानों ने आस-पास के दूसरे पेड़ों को काटकर सेमल लगाया पर ज्यादा सफलता नही मिली। किसानो के साथ मिलकर मैने खुजली वाली केवाँच की बाड़ भी लगायी। बन्दर जानते है इस खुजली के बारे मे। पर केवाँच के साथ मुश्किल यह है कि यह साल भर नहीं फलता-फूलता।

मैने अपनी रपट मे अनुशंसा की है कि बन्दरो को भगाने की असफल कोशिश पर समय और धन खर्चने की बजाय मुम्बई के ‘भाई’ जैसे इन्हे हिस्सा दिया जाये। आखिर मनुष्यों ने ही तो उनका घर छीना है। बहुत से प्रभावित गाँव मिलकर पंचायत की जमीन पर फलदार पेड लगायें जो साल भर भरपूर फल दें। ऐसे फल जो बन्दरों को बेहद पसन्द हों। मनुष्यो से इन पेड़ों की रक्षा की जाये। फिर देखिये बन्दरों को अपना हिस्सा मिलेगा तो क्यो वे मनुष्यो द्वारा उगायी जा रही रसायन युक्त फसलो की ओर रुख करेंगे? इतने समझदार तो वे हैं ही।

(बन्दरो और दूसरे वन्य प्राणियो के जन्मजात और अनुभवो से विकसित हुये इंटेलिजेंस पर और रोचक संस्मरण सुनना चाहें तो बताइयेगा।)

पंकज अवधिया

© सर्वाधिकार पंकज अवधिया


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बंदर नहीं बनाते घर

बंदर नहीं बनाते घर

घूमा करते इधर उधर

आ कर कहते – खों, खों, खों

रोटी हमे न देते क्यों?

छीन-झपट ले जायेंगे

बैठ पेंड़ पर खायेंगे।

(मेरे बच्चों की नर्सरी की कविता)


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

25 thoughts on “बंदर नहीं बनाते घर – क्या किया जाये?

  1. बन्दर घर नहीं बनातेआजकअल कुत्तों को छेड़ने लगे हैं।समीरलालजी का बन्दर वाला विडियो अभी अभी देखा।जब ऐसे विडियो पेश करते हैं तो कौन पढ़ेगा उनका ब्लॉग?सब विडियो ही देखते रहेंगे। हम तो सपरिवार इसे देखते ही रह गये।विडियो नकली तो नहीं? मुझे शक हो रहा है।क्या किसी छोटे नटखट और साहसी लड़के को बन्दर का खाल पहनाकर लिया गया विडियो तो नहीं?आजकल सब कुछ हो सकता है।”Seeing is not necessarily believing”

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  2. ई-मेल से मिली अविनाश वाचस्पति जी की टिप्पणी – बंदर नहीं बनाते घर रहते हैं वे सदा निडरउनसे लगता सबको डरवे निडर हैं वे निडर बंदर नहीं बनाते घरघुस आते घर के अंदरबाहर बंदर अंदर बंदरबंदर बन बैठे सिकंदर अविनाश वाचस्‍पति

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  3. बन्दर की दी सीख तो हम भी नही भूल पाते… पाँचवी क्लास में पढ़ते थे…नानी के घर गए थे… छत पर बैठे नानी से कहानी सुन रहे थे…नानी ने नीचे से पानीलाने को कहा तो हमने इनकार कर दिया… ”बडों का कहा न मानने वाले को ईश्वर सज़ा देते हैं…” कहती हुई नानी पानी लेने नीचे चली गयीं और हम चारपाई पर चुप बैठे रहे लेकिन अन्दर से दिल पता नही क्यों ख़राब हो गया. अचानक कहीं से मोटा बन्दर प्रगत हुआ और हमारा फ्रोक पकड़ कर झटके देने लगा…शायद ऊपर से नीचे गिराने की कोशिश ….हमें कुछ याद नही बस इतना याद है की नीचे से आती नानी माँ ने हमे आधे में ही नीचे गिरने से बचा कर पकड़ लिया… तब से निश्चय कर लिया की बडों का कहना कभी नही टालना… सालों से यह घटना बच्चों को सुनाते थे आज अपने मित्रों से भी बाँट ली …

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  4. मैं यही लिख सकता हूँ कि आपने अच्छा लिखा है….और बंदर कविता के रचनाकार का नाम नहीं दिखा

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