प्रोफेसर गोविंद चन्द्र पाण्डे और ऋग्वेद


हे अग्नि; पिता की तरह अपने पुत्र (हमारे) पास आओ और हमें उत्तम पदार्थ और ज्ञान दो!

यह ऋग्वैदिक अग्नि की प्रार्थना का अनगढ़ अनुवाद है मेरे द्वारा! वह भी शाब्दिक जोड़-तोड़ के साथ। पर मुझे वर्णिका जी ने कल लोकभारती, इलाहाबाद द्वारा प्रकाशित प्रोफेसर गोविन्द चन्द्र पाण्डे की हिन्दी में ऋग्वेद पर चार भागों में छपने वाली पुस्तक के पहले भाग के कवर के चित्र भेजे। इनमें ऋग्वेद के तीसरे-चौथे-पांचवे मण्डल में आने वाली अग्नि को समर्पित ऋचाओं के हिन्दी अनुवाद हैं प्रोफेसर पाण्डे द्वारा। प्रोफेसर जी.सी. पाण्डे इलाहाबाद और जयपुर विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर भी रह चुके हैं।

Rig Vedaलोकभारती में प्रदर्शित यह पुस्तक

मैने कहा अनुवाद! यह तो एक अल्पज्ञ का प्रलाप हो गया! मैं दफ्तर से लौटते समय जल्दी में था, पर ४-५ मिनट को लोक भारती होता आया। यह पुस्तक झलक भर देखी। जो मैने पाया – आप इस पुस्तक में हिन्दी में ऋग्वेद का काव्य देखें तो ऋग्वेदीय ऋषियों के प्रति पूरी धारणा बदल जाती है। वे दार्शनिक स्नॉब की बजाय कोमल हृदय कवि प्रतीत होते हैं; पूरी मानवता से अपनी अनुभूति सरल भाषा में बांटने को सहर्ष तैयार। ऋग्वेदीय ऋषियों की यह इमेज मेरे मन में पहले नहीं थी।

प्रोफेसर गोविन्द चंद्र पाण्डे ने तो एक दो पन्ने की ब्राउजिंग में मुझे मैस्मराइज कर दिया! मैं इस पुस्तक के बारे में ब्लॉग पोस्ट की बजाय एक फुटनोट देने जा रहा था, पर अब मुझे लगता है कि मैं स्वयम इतना हर्षातिरेक महसूस कर रहा हूं कि एक फुटनोट में इसे समेटना सही बात नहीं होगी।

आठ वर्ष लगे प्रोफेसर पाण्डे को यह पुस्तक पूरी करने में। और निश्चय ही यह अनूठा ग्रन्थ है। मेरे जैसा काव्य-बकलोल भी इस ग्रंथ से अपनी फ्रीक्वेन्सी मैच कर ले रहा है – इससे आप समझ सकते हैं कि ऋग्वेद जैसी रचना से आम जन की दूरी बहुत पट जायेगी। हां आठ सौ रुपये इस पुस्तक के लिये निकालते एक बार खीस निकलेगी जरूर। शायद कुछ लोग पेपरबैक संस्करण का इन्तजार करें।


वर्णिका जी की मेल पाने के बाद से ही मन ललचा रहा है कि कितनी जल्दी यह पुस्तक मैं खरीद कर हाथ में ले पाऊं। हे अग्निदेव, मेरी यह सात्विक कामना शीघ्र पूर्ण करें!

अच्छा मित्रों, यह क्यों होता है कि एक नयी पुस्तक के बारे में सुनने पर ही उसे पाने की और फिर उलट-पलट कर देखने की, पन्ने सूंघने की, प्रीफेस और बैक कवर की सामग्री पढ़ने की जबरदस्त लालसा मन में जगती है? आपके साथ भी ऐसा होता है?

आप इस विषय में वर्णिका जी के अंग्रेजी के ब्लॉग “REFLECTIONS” की पोस्ट The Rig Veda in Hindi देख सकते हैं।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

23 thoughts on “प्रोफेसर गोविंद चन्द्र पाण्डे और ऋग्वेद

  1. Hi to all,I am very gald to know that Mr. G.C. Pandy had done a great job and add one stair in the way to improve Hinduism. I also want to read Rig Veda, but as usual lack of time.

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  2. कुछ रौशनी इस ओर भी डालते कि यह किताब दक्षिण भारत में रहते हुए मेरे जैसे लोग कहां से और कैसे मंगा सकते हैं? कबसे लालसा है चारों वेद इकठ्ठा करने की मगर हो ही नहीं पाता कभी।शुभम।

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