पुस्तकों की बौछार – धड़ाधड़


booksडा. सुरेन्द्र सोनी की भेजी गयी रमण महर्षि पर पुस्तकें

जैसी वासना, वैसा संग्रह। फाउण्टेन पेन की सदैव ललक है मुझे। दर्जनों इकठ्ठा हो जाते हैं। कल ही मेरी पत्नी स्टेशनरी की दुकान से मुझे घसीटती रहीं। पर तब भी एक तीस रुपये की फाउण्टेन पेन खरीदने में मैं कामयाब रहा। और तब वैसी खुशी हो रही थी जैसी पहली कक्षा के बच्चे को टीचर द्वारा मिला "वैरी गुड" फ्लैश करते होती है।

जब नौकरी ज्वाइन की थी, तब निब वाले कलम से ही लिखता था। उस समय का एक क्लर्क दो दशक बाद मिला तो उसने छूटते ही पूछा – साहब अभी भी फाउण्टेन-पेन से लिखते हैं क्या?

वही हाल पुस्तकों का है। प्रो. गोविन्द चन्द्र पाण्डे की ऋग्वेद पाने की ऐसी तलब थी कि दूसरे दिन पुस्तक मेरे पास थी। उसके अगले दिन विचित्र हुआ। मेरे उज्जैन के एक मित्र प्रोफेसर सुरेन्द्र सोनी अपनी प्रोफेसरी छोड़ दक्षिण में रमण महर्षि के धाम अरुणाचल और श्री अरविन्द आश्रम, पॉण्डिच्चेरी गये थे। वहीं से उन्होने रमण महर्षि पर छ पुस्तकों का एक चयन कूरियर के माध्यम से भेजा। साथ में रमण महर्षि का एक मिढ़ा हुआ (लैमिनेटेड) चित्र भी। पैकेट पाने पर मेरी प्रसन्नता का आप अन्दाज लगा सकते हैं।

मित्रों, मुझे याद नहीं आता कि किसी ने मुझे वुडलैण्ड के जूते, टाई, शर्ट या टी-शर्ट जैसा कोई उपहार दिया हो! कलम किताब देने वाले कई हैं। आजकल ब्लॉग पर अच्छे गीतों को सुन कर मन होता है कि कोई अच्छे गीतों का डिस्क भेंट में दे दे। पर यह वासना जग जाहिर नहीं है। लिहाजा अभी खरीदने के मन्सूबे ही बन रहे हैं। शायद मेरी बिटिया अगली मैरिज एनिवर्सरी पर यह दे दे, अगर वह मेरा ब्लॉग पढ़ती हो!

मैं तब एक कनिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी था। मुझे रेलवे सप्ताह में सम्मनित किया गया था। मेरे विभाग के वरिष्टतम अधिकारी के चेम्बर में वर्किंग लंच था। उनके कमरे में अनेक पुस्तकों को देख कर मन ललचा गया। उनसे मैने कुछ पुस्तकें पढ़ने के लिये मांगी। उन्होंने सहर्ष दे दीं। चार-पांच पुस्तकें ले कर लौटा था। चलते चलते उनका पी.ए. मुझसे बोला – आप पर ज्यादा ही मेहरबान हैं साहब – नहीं तो किसी दूसरे को छूने ही नहीं देते! शायद पुस्तक-वासना की इण्टेंसिटी तीव्र न होती तो मुझे भी न मिलतीं!

पर यह जरूर है – जैसी वासना, वैसा संग्रह। या और सही कहूं तो जैसी रिवील्ड (जाहिर, प्रकटित) वासना, वैसा संग्रह!

लोग अपनी वासनायें बतायें तो बताया जा सकता है कि वे कैसे व्यक्ति होंगे! वैसे ब्लॉग जगत में अधिकांश तो पुस्तक वासना के रसिक ही होंगे। हां, पुस्तकों में भी अलग-अलग प्रकार की पुस्तकों के रसिक जरूर होंगे।


55 बहुत महीनों बाद आज ऐसा हुआ है कि बुधवार हो और अपने श्री पंकज अवधिया जी की पोस्ट न हो।

वे अपने जंगल प्रवास और अपनी सामग्री के संकलन में व्यस्त हैं। उन्होने कहा है कि मेरे ब्लॉग पर दिसम्बर में ही लिख पायेंगे। मैं आशा करता हूं कि वे अपनी डेडलाइन प्रीपोन करने में सफल होंगे।

इस बीच श्री गोपालकृष्ण विश्वनाथ जी का कुछ लेखन मेरे ब्लॉग पर यदा-कदा आता रहेगा। मै उन केरळ-तमिळनाडु के अनुभवी सज्जन के हिन्दी लेखन से बहुत प्रभावित हूं। उनका लेखन, निसंशय, सशक्त है ही!2 Thumbs Up


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

24 thoughts on “पुस्तकों की बौछार – धड़ाधड़

  1. फाउण्टेन पेन का प्रयोग मैने भी अपने छात्र जीवन में भरपूर किया है। खासकर अंग्रेजी लिखने का मजा तो इसी पेन से आता था। प्रतियोगिता परीक्षाओं में शायद मुझे इसका अतिरिक्त लाभ भी मिला हो। प्राइमरी स्तर पर होल्डर-जी-निब से अंग्रेजी और नरकट की खत कटी कलम से हिन्दी लिखने का अभ्यास था, जिससे लिखावट सुन्दर बन जाती थी। अब तो बच्चों को पेन्सिल और रबर थमाकर गलतियाँ करने और बार-बार लिखने-मिटाने की आदत डाल दी जाती है। हस्तलिखित सुलेख की परवाह अब कम होती जा रही है।

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  2. ज्ञानदत्तजी,दिन ब दिन देख रहा हूँ की आप के और मेरे विचार, रुचि, शौक और अब ललक भी मिलते जा रहे हैं।(धन्यवाद, आज एक नया श्ब्द (ललक) सीखने को मिला)फ़ौन्टन पेन की ललक से मैं भी पीडित हूँ।मेरे पास शेफ़्फ़र पेन है जिसे कभी कभी निकालकर निहारता हूँ। आजकल प्रयोग करने के अवसर नहीं मिलते। खो जाने का डर रहता है इसलिए जेब में नहीं रखता और बदले में एक साधारण फ़ौन्टन पेन लेकर घूमता हूँ। यह एक नकली पार्कर पेन है जिसे मैंने १०० रुपये में खरीदा था।आज के जमाने में फ़ौन्टन पेन का प्रयोग होना चाहिए या नहीं ?इस बात पर हम पति पत्नि के बीच तक़रार होती है।पत्नि बैंक में काम करने वाली थी और मुझे फ़ौन्टन पेन से किसी चेक पर लिखने से मना करती है।फ़ौन्टन पेन पर मेरा एक लम्बा ब्लॉग एन्ट्री आप शायद पढ़ने के इच्छुक होंगे। अंग्रेज़ी में लिखी हुई यह जीवन में मेरा सबसे पहला ब्लॉग पोस्ट था जिसे पिछले साल nukkad.info में छपवाया था। यदि रुचि और समय हो तो यहाँ पधारें:http://tarakash.com/forum/index.php?option=com_myblog&show=Fountain-pen.html&Itemid=72समय मिलने पर, आप को मेरे कुछ अतिथी पोस्ट भेजता रहूँगा।आपके ब्लॉग पर अतिथि बनना मेरे लिए गौरव की बात है और स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। अनिताकुमारजी के ब्लॉग पर मेरा वह बन्दर वाला किस्सा जिसका जिक्र पहले किया था, आज छपा है।रुचि हो तो फ़ुरसत मिलने पेर उसे भी पढ़ लें।

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  3. पुस्तक प्रेम की बात का क्या कहें, एक उदहारण देता हूँ. मैं भारतीय प्रबंध संस्थान बंगलोर में १ महीने के लिये शोर्ट-टर्म रिसर्च स्कॉलर था. प्रोफेसर साहब के रूम में किताबों का भण्डार. मैं मीटिंग के लिए आधे घंटे पहले ही पहुच जाता, बाद में जब कमरे के चाबी मिल गई तो रात के २ बजे तक वहीँ रुक जाता… इस प्रकार कई किताबें निपटा डाली (मार्क टुली की कई किताबें मैंने वहीँ पढ़ी), बाद में प्रोफेसर साहब को पता चला तो उन्होंने मुझे कुछ किताबें भेंट भी की. उनकी दी हुई एक हार्ड-बाउंड गेम थियोरी की किताब तो शायद अब तक की मेरी सबसे महँगी किताबों में से है. और कलम के लिए तो मैंने पिताजी से कह रखा था की मैं नई पेन से परीक्षा देता हूँ तभी अच्छे अंक आते हैं. और अगर पेन महँगी हो तो और अच्छे :-) तो हर ३ महीने में एक ‘महँगी कलम’ का जुगाड़ कर रखा था मैंने :-)संगीत डिस्क: अगर आपको गाने चाहिए और ओरिजनल डिस्क की कोई जरुरत न हो… तो ख़बर करें… मेरे पास पुराने और नए गानों का अच्छा संग्रह है… mp3-CD/DVD आप जब कहें जला कर भेज दूँ… अपनी पसंद बताइए. वैसे भी आजकल सुन नहीं पाता हूँ, कुछ तो उपयोग हो संग्रह का !

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  4. रमण महर्षि , और महर्षि अरविन्द पर इतने सारे पुस्तक उपहार में !! इतनी वासना ! आज मानते हुए जा रहा हूँ ,कि आप ऋषि होते जा रहे हैं . प्रणाम ऋषिवर !! आपसे कुछ उपहार की आशा मुझे भी है .

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  5. इण्टेंसिटी तीव्र न होती तो मुझे भी न मिलतीं!yah baat to pratyek kshetr me laagu hoti hai ghayn ji. gaano ki list aap batayie aapkey shahar tak koi na koi jaata rahata hai ..mujhey bhej kar khushi hogi:)

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  6. हमारे उम्र के लोगों में तो गानों से संबंधित सामाग्री उपहार में अधिक दिये-लिये जाते हैं.. कभी मौका मिला तो मैं आपको जरूर दूंगा.. :)

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  7. पता नही आप इसे वासना क्यों कहते है ?चूंके हम तो बचपन से ही इस रोग से ग्रस्त रहे है …ओर आज तक इसका इलाज नही ढूंढ पाए है यहाँ तक की हमारी माता जी कहते कहते बूढी हो गयी की खाना खाते मत पढो..पर हम नही सुधरे…..पता भेज दे अपने पसंदीदा गानों की एक सी डी आपको बनाकर भेज देता हूँ…..

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  8. अब तो पेन से लिखने की आदात ही कम होती जा रही है। आप फटाफट सब किताबें पढ़े और हम लोगों के लिए अपने ब्लॉग पर उन पुस्तकों का जिक्र भी करें।

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  9. पुस्तके तो हमारी भी कमजोरी है. पेन बॉल-पोइंट पेन ही पसन्द है, फाउंटेन पेन से लिखने की गति कम होती है और स्याही से हाथ भी रंग जाते है. हालाकि अब ज्यादातर लिखना की-बोर्ड से ही होता है.

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