पण्डित नेहरू का मुख्य मंत्रियों को लिखा एक पत्र


यह न केवल गलत है, बल्कि विनाश का मार्ग है… … मैने ऊपर कार्यकुशलता; और परम्परागत लीकों से बाहर निकलने की चर्चा की है। इसके लिये जरूरी है कि हम आरक्षण और किसी विशेष जाति या वर्ग को कुछ विशेष रियायतें/अधिकार देने की पुरानी आदत से निजात पायें। हमने जो हाल ही में बैठक रखी थी, जिसमें मुख्यमन्त्रीगण उपस्थित थे और जिसमें राष्ट्र के एकीकरण की चर्चा की गयी थी; उसमें यह स्पष्ट किया गया था कि सहायता आर्थिक आधार पर दी जानी चाहिये न कि जाति के आधार पर। इस समय हम अनुसूचित जातियों और जन जातियों को सहायता देने के लिये कुछ नियमों और परम्पराओं से बंधे हैं। वे सहायता के हकदार हैं, पर फिर भी मैं किसी भी प्रकार के आरक्षण, विशेषत: सेवाओं में आरक्षण को पसंद नहीं करता। मुझे उस सब से घोर आपत्ति है जो अ-कार्यकुशलता और दोयम दर्जे के मानक की ओर ले जाये। मैं अपने देश को सब क्षेत्रों में प्रथम श्रेणी का देश देखना चाहता हूं। जैसे ही हम दोयम दर्जे को प्रोत्साहित करते हैं, हम दिग्भ्रमित हो जाते हैं।
वास्तव में सही तरीका यही है किसी पिछड़े समूह को प्रोत्साहन देने का, कि हम उसे अच्छी शिक्षा के अवसर उपलब्ध करायें। और अच्छी शिक्षा में तकनीकी शिक्षा भी आती है, जो कि उत्तरोत्तर अधिक महत्वपूर्ण होती जा रही है। इसके अलावा अन्य सभी सहायता किसी न किसी मायने में बैसाखी है जो शरीर के स्वास्थ्य के लिये कोई मदद नहीं करती। हमने हाल ही में दो बड़े महत्वपूर्ण निर्णय लिये हैं: पहला, सब को मुफ्त प्रारम्भिक शिक्षा उपलब्ध कराने का है, जो आधार है; और दूसरा, सभी स्तरों पर प्रतिभाशाली लड़कों-लड़कियों को शिक्षा के लिये वजीफा देने का1; और यह न केवल सामान्य क्षेत्रों के लिये है वरन, कहीं अधिक महत्वपूर्ण रूप में, तकनीकी, वैज्ञानिक और चिकित्सा के क्षेत्रों में ट्रेनिंग के लिये भी है। मुझे पूरा यकीन है कि इस देश में प्रतिभा का विशाल भण्डार है, जरूरत है कि हम उसे सुअवसर प्रदान कर सकें।
पर अगर हम जाति और वर्ग के आधार पर आरक्षण करते हैं तो हम प्रतिभाशाली और योग्य लोगों को दलदल में डाल देंगे और दोयम या तीसरे दर्जे के बने रहेंगे। मुझे इस बात से गहन निराशा है, जिस प्रकार यह वर्ग आर्धारित आरक्षण का काम आगे बढ़ा है। मुझे यह जान कर आश्चर्य होता है कि कई बार पदोन्नतियां भी जाति और वर्ग के आधार पर हो रही हैं। यह न केवल गलत है, वरन विनाश का मार्ग है।
हम पिछड़े समूहों की सब प्रकार से सहायता करें, पर कभी भी कार्यकुशलता की कीमत पर नहीं। हम किस प्रकार से पब्लिक सेक्टर या, कोई भी सेक्टर दोयम दर्जे के लोगों से कैसे बना सकते हैं?
(पण्डित जवाहरलाल नेहरू जी, भारत के प्रधानमंत्री, का २७ जून १९६१ को मुख्यमन्त्रियों को लिखा पत्र, जो अरुण शौरी की पुस्तक – FALLING OVER BACKWARDS में उद्धृत है।)  


1. मुझे यह कहना है कि इस निर्णय का ही परिणाम था कि मैं इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर पाया। अगर मुझे राष्ट्रीय छात्रवृत्ति न मिली होती, तो मैं नहीं जानता कि आज मैं किस स्तर पर होता। नेशनल साइंस टेलेण्ट सर्च वाली छात्रवृत्ति भी शायद इसी निर्णय का परिणाम रही हो; पर प्योर साइंस में भविष्य नजर न आने की सोच ने उस विकल्प को नहीं अपनाने दिया। आज लगता है कि वह शायद बेहतर विकल्प होता।

» कल घोस्ट बस्टर जी ने मेरी पोस्ट पर टिप्पणी नहीं की। शायद नाराज हो गये। मेरा उन्हे नाराज करने या उनके विचारों से टकराने का कोई इरादा न था, न है। मैं तो एक सम्भावना पर सोच व्यक्त कर रहा था। पर उन्हें यह बुरा लगा हो तो क्षमा याचना करता हूं। उनके जैसा अच्छा मित्र और टिप्पणीकार खोना नहीं चाहता मैं।

» कल मैने सोचा कि समय आ गया है जब बिजनेस पेपर बन्द कर सामान्य अंग्रेजी का अखबार चालू किया जाय। और मैने इण्डियन एक्सप्रेस खरीदा। उसमें मुज़ामिल जलील की श्रीनगर डेटलाइन से खबर पढ़ कर लगा कि पैसे वसूल हो गये। उस खबर में था कि तंगबाग के श्री मुहम्मद अब्दुल्ला ने फंसे ३००० अमरनाथ यात्रियों को एक नागरिक कमेटी बना कर न केवल भोजन कराया वरन उनका लोगों के घरों में रात गुजारने का इन्तजाम किया। यह इन्सानियत सियासी चिरकुटई के चलते विरल हो गयी है। सलाम करता हूं तंगबाग के श्री मोहम्मद अब्दुल्ला को!     


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

21 thoughts on “पण्डित नेहरू का मुख्य मंत्रियों को लिखा एक पत्र

  1. आज एक मित्र ने लिंक भेजा की मानव संसाधन मंत्रालय ने फैसला लिया है की IIT जैसे संसथानों में फैकल्टी की नियुक्ति में आरक्षण होगा… http://timesofindia.indiatimes.com/HRD_orders_faculty_quota_IIT_directors_livid/articleshow/3173620.cmsजहाँ भी थोडी प्रतिभा बची है अच्छाई बची है उसको अपने बचे हुए कार्यकाल में ही ख़त्म करने का संकल्प ले लिया लगता है अर्जुन सिंह ने. और आज आपका ये पोस्ट दिखा… इस पत्र का क्या फायदा हुआ? आज ६० साल बाद स्थिति बिगड़ी ही है. आज सुबह ही ख़बर पढ़ के दिमाग ख़राब हो रहा था ये पत्र पढ़कर झुंझलाहट ही हो रही है की क्या बकवास है? क्षमा चाहता हूँ.अरुण शौरी जी को खूब सुना है… कई व्याख्यान… विद्वान् आदमी हैं… हमारे संस्थान से बहुत गहरा लगाव रखते हैं.

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  2. नेहरू ने और भी बहुत कुछ कहा था, मसलन चपरासी का पद खत्म करना, कर्मचारी कम करना वगेरे. किसने सुना? दृढ़ता से पालन करवाना भी नेता का काम होता है.

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  3. इसे ही कहते है “आग लगा जमालो दूर खडी राय बघारे”. ये पदोन्न्ती मे आरक्षण नेहरू जी के करकमलो से ही शुरू हुआ था . और वही इस तरह की दिगभ्रमित करने वाळी चिट्ठिया लिख रहे थे. चिट्ठी लिख कर क्या वो देश को ये समझाना चाहते थे कि ये कृत्य अग्रेजो की देन है और वे इसके खिलाफ़ है:)

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  4. इंसानियत गायब नहीं हुई है। पर कमीनापन भी उत्थान के रास्ते पर है। खबर कमीनेपन की ज्यादा चकाचक बनती है। इसलिए इंसानियत खबर नहीं बनती। बिजनेस अखबार पढना बंद ना करें. बिजनेस अखबार पढ़ने का सबसे सही समय यही होता है,जब लोग बिजनेस अखबार पढ़ना बंद कर रहे होते हैं। बहुत मौके हैं। रिलायंस खरीद लीजिये। मजे आयेंगे, तीन साल बाद। शेयर बाजार में फिलोसोफिकल होकर सोचना चाहिए। बचपन में मेरे स्कूल में संगमरमर की पट्टियों पर कुछ सुवचन खुदवाये गये थे, मतलब सुवचन तो अब भी होंगे, स्कूल में। पर वो दिमाग में खुद गये हैं. शेयर बाजार के इस दौर में एक सुवचन याद करता हूंसुख यदि रहता नहीं, तो दुख का भी अंत हैयही जानकर कभी विचलित ना होता संत हैशेयर बाजार में संतई वाणी ना समझ में आ रही हो, तो गब्बर सिंह को समझ लें-जो डर गया, समझो मर गया।

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  5. काश हम नेहरू जी की इस बात को मान लिए होते तो ये दिन ना देखना पढता…आज आरक्षण के नाम जो कूड़ा तकनिकी और प्रशाशनिक क्षेत्र में आ रहा है वो किसी से छुपा नहीं है…और अब अखबारी ख़बर पर..जब तक ऐसे मानवीय भावना से भरे इंसान दुनिया में हैं तब तक ये दुनिया चलती रहेगी…चाहे कोई कुछ भी कर ले.नीरज

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  6. मर्ज बढता गया, ज्यों-ज्यों दवा की. यही हालत आरक्षण ,जातिवाद और प्रांतवाद के साथ भी होता रहा है, देखें आगे क्या क्या होता है।

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  7. नेहरू मेरे आदर्श हैं …वैसा अध्येता और विचारक आधुनिक भारत में मुझे कोई नही दिखता .वे सचमुच युग पुरूष हैं .दुःख है कि उनके सपनों का भारत साकार नही हो सका है और टुच्ची राजनीति ने सारा कबाडा कर रखा है .मैं भी आरक्षण को एक जघन्य अपराध मानता हूँ .लेकिन इसे किस मुंह से कहूं -सवर्ण जो ठहरा और ऊपर से सरकारी कर्मीं .यानी कोढ़ में खाज !

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  8. सबसे पहले तो आपसे क्षमा मांग लें. आपके आज के शब्दों ने हमें वाकई शर्मसार कर दिया. कृपया ऐसा न कहें. कल का दिन काफ़ी व्यस्त भी रहा और कष्टपूर्ण भी. कल हमारे कॉलेज (MITS GWALIOR) का गोल्डन जुबली फंक्शन था. प्रेसीडेंट महोदया भी पधारी थीं. कम से कम महीने भर से बेसब्री से इंतजार था. काफ़ी सारे पुराने दोस्तों से मिलने का अवसर था. पूरी तैयारी थी मगर दो दिन पहले ही तगडे फीवर ने जकड लिया. शानदार मौका हाथ से निकल गया.फ़िर भी कम से कम तीन बार प्रयास किया कमेन्ट लिखने का मगर हर बार कोई न कोई अड़ंगा लग गया. आख़िरी बार तो पूरा का पूरा कमेन्ट ही डिलीट हो गया इनवर्टर की बैट्री चुक जाने से. चुनावी वर्ष में भी बिजली की किल्लत है. समीर जी को उनके शब्दों के लिए हार्दिक धन्यवाद.

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  9. नेहरु जी के पत्रों की श्रृंखला एक बार किसी अखबार ने छापी थी, तब यह भी नजर से गुजरा था. आज आपने ताजा करदिया.घोस्ट बस्टर जी की आपसे नाराजगी की कोई वजह न होगी. सुलझा हुआ व्यक्तित्व है उनका. निश्चित ही किन्हीं अन्य कार्यों में व्यस्त होंगे. काफी टहल कर आ रहा हूँ, कहीं भी नहीं दिखे वो. :)मेरी तरह आप भी निश्चिंत हो जायें. हमारी कॉफी विथ कुश तक पर वह अनुपस्थित ही हैं. हा हा!!

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