ट्रक वालों की हड़ताल थी तो कुछ सुकून था। सड़क कुछ खाली लगती थीं। प्रदूषण कुछ कम था। यह अलग बात है कि कुछ लोग आगाह कर रहे थे कि खाने-पीने का सामान जमा कर लो – अगर हड़ताल लम्बी चली तो किल्लत और मंहगाई हो जायेगी। पर बड़ी जल्दी खतम हो गयी हड़ताल।
ट्रकों की लम्बी कतार और उनके कारण होने वाला प्रदूषण कष्ट दायक है। यही हाल भारतीय उद्योग जगत का भी होगा। कोई कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने के प्रति सोचता ही नहीं। मुझे पता चला कि अफवाह है – यूरोपियन यूनियन के देश भारत से आयात होने वाले औद्योगिक माल पर कार्बन टेक्स लगाने की सोच रहे हैं। वे अगर सोच रहे हैं तो गलत बात है। उन्होने सदियों तक ऊर्जा का बेलगाम इस्तेमाल कर जो प्रदूषण जमा किया है, पहले उसका तो हिसाब लगाया जाये। पर भारत अपने अन्दर इस प्रकार के टेक्स और कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने वाले को कार्बन क्रेडिट देने का काम तो कर सकता है।
इससे पेट्रोलियम बिल कम होगा। प्रदूषण कम होगा। लोग ऊर्जा बचाने की ओर स्थिर मति से ध्यान देंगे। रेवा कार और यो-बाइक/हीरो इलेक्ट्रिक/टीवीस इलेक्ट्रिक स्कूटी जैसे वाहनों का चलन बढ़ेगा। पब्लिक ट्रांसपोर्ट की ओर लोग ज्यादा झुकेंगे। उद्योगजगत में कार्बन उत्सर्जन का ध्यान कोयले और पेट्रोलियम की खपत को नियंत्रित करेगा। थर्मल पावर हाउस ज्यादा कार्यकुशल बनेंगे।
रेलवे को बेतहाशा कार्बन क्रेडिट मिलेगी। बिजली के इन्जनों का प्रयोग और रेलवे का विद्युतीकरण और गति पकड़ेगा।
बस गड़बड़ यही होगी कि सर्दियों के लिये हमारी कोयले की सिगड़ी लेने की चाह पर ब्रेक लगेगी!

भइये ये तो जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहावत है। उनकी मर्जी बेचना है तो बेचो, वर्ना फूटो।
LikeLike
vicharaniy post hai par har tarah tarah ke (caraban.laid etc.) pradooshan failane ke liye ham sabhi sahabhagi hai . dhanyawad
LikeLike
कार्बन क्रेडिट बेचने में भारतीय कंपनियाँ आगे आ रही हैं ऐसा फिक्की की एक रिपोर्ट में पढ़ा था… पर वास्तविक सुधार में अभी समय है… उर्जा की समस्या तो है ही प्रदुषण के साथ-साथ सड़क पर कभी ये सोच के देखिये की पेट्रोल और डीजल ख़त्म हो गए तो क्या-क्या रुक जायेगा?
LikeLike
इसे कहते है….आसमान में छेद करके कहना बेटे पत्थर मारने की सजा भुगतो
LikeLike
आज नहीं तो कल आपका सपना जरूर सच होगा विश्वनाथ जी..चलिये मैं आपको अपने युग के लड़कों की बात सुनाता हूं.. अधिकतर स्पीड और पॉवर के दिवाने होते हैं.. सभी ये जानते हुये भी कि हाई स्पीड बाईक या कार से प्रदूशन बहुत होता है, वे शायद ही कभी यो बाईक या रेवा कार के बारे में सोचते हैं.. कुछ और उम्र बीत जाने के बाद भले ही सोचे मगर जवानी के दिनों में इसके बारे में सोचने वाले कम ही होते हैं.. ये सभी पढे-लिखे और अच्छी पगार पाने वाले लोग है जिनके पास पैसा है, जुनून है और कम से कम अभी तो देश के लिये कुछ कर गुजरने का जज्बा भी है.. मगर जब अपनी बात आती है तो 25-35 हजार के यो बाईक के बदले 70-80 हजार के 200 CC की बाईक लेना ज्यादा पसंद करते हैं..मैं क्या कहूं? अगर पूरी ईमानदारी से कहूं तो, मैं भी इन्ही में से हूं.. खुद को इनसे अलग नहीं मानता हूं..
LikeLike
उर्जा की संकट की घड़ी आ गई है।सुबह सुबह टहलते समय कई विचार आते हैं मन में।जिस बहुमंज़िलीय इमारत में रहता हूँ वहाँ २०० परिवार रहते हैं।पानी बोर वेल से प्राप्त होता है और उसको ऊपर के टंकियों में पहुँचाने के लिए काफ़ी उर्जा की खपत होती होगी।इस अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स में एक “जिम्नेसियम” भी है जिसमें तीन “ट्रेडमिल” हैं और सुबह सुबह तीन घंटो तक चलते रहते हैं। इनको उपयोग करने के लिए लाईन लग जाती है। कुछ नौजवान हैं यहाँ जो कभी कभी तो पैंतालीस मिनट तक लगातार इस “ट्रेडमिल” पर लगे रहते हैं। उनके कारण औरों को अवसर नहीं मिलता और यह लोग बिल्डिंग के इर्द-गिर्द सुबह सुबह व्यायाम के लिए चक्कर लगाते रहते हैं।मन में विचार आता है कि इतनी सारी उर्जा बर्बाद हो रही है।ट्रेड्मिल के बजाय अगर कोई साइकल जैसा यंत्र होता जिस पर बैठकर पेडल चलाने से पानी ऊपर पहुँचाया जा सकता था तो कितना अच्छा होता। ट्रेडमिल में उर्जे की खपत होती है लेकिन इस यंत्र से तो उर्जा उत्पन्न होगी और साथ साथ व्यायाम का इन्तजाम भी हो जाएगा।जे पी नगर में मेरा पुराना घर और आज का कार्यालय एक ही मकान में स्थित है। छत पर सोलार पैनल लगा है जिससे नहाने के लिए गरम पानी का इन्तजाम हो जाता है। लायटिंग के लिए भी सोलार पैनल लगाना चाहता था लेकिन बहुत महँगा साबित हुआ। केवल २५ वाट के लिए २०,००० का खर्च का अनुमान हुआ। काश यह खर्च कम होता।मेरी रेवा कार सारा दिन “पोर्टिको” में अस्थिर खड़ी रहती है और चार दिन में एक बार उसे ८ घंटो के लिए चार्ज करता हूँ। काश कोई ऐसा यंत्र होता जिसे छत पर रखकर सारे दिन की धूप समेटकर, बिजली में परिवर्तित करके मेरी रेवा कार को कम से कम एक घंटे का चार्ज भेंट कर सकता। उस एक धंटे में एक यूनिट बिजली तो बच जाएगी।सपना तो मधुर है। क्या कभी साकार होगा?
LikeLike
विषय को थोड़ा दाएं बाएं करता हूँ, बिजली से चलने वाली गाड़ी या स्कूटर प्रदूषण कम करेंगे? शायद थोड़ा बहुत ही. क्योंकि उनके लिए बिजली बनाने वाली इकाई तो प्रदूषण फैलाएगी ही, बैटरीयों की डम्पिंग भी प्रदूषण फैलाएगी.
LikeLike
जब तक कोई समस्या विकट क्राइसिस ना बन जाये, तब तक उस पर कायदे से विचार नहीं ना होता। अभी कार्बन ऊर्बन के मसले क्राइसिस नहीं बने हैं। डेमोक्रेसी की यही ब्यूटी है। क्राइसिस से पहले विचार नहीं होता। कार्बन वगैरह में कुछ नाग वगैरह जोड़ने की जुगत करें, तो ही टीवी चैनल इस पर सोचेंगे। कार्बन टीवीजैनिक नहीं है ना। राखी सावंत और कार्बन के संबंधों पर विचार करें, अगर संबंध स्थापित हो पाये, तो आपको ही टीवी पर कार्बन एक्सपर्ट बनाकर पेश किया जा सकता है। पांच दस मिनट आपने कार्बन पर पढ़ा है, टीवी एक्सपर्ट होने के लिए इत्ती योग्यता काफी है।
LikeLike
सब अभी फिलहाल सपने हैं, देखते रहिये..बद से बदतर हालात जब हो जायें, तब के बदलाव की बात आपने जल्दी कर दी. :)
LikeLike
गुरुदेव, कार्बन क्रेडिट की आइडिया बहुत अच्छी है। क्योटो प्रोटोकॉल से उपजी इस पद्धति से अपने प्रदूषणयुक्त धंधे को बचाने का जुगाड़ भी कंपनियाँ ढूँढ रही हैं। क्रेडिट की खरीद-बिक्री शुरू हो रही है। जो अधिक कार्बन उत्सर्जित करना चाहता है वह वृक्षारोपण कार्यक्रमों में निवेश करके हिसाब बराबर करेगा, या ऑक्सीजन बढ़ाने वाले उपक्रमों की क्रेडिट पैसे से खरीद लेगा। यानि, कानपुर में जहरीला धुँआ निकालने वाले झुमरीतलैया मे जंगल लगाने का खर्चा उठा लेंगे और बेखौफ कार्बन उगलते रहेंगे।
LikeLike