"सीज़ फायर" – कैसे चलायेंगे जी?!


Cease Fire बहुत स्थानों पर फायर एक्स्टिंग्विशर लगे रहते हैं। पर जब आग थोड़ी सी ही लगी हो तो ही इनका उपयोग फायदेमन्द रहता है। अग्निदेव जब प्रचण्ड हो जायें तो इन १-१० किलो ड्राई केमिकल पाउडर के बस के होते नहीं। लेकिन कितने लोग फायर एक्टिंग्विशर का प्रयोग जानते हैं?

यात्रा के दौरान अपने डिब्बे में मैं दीवार के सहारे लटके “सीज़ फायर” के इस एक किलो के उपकरण को देखता हूं। और तब, जैसी आदत है, परेशान होना प्रारम्भ कर देता हूं। अपनी पत्नी जी से पूछता हूं कि कैसे उपयोग करेंगी। उत्तर में यही पता चलता है कि वे अनभिज्ञ हैं।Cease Fire 1 

वही नहीं, अधिकांश लोग अनभिज्ञ होते हैं। रेलवे के स्टेशन मास्टर साहब की ट्रेनिंग में इसका उपयोग सीखना भी आता है। एक बार मैने उनको उनके कमरे में निरीक्षण के दौरान पूंछा कि वे चला सकते हैं यह अग्निशामक? बेचारे कैसे कहते कि नहीं जानते। उन्होंने हां कही। मैने कहा कि चला कर बता दीजिये। बचने को बोले कि साहब, आग तो लगी नहीं है! उन्हे कहा गया कि आप मान कर चलें कि फलाने कोने में आग लगी है, और आपको त्वरित कार्रवाई करनी है। वे फिर बोले कि बिना आग के चलाने पर उनसे जवाब तलब होगा। जान छुडाने के फिराक में थे। मैने कहा कि मैं उसे वैरीफाई कर दूंगा कि ट्रायल के लिये मैने चलवाया है, वे तुरंत चला कर बतायें – आग के स्थान पर निशाना साधते हुये। 

निश्चय ही मास्टर साहब को बढ़िया से चलाना नहीं आता था। उन्होंने अग्निशामक उठाया। उनके हाथों में कम्पन को स्पष्ट देखा जा सकता था। लेकिन अचकचाहट में बिना सही निशाने के उन्होंने उसे चला दिया। उनके कमरे में बहुत से हिस्से पर सफेद पाउडर की परत जम गयी। मेरे ऊपर भी जमी। मुझे बहुत जल्दी स्नान करना पड़ा अपने को सामान्य करने को। निरीक्षण करना भारी पड़ा। पर उसके बाद इस अग्निशामक पर एक क्र्यूड सा वीडियो बनवाया जो कर्मचारियों को सही प्रयोग सिखा सके। पूरे उपक्रम से कुछ सक्रियता आयी। 

यह जरूर लगता है कि लोगों को चलाना/प्रयोग करना आना चाहिये। अगली बार आप उपकरण देखें तो उसपर छपे निर्देश पढ़ने में कुछ समय गुजारने का यत्न करें। क्या पता कब आपको वीरत्व दिखाने का अवसर मिल जाये।

(ऊपर वाले उपकरण को हेण्डल के साइड में लगी पीली सील तोड़ कर, उपकरण के सामने के छेद को आग पर चिन्हित कर, हेण्डल के ऊपर की लाल नॉब दबा देने से ड्राई केमिकल पाउडर आग पर फव्वारे के रूप में फैलता है।)


Adalat
अदालत – क्या फिनॉमिना है ब्लॉगिंग का?
मेरे पास अदालत की फीड आती है। बहुत कम टिप्पणी करता हूं इस ब्लॉग पर; यद्यपि पढ़ता सभी पोस्टें हूं। 

Adalat1अदालत का आर्काइव बताता है कि जुलाई के 21 दिनों में 113 पोस्ट छपीं!

इस की एक दिन में ३-५ फीड आ जाती हैं; कोर्ट कचहरी के मामले में लिखी छोटी पोस्टों की (पढ़ने में आदर्श साइज की)।
इसके ब्लॉगर लोकेश के कुछ कमेण्ट हैं मेरे ब्लॉग पर। पर लोकेश का परिचय मुझे ज्ञात नहीं। अपने प्रोफाइल से वे भिलाई, छत्तीसगढ़ के हैं। अदालत उनका सबसिडियरी ब्लॉग नहीं, मुख्य और इकलौता प्रदर्शित ब्लॉग है।
अदालत ब्लॉग के उनके ध्येय के बारे में मुझे स्पष्ट नहीं होता। लोकेश टेलीकम्यूनिकेशन्स के क्षेत्र में हैं – वकालत से नहीं। जिस तेजी से और एक विशेष क्षेत्र में वे लिख रहे हैं, लगता है यूंही नहीं, एक ध्येय के दायरे में लिख रहे हैं। क्या है वह? 
आपने यह ब्लॉग देखा है? आप क्या सोचते हैं?   


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

23 thoughts on “"सीज़ फायर" – कैसे चलायेंगे जी?!

  1. अग्निशमन यंत्र ही क्यों, दैनिक जीवन में प्रयुक्त, बहुतेरी वस्तुयों के प्रयोग की विधि नहीं जानते हमारे नागरिक। फिर चाहे वह मोबाईल के साथ मिलने वाली निर्देश पुस्तिका हो या डेटॉल की शीशी पर छपे निर्देश्। मैने भी खुर्दबीन से यह सब पढ़ने की आदत तब डाली, जब लगभग 20 साल पहले हमारे प्रतिष्ठान के वरिष्ठ चिकित्सक ने डेटॉल से गरारे करने को कहा था। बड़बड़ाते हुये घर आकर देखा तो डेटॉल की शीशी पर गरारों के बारे में साफ-साफ निर्देश थे।हमारे प्रतिष्ठान में प्रत्येक कर्मचारी को प्रतिवर्ष, अग्निशमन यंत्रों के उपयोग का प्रशिक्षण व अन्य अपडेट दिये जाते है। मॉक ड्रिल होते ही रहते हैं और यह कब हो जाये, इसका तो कोई ठिकाना नहीं।जहां तक अदालत की बात है, जैसा कि पहले भी लिखा गया है, इसका मुख्य कारण था: (स्वयं के लिये) विभिन्न न्यायिक फैसलों/ उद्धरणों/ किस्सों/ जानकारियों/ गड्ढों (!?)/ सम्भावनायों का संकलन तथा उन पर अन्य के विचार। … रही बात टेलीक्म्यूनिकेशन के क्षेत्र से होने की, तो भई, आजीविका और व्यक्तिगत रूचियों का आपस में मेल हो, जरूरी नहीं। सिविल इंजीनियर ताश के पत्तों का माहिर हो सकता है, सर्जन बेहतरीन वॉयलिन वादक हो सकता है, वकील बागवानी की बारीकियां समझा सकता है तो …वास्तविक परिचय देना तो इस ब्लॉग जगत की अनवरत धारा में आरम्भ करना ही पड़ेगा।

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  2. भाई ज्ञानदत्त जी,आपने अपनी पत्नी को ही अनभिज्ञता का निशाना क्यों बनाया? टिप्पणियां पढ़ कर लगा कि बहुत से लोग इस जानकारी से अनभिग्य हैं .खैर तकनीकी क्षेत्र में रहने के कारण अग्नि शामक यंत्रों की ट्रेनिंग से कई- कई बार दो-चार होना पड़ा पर अपना अनुभव तो ये रहा कि मौके पर सब कुछ फेल हो जाते हैं, कभी यंत्र तो कभी बुद्धि रूपी तंत्र . कुल मिला कर हादसे तो हो ही जाते हैं, और हर बार उसका कारण बताया जाता है बिजली के शार्ट-सर्किट को. मुआ बिजली के शार्ट-सर्किट से आग कैसे फ़ैल सकती है , मुझे आज तक कोई दिखा न पाया.जब तक ज्वालांक न आए चीजें जल ही नही सकती. आग तो फैलती है ज्वलनशील वस्तुओं से. शोर्ट सर्किट होते ही सर्किट ब्रेकर या MCB ट्रिप हो जाती है , फिर ये आग कैसे फैला सकती है. लगे को कौन बुझा सका है आज तक भाई, जो फायर extinguisar उसे बुझायेगा. चन्द्र मोहन गुप्त

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  3. ज्ञानदत्त जी यह सीज़ फायर” मुश्किल नही, बस बाद मे सफ़ाई मुस्किल हे, मेने एक बार एक पुराने सीज़ फायर” को चला कर देखा था, ओर एक बार चलने पर बन्द नही हुआ, लेकिन मेरे साथ सभी को तजुर्बा हो गया, मजा भी आया, हमारे यहां तो कार के लिये भी छोटा सा मिलता हे, ओर अनुराग जी की बात भी ठीक हे, मेने एक छोटी सी हाथोडी रखी हे,भगवान करे किसी को इन चीजो की जरुरत ही ना पडे

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